Online Fraud: मोबाइल यूजर्स दें ध्यान! हर 10 में से एक भारतीय हो रहा है फ्रॉड का शिकार : रिपोर्ट

Online Phone Fraud फिशिंग एक तरह की सोशल इंजीनियरिंग है जहां अटैकर्स एक धोखेधड़ी वाले मैसेज को डिजाइन करते हैं जिससे यूजर्स उस मैसेज पर क्लिक करे। इस तरह यह अटैकर्स लोगों की पर्सनल जानकारी को चोरी कर लेते हैं।

By Saurabh VermaEdited By: Publish:Mon, 25 Oct 2021 03:55 PM (IST) Updated:Tue, 26 Oct 2021 07:00 AM (IST)
Online Fraud: मोबाइल यूजर्स दें ध्यान! हर 10 में से एक भारतीय हो रहा है फ्रॉड का शिकार : रिपोर्ट
यह ऑनलाइन फ्रॉड की प्रतीकात्मक फाइल फोटो है।

नई दिल्ली, आइएएनएस। Online Phone Fraud: : मोबाइल का इस्तेमाल भारत में काफी आम हो गया है। छोटे बच्चों से लेकर बड़े और बूढ़ों तक स्मार्टफोन की पहुंच है। लेकिन स्मार्टफोन के इस्तेमाल को लेकर काफी सावधानी बरतनी चाहिए, वरना आप गंभीर फ्रॉड का शिकार हो सकते हैं। दरअसल फिशिंग ने संचार के सभी तरह के मोड में घुसपैठ कर रखी है। ऑफिस की ई-मेल से लेकर SMS और सोशल मीडिया तक फिशिंग की पहुंच है। एक नई रिपोर्ट के खुलासे के मुताबिक हर 10 में से एक मोबाइल यूजर फिशिंग लिंक पर क्लिक करता है। हालात यह हैं कि फिशिंग लिंक पर ऑटोमेटिकली क्लिक हो रहा है।

नकली और असली वेबसाइट की पहचान मुश्किल 

फिशिंग ट्रेंड्स के आंकड़ों के मुताबिक भारत समेत 90 देशों के करीब 5 लाख डिवाइस पर फिशिंग लिंक क्लिक करने को लेकर अध्ययन किया गया है। क्लाउट सिक्योरिटी फर्म Wandera (Jamf Company) की मानें, तो फिशिंग लिंक को क्लिक करने वाले यूजर्स की संख्या में साल दर साल के हिसाब से 160 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। मौजूदा वक्त में करीब 93 फीसदी फिशिंग डोमेन्स को एक सिक्योर वेबसाइट से होस्ट किा जा रहा है। इसमें पैडलॉक URL बार का इस्तेमाल किया जाता है। मौजूदा वक्त में 93 फीसदी फिशिंग साइट्स HTTPs वेरिफिकेशन के साथ आती हैं। साधारण, शब्दों में कहें, तो एक आम आदमी नकली और असली-नकली वेबसाइट और फ्रॉड लिंक की पहचान करना मुश्किल है। बता दें कि इनकी संख्या में साल 2018 से 65 फीसदी इजाफा दर्ज किया जा रहा है।

तेजी से बढ़ रही फ्रॉड की संख्या 

फिशिंग एक तरह की सोशल इंजीनियरिंग है, जहां अटैकर्स एक धोखेधड़ी वाले मैसेज को डिजाइन करते हैं, जिससे यूजर्स उस मैसेज पर क्लिक करे। इस तरह यह अटैकर्स लोगों की पर्सनल जानकारी को चोरी कर लेते हैं. या फिर खतरनाक सॉफ्टवेयर की मदद को डिवाइस में इंस्टॉल करनेक का काम करते हैं। इससे अटैकर्स को लोगों की पर्सनल जानकारी चोरी करने में मदद मिलती है। मौजूदा वक्त में यूजर्स की जानकारी की काफी डिमांड हो गयी है।

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