Kabir Jayanti 2020: जानें, मगहर के महान कवि और संत कबीर जी के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

Kabir Jayanti 2020 कबीर जी की बचपन से ही अध्यात्म में पूर्ण आस्था थी। हालांकि बाह्य आंडबर से इन्हें विरक्ति थी। भक्तिकाल में ये निर्गुण विचार धारा के भक्त थें।

By Umanath SinghEdited By: Publish:Fri, 05 Jun 2020 08:00 AM (IST) Updated:Fri, 05 Jun 2020 08:00 AM (IST)
Kabir Jayanti 2020: जानें, मगहर के महान कवि और संत कबीर जी के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
Kabir Jayanti 2020: जानें, मगहर के महान कवि और संत कबीर जी के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Kabir Jayanti 2020:  हर साल ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन कबीर जयंती मनाई जाती है। इसके अनुसार, आज कबीर जयंती है। आज के दिन सन 1440 में कबीर का जन्म उत्तर प्रदेश के मगहर में हुआ था। जबकि 1518 में उनका निधन हुआ था। हालांकि, कबीर के जन्म को लेकर विद्वानों में मतभेद है। अतः इनके जन्म को लेकर कोई सटीकता और प्रामाणिकता नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि इनका जन्म हिन्दू परिवार में हुआ था, लेकिन इनका पालन-पोषण मुस्लिम परिवार में हुआ था। कबीर बचपन से ही धर्मनिरपेक्ष प्रवृति के व्यक्ति थे। आइए, कबीर जी के जीवन,  दीक्षा-उपदेश और रचनाओं के बारे में जानते हैं-

कबीर जी जीवन परिचय

मगहर के कवि और संत कबीर का जन्म 1440 में हुआ था। इनके माता-पिता का नाम नीरू और नीमा था। इन्होंने पहली बार कबीर को नवजात अवस्था में लहरतारा में देखा था। इनकी कोई संतान नहीं थी। अतः ये कबीर को अपने साथ ले आए और उनका पालन-पोषण किया। कबीर जी की बचपन से ही अध्यात्म में पूर्ण आस्था थी। हालांकि, बाह्य आंडबर से इन्हें विरक्ति थी। भक्तिकाल में ये निर्गुण विचार धारा के भक्त थें। कबीर ने ब्रह्म अर्थात परम पिता परमेश्वर को अपना आराध्य माना। इन्हें मूर्ति पूजा में आस्था नहीं थी।

कबीर ने महान संत और गुरु रामानंद जी से दीक्षा हासिल की थी। हालांकि, रामानंद ने इन्हें अपना निकटतम शिष्य बनाने से इंकार कर दिया था, लेकिन एक दिन जब रामानंद तालाब के किनारे स्नान कर रहे थे। उस समय उन्होंने कबीर को दो अलग-अलग जगहों पर भजन गाते देखा। उस दिन से उन्होंने कबीर को अपना शिष्य बना लिया।

कालांतर में कबीर कभी कोई आधिकारिक शिक्षा हासिल नहीं की, लेकिन गुरु परंपरा का निर्वाह कर विद्वान बनें। इन्होंने अपने जीवन काल में कई रचनाएं की हैं, जिसे आज भी मंदिरों और मठों में गाया जाता है। साथ ही उनके उपदेश को भी सत्संग में दोहराया जाता है।

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