e-Wallet के बाजार को आखिर क्यों लगा झटका, पढ़ें भारत में इसकी भूमिका

वर्ष 2006 में सबसे पहले ई-वॉलेट पेश किया गया था जिसके बाद वर्ष 2017 तक इस सर्विस की संख्या 60 ई-वॉलेट कंपनियों तक पहुंच गई

By Shilpa Srivastava Edited By: Publish:Wed, 21 Nov 2018 05:42 PM (IST) Updated:Mon, 03 Dec 2018 08:07 AM (IST)
e-Wallet के बाजार को आखिर क्यों लगा झटका, पढ़ें भारत में इसकी भूमिका
e-Wallet के बाजार को आखिर क्यों लगा झटका, पढ़ें भारत में इसकी भूमिका

नई दिल्ली (टेक डेस्क)। भारत में डिजिटल वॉलेट को लेकर प्रसार घटता जा रहा है। वर्ष 2006 में सबसे पहले ई-वॉलेट पेश किया गया था जिसके बाद वर्ष 2017 तक इस सर्विस की संख्या 60 ई-वॉलेट कंपनियों तक पहुंच गई। हालांकि, इसके बाद कई कारणों के चलते इनकी संख्या में कमी आई है ई-वॉलेट कंपनियों की संख्या 49 रह गई। इस बात की जानकारी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने दी है। विशेषज्ञों ने संख्या में हुई कमी के लिए प्रतिस्पर्झा, प्रॉफिट में कमी जैसे कई कारण बताए हैं।

ई-वॉलेट में आया उछाल:

Wallet365.com भारत की पहले ई-वॉलेट सर्विस थी। इसे YES बैंक के एसोसिएशन में टाइम्स ग्रुप ने वर्ष 2006 में लॉन्च किया गया था। इसके बाद कई अन्य बैंक और नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल सर्विस फर्म्स ने इस सेक्टर में कदम रखा। इसमें बिगबास्केट, ग्रोफर्स, अमेजन और वॉटसऐप जैसी कंपनियां शामिल हैं। इनमें से Paytm और Mobikwik ने मार्केट में अच्छा-खासा शेयर बना लिया है। इन कंपनियों को देश में बढ़ती स्मार्टफोन की संख्या से सहायता मिली है। स्मार्टफोन की बढ़ती संख्या के चलते भारतीयों ने पिछले तीन से चार वर्षों में ऑनलाइन बैंकिंग को तेजी से अपनाया है। इसमें सबसे बड़ा उछाल नवंबर 2016 में आया था जब नोटबंदी की घोषणा की गई थी। ई-वॉलेट इंडस्ट्री के वर्ष 2022 तक 30,000 करोड़ होने की संभावना है जो 2015-16 में करीब 154 करोड़ था।

ई-वॉलेट सेक्टर में गिरावट के कारण:

MobiKwik की को-फाउंडर उपासना ताकू ने कहा कि पेमेंट्स एक हाई-वॉल्यूम के साथ कम मूल्य वाला बिजनेस है और यही कंपनियों का सबसे बड़ा संघर्ष है। इसका नतीजा यह रहा है कि या तो कंपनियों ने अपने बिजनेस बंद कर दिया है या फिर बिजनेस को बढ़ा लिया है। वहीं, उपासना ताकू ने यह भी कहा कि वॉलेट बिजनेस में प्रॉफिट कमाने के लिए कंपनियों को न सिर्फ यूजरबेस बढ़ाना होता है ब्लकिन मर्चेंट नेटवर्क को भी मेंटेन रखना होता है। या फिर किसी ऐसे कारण की तलाश करनी होती है जिससे कस्टमर उनके वॉलेट को पेमेंट ऑप्शन के तौर पर इस्तेमाल करें। वहीं, The Mobile Wallet के फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्ट विनय कालन्त्री ने कहा कि अगर आपके पास बड़ा यूजर बेस नहीं है तो आप केवल अपना पैसा बर्बाद कर रहे हैं। कई बड़ी कंपनियां छोटे फर्म्स को अपने स्वामित्व में ले रही हैं। उदाहरण के तौर पर: The Mobile Wallet ने पिछले साल Trupay को खरीद लिया था। इसी तरह Axis बैंक ने FreeCharge को, Amazon ने Emvantage पेमेंट गेटवे को खरीदा है। ऐसे ही कई अन्य उदाहरण भी मौजूद हैं।

RBI ने उठाया यह कदम:

इसी बीच केंद्रीय बैंक ने कुछ नए मानदंड तैयार किए हैं। उदाहरण के लिए, डिजिटल वॉलेट कंपनियों की नेट-वर्थ को 2 करोड़ रुपये से 5 करोड़ रुपये तक बढ़ा दिया गया है। इसमें तीन वित्तीय वर्षों में 15 करोड़ रुपये की न्यूनतम पॉजिटिव नेट-वर्थ है। ऐसा करना नई कंपनियों के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है। इसके अलावा सभी ई-वॉलेट कंपनियों को अपने ग्राहकों के सत्यापन को पूरी तरह से जानने बेहद आवश्यक है। यही नहीं कंपनियों को कुछ अतिरिक्त दस्तावेजों की भी आवश्यकता है जो एक और समस्या बनकर उभर रही है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिया गया 12 अंकों की बॉयोमीट्रिक पहचान संख्या के फैसले ने इस स्थिति को और भी कठिन बना दिया है। कंपनियों के किसी भी सर्विस के लिए ग्राहक से आधार मांगने को प्रतिबंधित किया गया है। Payworld वॉलेट के सीईओ प्रवीण दादाभाई ने कहा कि पहले आधार के जरिए महज बायोमेट्रिक आईडी से ही प्रोसेस पूरा हो जाता था। लेकिन अब आधार के जरिए KYC को प्रतिबंधित कर दिया गया है। अब KYC प्रोसेस ज्यादा समय लेने के साथ महंगा भी हो गया है जिससे कंपनियों को एक अलग समस्या का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, दूसरी तरफ RBI ने दो फर्म्स के बीच में मनी ट्रांसफर को अनुमति दे दी है। इसके अलावा मोबाइल वॉलेट कंपनियों पेमेंट नेटवर्क्स जैसे Mastercard, Visa या RuPay रूपे के साथ मिलकर कार्ड्स भी दे रही हैं।

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