Guru Parv 2021: ईश्वर का ज्ञान कराता गुरु नानक साहिब का दर्शन, गुरु पर्व पर जानें उनके उत्तम विचार

Guru Parv 2021 गुरु नानक साहिब ने कहा कि मनुष्य जिस सुख हेतु जीवन भर भटकता रहता है वह उसकी कृपा से पल मात्र में प्राप्त हो जाता है। इसके लिए बस मन का समर्पण व प्रेम भाव चाहिए।

By Kartikey TiwariEdited By: Publish:Tue, 16 Nov 2021 11:30 AM (IST) Updated:Wed, 17 Nov 2021 03:00 PM (IST)
Guru Parv 2021: ईश्वर का ज्ञान कराता गुरु नानक साहिब का दर्शन, गुरु पर्व पर जानें उनके उत्तम विचार
Guru Parv 2021: ईश्वर का ज्ञान कराता गुरु नानक साहिब का दर्शन, गुरु पर्व पर जानें उनके उत्तम विचार

Guru Parv 2021: जब अवगुणों का साम्राच्य हो जाए और धर्म अलभ्य हो जाए, ऐसे समय में अंतश्चेतना की जागृति ही एक निदान बचता है, जिसे कोई युगनायक ही कर पाता है। गुरु नानक साहिब ने पंद्रहवीं शताब्दी में संसार को निराशा के अंधेरे से बाहर लाने हेतु एक विलक्षण मार्ग अपनाया। उन्होंने निराकार परमात्मा के सर्वव्यापी व सर्वकल्याणकारी स्वरूप के दर्शन कराए। गुरु नानक साहिब ने मनुष्य को जिस परमात्मा से जोड़ा, वह सृजनकर्ता, पिता, पालक, दाता, सहाई, मित्र, बंधु और तारणहार आदि उन सभी संबंधों की प्रतिमूर्ति था, जो मानव जीवन के लिए हितकारी थे।

गुरु नानक साहिब ने कहा कि मनुष्य जिस सुख हेतु जीवन भर भटकता रहता है, वह उसकी कृपा से पल मात्र में प्राप्त हो जाता है। इसके लिए बस मन का समर्पण व प्रेम भाव चाहिए। गुरु नानक साहिब ने परमात्मा के गुणों के दर्शन सृष्टि के कण-कण में कराए। गुरु नानक साहिब की श्री गुरु ग्रंथ साहिब में सुशोभित वाणी आसा की वार परमात्मा की दिव्यता के विस्मयकारी स्वरूप को प्रकट करती है। इसमें गुरु नानक साहिब ने कहा कि परमात्मा ने पहले स्वयं ही अपने आप को रचा और अपनी महिमा व्यक्त की। फिर उसने सृष्टि की रचना की और बड़ी उमंग से अपनी रची हुई सृष्टि का पालन कर रहा है।

परमात्मा की सृजनशीलता के कारण सारी सृष्टि विस्मयकारी हो गई है। अनगिनत प्रकार के जीव, पवन, पानी, अग्नि, धरती आदि भारी विस्माद उत्पन्न कर रहे हैं। संसार में अनंत कामनाएं, स्वाद, क्षुधा, भोग, संयोग, वियोग आदि भी परमात्मा के रचे विस्माद हैं, जिनकी थाह नही पाई जा सकती। परमात्मा की अथाह शक्ति का वर्णन करते हुए गुरु नानक साहिब ने कहा कि इतनी बहुविधि व विशाल सृष्टि की रचना करने में उसे अधिक श्रम नही करना पड़ा। उसके एक संकेत मात्र से ही सारा सृजन संभव हो गया। कीता पसाऊ ऐको कवाऊ। तिस ते होए लख दरीआऊ।।

जो परमात्मा ऐसा सर्व समर्थ है, जिसकी सृजित सृष्टि को जाना ही नहीं जा सकता, उस पर एक बार भी बलिहार जाना मनुष्य के साम‌र्थ्य के बाहर है। यही कारण था कि गुरु नानक साहिब ने परमात्मा को रिझाने के मनुष्य के सारे प्रयासों को व्यर्थ कहा। उन्होंने कहा कि परमात्मा की स्तुति और आराधना तो सारी सृष्टि मिलकर कर रही है। अपने प्रसिद्ध तीर्थ स्थल जगन्नाथपुरी में आरती का उच्चारण करते हुए कहा कि सारा आकाश आरती की थाली की तरह है, जिसमें सूर्य व चंद्रमा दीपक की तरह रखे हुए हैं। सारा तारामंडल थाली में सजाये गये मोतियों की तरह है। मलयगिरी पर्वत पर उगे चंदन के वृक्षों से टकराकर सुगंधित हो गई पवन ही धूपबत्ती है।

गुरु नानक साहिब ने कहा कि परमात्मा के इस सच्चे स्वरूप को धारण करना ही आत्मिक जागृति है। उसकी कृपा बिना भेदभाव समान रूप से उन पर बरसती है, जिनके मन प्रेम भावना से परिपूर्ण हैं। उन्होंने भक्ति को सैद्धांतिक शुचिता के साथ ही सहजता और पावन आचार से भी जोड़ा और कहा कि मनुष्य जो बोता है, उसे वही काटना पड़ता है।

डॉ. सत्येन्द्र पाल सिंह, सिख दर्शन के अध्येता

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