ऊर्जा: देवत्व की पूजा- सृष्टि में देवत्व की पूजा सर्वत्र होती है, पर देवत्व को धारण करना किसी व्यक्ति के लिए साधारण बात नहीं
हमें जीवन में बहादुरी का परिचय देना होगा। बुराइयों से निरंतर लड़ने और देवत्व के दिव्य गुणों को धारण करने के अभियान को गति देना होगा। तभी हम जीवन जीने की सत्य अनुभूति कर सकेंगे। देवत्व की असली पूजा यही है। ऐसा करके ही हम भवसागर को पार कर सकेंगे।
सृष्टि में देवत्व की पूजा सर्वत्र होती है, पर देवत्व को धारण करना किसी व्यक्ति के लिए साधारण बात नहीं है। वास्तव में परमात्मा के गुणों को धारण करके उनके पथ का अनुगामी बनना मानव जीवन के लिए अद्वितीय बात है। देवत्व धारण करना यानी दिव्य गुणों को जीवन में आत्मसात करना है। इसके लिए व्यक्ति को कठिन प्रयास, श्रद्धा, विश्वास, समर्पण, निष्ठा और पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है। इसके बिना जीवन को धन्य करने का सत्कर्म अधूरा रह जाता है। अधिकांश लोग आराम से जीवन जीना ज्यादा पसंद करते हैं। हमारे मन को भी बुरे कार्यों की तरफ जाने में अधिक सुविधा नजर आती है। यही मन की आसुरी प्रवृति है, पर इसको भोगों से बचाने पर ही रोगों से सुरक्षा प्राप्त होती है। अन्यथा भोगी मन अस्वस्थ होकर चंद दिनों तक ही धरती का मेहमान बना रह सकता है। ज्यादा दिन तक धरती पर निवास करने के लिए देवत्व के दिव्य गुणों और कर्मों को धारण करना जरूरी है। यही मानवीय प्रवृत्ति है।
यहां बुरे कर्मों की सजा मिलती है और अच्छे कर्मों का परिणाम सम्मान, यश, कीर्ति, पद, प्रतिष्ठा के रूप में जरूर मिलता है। हमारी संस्कृति देवत्व की है। हमारी परंपरा चिरपुरातन है, जो ऋषियों के आचरण की प्रतिछाया है। प्रकृति की व्यवस्था अनुशासित और नियम में बंधी है। इस कारण अगर मनुष्य का जीवनयापन प्रकृति के नियमों के अनुसार है तो वह ईश्वर का सच्चा पुत्र होने का अधिकारी है। हालांकि ईवर का पुत्र होकर व्यक्ति ईश्वर के मार्ग पर चलने से कतराता है और यही उसका दुर्भाग्य है। यह जीवन संघर्षमय है। इससे मुंह मोड़ना कायरता है। हमें अपने जीवन में बहादुरी का परिचय देना होगा। अपने अंदर की बुराइयों से निरंतर लड़ने और देवत्व के दिव्य गुणों को धारण करने के अभियान को गति देना होगा। तभी हम जीवन जीने की सत्य अनुभूति कर सकेंगे। देवत्व की असली पूजा यही है। ऐसा करके ही हम भवसागर को पार कर सकेंगे।
- मुकेश ऋषि