Dayanand Saraswati Jayanti 2021: कौन थे महर्षि दयानंद सरस्वती? जानें समाज में उनका अमूल्य योगदान

Dayanand Saraswati Jayanti 2021 आर्यसमाज के संस्थापक और वेदोद्धारक महर्षि दयानंद को वेदों के प्रति अटूट विश्र्वास तो था ही वे इन्हें ईश्र्वरीयवाणी और अपौरुषेय भी मानते रहे। वे वेदों को सनातन का चिर नवीन ज्ञान-विज्ञान धर्म अध्यात्म दर्शन और मानव मूल्यों का उद्गम भी मानते हैं।

By Kartikey TiwariEdited By: Publish:Fri, 12 Feb 2021 12:30 PM (IST) Updated:Fri, 12 Feb 2021 12:30 PM (IST)
Dayanand Saraswati Jayanti 2021: कौन थे महर्षि दयानंद सरस्वती? जानें समाज में उनका अमूल्य योगदान
Dayanand Saraswati Jayanti 2021: कौन थे महर्षि दयानंद सरस्वती? जानें समाज में उनका अमूल्य योगदान

Dayanand Saraswati Jayanti 2021: आर्यसमाज के संस्थापक और वेदोद्धारक महर्षि दयानंद को वेदों के प्रति अटूट विश्र्वास तो था ही, वे इन्हें ईश्र्वरीयवाणी और अपौरुषेय भी मानते रहे। वे वेदों को सनातन का चिर नवीन ज्ञान-विज्ञान, धर्म, अध्यात्म, दर्शन और मानव मूल्यों का उद्गम भी मानते हैं। महर्षि दयानंद सत्य के अजेय पथ के पथिक हैं तो समाज सुधार के सर्वश्रेष्ठ नेतृत्वकर्ता भी। अज्ञानता, पाखंड, बुराइयों और बुरी परंपराओं पर चोट करते हैं तो ज्ञान, तर्क, विज्ञान, विद्या और धर्म को विवेचनात्मक धरातल पर मीमांसक के रूप में दिखाई देते हैं। वे धर्मवेत्ता हैं तो वैदिक राष्ट्रवाद के उन्नायक भी हैं।

दलितों, पिछड़ों और अनार्यो को ज्ञान के रास्ते पर चलाने के लिए संघर्ष करने वाले आंदोलनकारी हैं तो हिंदी, संस्कृत, देवनागरी को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने वाले संस्थापक भी। महिलाओं को पुरुषों के बराबर शिक्षा हासिल करने का हक दिलाने के लिए वेदों को आधार बनाते हैं और विधवाओं को उनकी दुर्दशा से निकालकर उन्हें समाज में सम्मान सहित जिंदगी बसर करने के लिए विधवा विवाह को शास्त्र सम्मत साबित करते हैं। अंग्रेजी  भाषा के मोहजाल से बाहर करने के लिए वैदिक गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति को स्थापित करने का पुरजोर प्रयत्न दयानंद जी की प्रेरणा से ही शताब्दियों बाद हो पाया।

सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका सहित चारीस पुस्तकों की रचना और अनेक शास्त्राथरें के जरिए शास्त्रार्थ की वैदिक परंपरा को पुन: स्थापित करने का कार्य आदि शंकराचार्य जी के बाद महर्षि दयानंद ने ही किया। महर्षि दयानंद ने धर्म, अध्यात्म, वैदिक शिक्षा, भाषा, देश सेवा, समाज सेवा, ज्ञान-विद्या के प्रसार सहित समाज, संस्कृति, धर्म और अध्यात्म के विकास के कायरें को 'यज्ञ' कहकर, सुकर्म की प्रतिष्ठा दी। सत्य, ज्ञान-विज्ञान और सत्य धर्म की स्थापना का कार्य किया। उन्होंने भारत में प्रचलित सभी मत-पंथों की निष्पक्ष समीक्षा की। यही कारण है समाज में प्रचलित 'सभी धर्म समान हैं और सभी धर्म ग्रंथ बराबर हैं' के विश्र्वास को तर्क और तथ्य की कसौटी पर कसने की परंपरा आगे बढ़ी।

उन्होंने वेद को सत्य, ज्ञान और विद्या का आधार बताया। वह अपने उपदेशों, उद्बोधनों और प्रवचनों में वेद विद्या को प्रमुखता देते थे। वेद पर जोर देते हुए वह कहते हैं- वेद ऐसे दिव्य ज्ञान, विद्या और विज्ञान के आधार स्तंभ हैं, जहां से सभी तरह की विद्याओं और विज्ञानों का उद्गम होता है। यही कारण है योगी महर्षि अरविंद ने दयानंद को अब तक वेदों का सबसे बड़ा हितैषी और आविष्कर्ता कहा है। महर्षि दयानंद किसी मत-पंथ, संप्रदाय या संस्था की स्थापना करने के पक्षधर नहीं थे। उन्होंने समाज सुधारकों के कहने पर आर्यसमाज के जरिए आंदोलन चलाया, जो बाद में चलकर एक संस्था के रूप में पहचाना जाने लगा।

आर्यसमाज ने सबसे बड़ा कार्य जन्मगत जाति व्यवस्था को खत्म कर कर्म, गुण व स्वभाव के आधार पर समाज में प्रत्येक व्यक्ति की पहचान को स्थापित करने के लिए वेदों को आधार बनाया। इसी तरह वैदिक परंपरा में प्रचलित चारों पुरुषाथरें, चारों आश्रमों और चारों वणरें को वैदिक परंपरा और धर्म के आधार पर मान्यता दिलाने का कार्य महर्षि दयानंद ने किया। उन्होंने दूसरे की उन्नति में अपनी उन्नति समझने के मानवीय सद्गुण को भी अपनाने पर जोर दिया। मानव मूल्यों की स्थापना के लिए उन्होंने अपने जीवन को संदेश के रूप में पेश किया। उन्होंने अपने विरोधियों, हत्यारों और नफरत करने वालों को क्षमा किया। जिसने उन्हें जहर दिया, उसे क्षमा करते हुए धन देकर दूर भाग जाने के लिए कहा। उनका जीवन व उनकी दी हुई शिक्षा आज के समाज के लिए अत्यंत उपयोगी है और आगे भी रहेगी।

- अखिलेश आर्येन्दु

chat bot
आपका साथी