क्या है वर्चुअल रैम, क्यों स्मार्टफोन के लिए है जरूरी, जानिए इसके फायदे और नुकसान

इन दिनों अगर आप स्मार्टफोन खरीदने जाएं तो वर्चुअल रैम डायनैमिक रैम एक्सपेंशन एक्सटेंडेड रैम जैसे शब्दों की खूब चर्चा सुनने को मिलती है। वैसे तो आमतौर पर लोग रैम (रैंडम एक्सेस मेमोरी) शब्द से वाकिफ होते हैं लेकिन वर्चुअल रैम या एक्सटेंडेड रैम जैसे शब्द अपेक्षाकृत अभी नये हैं।

By Saurabh VermaEdited By: Publish:Thu, 23 Sep 2021 05:03 PM (IST) Updated:Thu, 23 Sep 2021 05:03 PM (IST)
क्या है वर्चुअल रैम, क्यों स्मार्टफोन के लिए है जरूरी, जानिए इसके फायदे और नुकसान
यह वर्चुअल रैम की प्रतीकात्मक फाइल फोटो है।

नई दिल्ली, अमित निधि। इन दिनों एक नये शब्द की खूब चर्चा हो रही है- वह है वर्चुअल रैम। फ्लैगशिप फोन के साथ आने वाला यह फीचर अब बजट फोन में भी दिखाई देने लगा है। आने वाले समय में बहुत सारे फोन इस फीचर के साथ आएंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वर्चुअल रैम कैसे कार्य करता है, आपके लिए यह कितना फायदेमंद हो सकता है, परफार्मेंस पर इसका क्या असर होगा? जानें इन सब के बारे में...

इन दिनों अगर आप स्मार्टफोन खरीदने जाएं, तो वर्चुअल रैम, डायनैमिक रैम एक्सपेंशन, एक्सटेंडेड रैम जैसे शब्दों की खूब चर्चा सुनने को मिलती है। वैसे, तो आमतौर पर लोग रैम (रैंडम एक्सेस मेमोरी) शब्द से वाकिफ होते हैं, लेकिन वर्चुअल रैम या एक्सटेंडेड रैम जैसे शब्द अपेक्षाकृत अभी नये हैं। वर्चुअल रैम का कांसेप्ट समझने के लिए सबसे पहले यह समझना होगा कि रैम क्या है। स्मार्टफोन की रैम एक वोलाटाइल मेमोरी है, जो किसी भी अन्य प्रकार की स्टोरेज से तेज होती है। जब फोन पर कोई एप्लीकेशन खोलते हैं, तो उसे एक प्रासेस कहा जाता है। इन प्रासेस (मल्टीपल एप्स) को बैकग्राउंड में फिजिकल रैम पर स्टोर किया जाता है। यही वजह है कि जब एप को ओपन करते हैं, तो ये बिना किसी देरी के अपलोड यानी ओपन होते हैं। सरल शब्दों में कहें, तो वर्चुअल रैम एक ऐसी सुविधा है, जहां फोन के इंटरनल स्टोरेज के एक हिस्से को वर्चुअल रैम के रूप में उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी फोन में 6 जीबी रैम + 128 जीबी स्टोरेज है और वर्चुअल रैम को 2 जीबी तक बढ़ाते हैं, तो तकनीकी रूप से अब आपके पास 8 जीबी रैम और लगभग 126 जीबी इंटरनल स्टोरेज ही होगी।

कैसे करता है कार्य

जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यह एक वर्चुअल रैम है, जिसका मतलब है कि यह आपके स्मार्टफोन में फिजिकल रूप से मौजूद नहीं होता है। वर्चुअल रैम फोन के इंटरनल स्टोरेज के एक हिस्से को टेंपररी फाइल स्टोर करने के लिए रिजर्व रखता है और जब अधिक रैम की जरूरत पड़ती है, तो फिर इसका इस्तेमाल किया जाता है। अधिकांश कंप्यूटिंग डिवाइस में रैम महत्वपूर्ण होता है। यह निर्धारित करता है कि फोन या यहां तक कि पीसी कितनी तेज या धीमी गति से काम करेगा। रैम जितनी कम होगी, डिवाइस का परफार्मेंस उतना ही धीमा होगा। स्मार्टफोन पर जब मल्टीटास्किंग करते हैं या फिर एक साथ कई एप्स को ओपन करते हैं, तो इसमें रैम का एक बड़ा हिस्सा उपयोग कर रहे होते हैं। ऐसी स्थिति में अधिक रैम की जरूरत पड़ने पर वर्चुअल रैम अस्थायी फाइलों को इस रिजर्व इंटरनल स्टोरेज में भेज देगा। इस तरह इस फिजिकल रैम में अधिक एप्लीकेशन लोड करने के लिए ज्यादा स्थान मिल जाता है।

