Shanishchar Stotra: जब शनिदेव का संहार करने पहुचे थे राजा दशरथ, 3 वरदान पाकर लौटे अयोध्या

Shanishchar Stotra एक बार राजा दशरथ ज्योतिषाचार्यों के साथ बैठे थे। उन लोगों ने बताया कि शनिदेव कृत्तिका नक्षत्र के अंत में हैं और रोहिणी नद्यत्र को भेदकर जाने वाले हैं। जिसका फल देव और दानवों के लिए भयंकर होगा तथा पृथ्वी पर 12 साल के लिए सूखा पड़ जाएगा।

By Kartikey TiwariEdited By: Publish:Fri, 25 Sep 2020 11:10 AM (IST) Updated:Tue, 29 Sep 2020 07:12 AM (IST)
Shanishchar Stotra: जब शनिदेव का संहार करने पहुचे थे राजा दशरथ, 3 वरदान पाकर लौटे अयोध्या
File Photo: दशरथ जी ने शनैश्चर स्तोत्रम् की रचना की थी।

Shanishchar Stotra: पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार राजा दशरथ ज्योतिषाचार्यों के साथ बैठे थे। उन लोगों ने बताया कि शनिदेव कृत्तिका नक्षत्र के अंत में हैं और रोहिणी नद्यत्र को भेदकर जाने वाले हैं। जिसका फल देव और दानवों के लिए भयंकर होगा तथा पृथ्वी पर 12 साल के लिए सूखा पड़ जाएगा। यह सुनकर राजा दशरथ चिंतित हो गए। उन्होंने वशिष्ठ जी समेत अन्य महर्षियों से इसका समाधान पूछा। उन सभी ने कहा कि इसका समाधान तो स्वयं ब्रह्मा जी के पास भी नहीं है।

इस पर राजा दशरथ अपने दिव्य रथ में सवार हो गए और सूर्य लोक के पार नक्षत्र मंडल में पहुंचे। वहां रोहिणी नक्षत्र के पिछले भाग में जाकर शनिदेव पर दिव्यास्त्र चलाने के लिए धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा ली। यह देखकर शनिदेव कुछ समय के लिए डर गए, लेकिन हंसते हुए बोले कि राजन! तुम्हारा साहस प्रशंसनीय है। शनि के नेत्रों से देव-दैत्य सब भस्म हो जाते हैं, लेकिन वे तुम्हारे साहस से प्रसन्न हैं। तुम्हारी जो इच्छा हो, वह वर मांग लो। तब राजा दशरथ ने कहा कि जब तक सूर्य और चंद्रमा हैं तब तक आप रोहिणी नक्षत्र को न भेदें। उन्होंने एवमस्तु कह दिया।

शनिदेव ने दशरथ जी से कहा कि वे अतिप्रसन्न हैं, एक और वर मांग लो। तब उन्होंने कहा ​कि 12 साल तक कभी भी सूखा और अकाल न पड़े। उन्होंने वह भी वर दे दिया। तब राजा दशरथ ने धनुष रथ पर रख दिया और शनिदेव की स्तुति करने लगे। यह स्तुति शनैश्चर स्तोत्रम् के नाम से जानी जाती हैं। उनके मुख से अपना स्तोत्र सुनकर शनिदेव ने फिर एक वर मांगने को कहा। तब राजा दशरथ ने कहा कि आप किसी को कभी पीड़ा न दें। इस पर शनिदेव ने कहा कि यह संभव ही नहीं। जीवों को कर्म के अनुसार सुख और दुख भोगना पड़ेगा। हां, मैं यह वरदान देता हूं कि तुमने जो मेरी स्तुति की है, उसे जो भी पढ़ेगा, उसे पीड़ा से मुक्ति मिल जाएगी। इस प्रकार राजा दशरथ शनिदेव से तीन वरदान प्राप्त करके अयोध्या वापस लौट आए। (पद्मपुराण)

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