Mudiya Mela: ब्रज के राजकीय मुड़िया मेला निरस्त हाेने से करोड़ाें का झटका, जानिए अर्थव्यवस्था को हुआ कितना नुकसान

Mudiya Mela मुड़िया मेला निरस्त से प्रभावित हुई 100 करोड़ की अर्थव्यवस्था। कोरोना संक्रमण के चलते प्रशासन ने मुड़िया मेला कर दिया था निरस्त। एक अनुमान के मुताबिक पांच दिन तक केवल भंडारों पर ही करीब 10 करोड़ खर्च किए जाते हैं।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 02:23 PM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 02:23 PM (IST)
Mudiya Mela: ब्रज के राजकीय मुड़िया मेला निरस्त हाेने से करोड़ाें का झटका, जानिए अर्थव्यवस्था को हुआ कितना नुकसान
कोरोना संक्रमण के चलते प्रशासन ने मुड़िया मेला कर दिया था निरस्त। फाइल फोटो

आगरा, जेएनएन। गोवर्धन का राजकीय मुड़िया मेला निरस्त होने से ब्रजभूमि में 100 करोड़ का व्यवसाय प्रभावित हुआ है। ब्रजमंडल की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने वाला मेला इस बार सन्नाटे के साथ संपन्न हुआ। नतीजतन, मेले पर अच्छी कमाई की आस लगाए बैठे लोगों को अब रोटी के पैसे निकालने के भी लाले पड़ गए हैं। पांच दिन के मेले में हजारों लोगों की उम्मीदें भी संक्रमित होकर बीमार हो गई।

गोवर्धन के पांच दिन चलने वाले मेला से हजारों लोगों की उम्मीदें जुड़ी थीं। लोग जमा-पूंजी इकट्ठा कर के डेढ़ गुना कमाई की उम्मीद में थे, लेकिन कोरोना ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। जब श्रद्धालु ही नहीं आए, तो जाहिर है कि व्यापार भी बंद ही रहा है। मुड़िया पूर्णिमा मेला अबकी बार 20 से 24 जुलाई तक था। एक अनुमान के मुताबिक मुड़िया मेला में देश के विभिन्न प्रांतों से करीब एक करोड़ भक्त गिरिराज जी की सात कोसीय परिक्रमा लगाने गोवर्धन आते हैं। जिनमें तमाम विदेशी भक्त भी होते हैं। गिरिराज जी के प्रसाद के रूप में चिड़वा, चिनौरी, मिश्री और पेड़ा का अधिक प्रचलन है। भोग लगाकर भक्त अपने परिजनों को प्रसाद वितरित करने के लिए अपने साथ ले जाते हैं। चिनौरी, चिड़वा और मिश्री सूखी सामग्री होने के कारण प्रसाद कई दिन तक खराब नहीं होता। इसलिए इसकी बिक्री भी अधिक होती है। मेला के दौरान गिरिराज जी के मंदिरों और बस स्टैंड के समीप अस्थाई दुकानदारों की बहुतायत हो जाती है। चिड़वा चिनौरी की लगातार बड़ती दुकानों के पीछे इसमें होने वाला दोगुना से अधिक मुनाफा है। करीब चालीस रुपये में आने वाले चिड़वा चिनौरी सौ रुपये किलो तक बिकते हैं। हालांकि यह व्यवसाय इस बार दम तोड़ गया। संक्रमण से बचने के लिए मंदिर भी बंद हैं। जिससे श्रद्धालुओं के आने की संख्या नगण्य रही।

नुकसान का अनुमान 

एक अनुमान के मुताबिक पांच दिन तक केवल भंडारों पर ही करीब 10 करोड़ खर्च किए जाते हैं। दो साल पहले करीब 100 भंडारे में तो भक्तों को लगातार भरपेट भोजन खिलाया गया। 700 प्याऊ और फल मिठाई वितरण भी खूब हुआ। भिक्षु से लेकर रिक्शा चालक, रेलवे, रोडवेज, डग्गेमार, सामान स्टैंड, पार्किंग, गेस्ट हाउस, दूध की दुकानें, चाय की दुकानें, हलवाई, प्रसाद वाला, टेंट वाला, लाइटिंग वाला, खिलौना, फूलमाला, ढाबा, दौना पत्तल, किराने का सामान, सब्जियां, थकान मिटाने वाली इलेक्ट्रोनिक मशीन और सबसे ज्यादा दूध जोकि खानपीन के अलावा गिरिराजजी के अभिषेक में प्रयुक्त हुआ। यानी हर दिशा में लक्ष्मीजी ब्रजभूमि पर मेहरबान रहीं। सरकारी मशीनरी, स्थानीय लोग और स्वयं भगवान को भी आराम नहीं मिला। इस बार यह सभी व्यवसाय कोरोना काल की भेंट चढ़ गए हैं, जिससे ब्रजभूमि की अर्थ व्यवस्था चौपट नजर आई।

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