वैसे, जिन फोन में वर्चुअल रैम की सुविधा नहीं होती है और एक साथ कई सारे एप्स को ओपन करने के बाद जब उपलब्ध रैम के करीब पहुंच जाते हैं, तो एंड्रायड आप्टिमाइजेशन बैकग्राउंड में एप्स से संबंधित टेंपररी फाइल को डिलीट करना शुरू कर देता है। इस प्रक्रिया को रैम आप्टिमाइजेशन कहा जाता है। इससे आप नये एप्स का इस्तेमाल कर पाएंगे, लेकिन इसका एक पहलू यह भी है कि जब पुराने एप्स (जो अभी भी आपके हाल के एप्स स्क्रीन पर दिख रहे होंगे) पर वापस जाते हैं, तो वह फिर से शुरू या रीस्टार्ट होता है, न कि वहां से शुरू होता है, जहां आपने उसे छोड़ा था। एक्सपेंडेबल वर्चुअल रैम इस समस्या का एक हद तक समाधान करता है। याद रखें, वर्चुअल रैम वास्तव में डिवाइस पर कुल रैम आकार को नहीं बढ़ाता है।

क्या वर्चुअल रैम फिजिकल रैम जितनी अच्छी है

यदि परफार्मेंस के हिसाब से देखें, तो फिजिकल रैम हमेशा वर्चुअल रैम से तेज होता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि रैम की स्पीड हमेशा इंटरनल स्टोरेज की तुलना में तेज होती है, यहां तक कि यह यूएफएस 3.1 की स्पीड को भी पीछे छोड़ सकता है, जो आज हमारे फोन में सबसे तेज इंटरनल स्टोरेज आप्शंस में से एक है। जब हम एक्सपेंडेबल वर्चुअल रैम का उपयोग करते हैं, तो बहुत सारा डाटा रैम से इंटरनल स्टोरेज पर ट्रांसफर हो जाता है, फिर वहां से वापस रैम में आ जाता है। हालांकि इसके लिए मैनुअली कुछ भी करने की जरूरत नहीं होती है। ज्यादा रैम की जरूरत पड़ने पर यह काम फोन खुद ही करता है।

लेकिन यह भी समझना होगा कि यह फीचर इमरजेंसी रिजर्व के लिए है। यह रैम को रिप्लेस नहीं कर सकता। इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि 8 जीबी डेडिकेटेड रैम वाला फोन हमेशा 6 जीबी +2 जीबी वर्चुअल रैम से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करेगा, भले ही मैन्युफैक्चरर आपको 6जीबी+2जीबी (वर्चुअल) = 8 जीबी का सुझाव क्यों न दे।

स्मार्टफोन में क्यों आ रहा है यह फीचर: वैसे, यह तकनीक बहुत नई नहीं है। पहले पीसी में देखा गया है, लेकिन अब स्मार्टफोन यूजर्स को अधिक रैम की जरूरत होती है, क्योंकि वे इस पर भारी एप्स का उपयोग कर रहे हैं। देखें, तो कुछ साल पहले तक 4 जीबी रैम पर्याप्त होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। चूंकि हार्डवेयर के माध्यम से अधिक रैम को जोड़ना कठिन और महंगा पड़ता है, इसलिए कंपनियां बिना अतिरिक्त लागत वर्चुअल रैम की सुविधा देने लगी हैं। जब 4के वीडियो रिर्कांिडग और एआर एप्स मुख्यधारा में आएंगे, तो इससे काफी मदद मिलेगी।

वर्चुअल रैम की खूबियां वर्चुअल रैम के साथ आने वाले फोन की खास बात यह कि कम प्राइस प्वाइंट में ज्यादा रैम की सुविधा मिलेगी। फिजिकल रैम पर ज्यादा खर्च किए बिना भी बेहतर परफार्मेंस हासिल कर सकते हैं। एक 6जीबी+2जीबी वर्चुअल रैम वाला फोन 8जीबी रैम वाले फोन के बराबर प्रदर्शन नहीं करेगा, लेकिन यह इससे सस्ता जरूर हो सकता है। इस फीचर के साथ आने वाला फोन समान रैम वाले अन्य फोन की तुलना में बेहतर रैम मैनेजमेंट पेश करेगा। यह फीचर गेमर्स और हैवी मल्टी टास्किंग के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि जैसे ही मल्टी टास्किंग में रैम की कमी होगी, इंटरनल स्टोरेज का एक हिस्सा वर्चुअल मेमोरी के तौर पर इस्तेमाल होने लगेगा।

खामियां वर्चुअल मेमोरी एक साफ्टवेयर फीचर है, जो खाली इंटरनल स्टोरेज का इस्तेमाल टेंपररी रैम के तौर पर करती है। इसलिए यह केवल तभी काम करेगा, जब अतिरिक्त स्टोरेज होगी। यदि आपका फोन पहले से ही अपनी कुल इंटरनल स्टोरेज की क्षमता के करीब है और वर्चुअल रैम के लिए आवंटित स्पेस भी भर चुका है, तो फिर फोन केवल उस डेडिकेटेड रैम का ही उपयोग करेगा, जो पहले से उसके पास है। एक्सपेंडेबल वर्चुअल रैम का मतलब यह भी है कि अगर आप भविष्य में अपने फोन पर आधिकारिक फर्मवेयर के बजाय किसी थर्ड पार्टी कस्टम रोम का इस्तेमाल करते हैं, तो इस फीचर का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे जब तक कि कस्टम रोम भी समान फीचर के साथ न हो।

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