Holashtak 2021: कब है होलाष्टक, पढ़ें इस तिथि की पौराणिक कथा

Holashtak 2021 हर वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा ​तिथि तक होलाष्टक माना जाता है। यह हिंदू धर्म के प्रमुख त्यौहारों में से एक होली दहन के पहले 8 दिनों को कहा जाता है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Sun, 07 Mar 2021 12:30 PM (IST) Updated:Sun, 07 Mar 2021 02:00 PM (IST)
Holashtak 2021: कब है होलाष्टक, पढ़ें इस तिथि की पौराणिक कथा
Holashtak 2021: कब है होलाष्टक, पढ़ें इस तिथि की पौराणिक कथा

Holashtak 2021: हर वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा ​तिथि तक होलाष्टक माना जाता है। यह हिंदू धर्म के प्रमुख त्यौहारों में से एक होली दहन के पहले 8 दिनों को कहा जाता है। इस वर्ष यानी 2021 में यह 22 मार्च 2021 से 28 मार्च 2021 तक रहेगा। इस वर्ष होलिकादहन 28 मार्च को किया जाएगा। इसके बाद अगले दिन रंगों के साथ होली का त्यौहार मनाया जाएगा। होलाष्टक से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं जिनके बारे में हम आपको यहां बता रहे हैं।

पहली कथा के अनुसार, प्रहलाद को उनके पिता हिरण्यकश्यप ने भक्ति को भंग करने और ध्यान भंग करने के लिए लगातार 8 दिनों तक कई तरह की यातनाएं और कष्ट दिए थे। ऐसे में कहा जाता है कि इन 8 दिनों तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। यही 8 दिन होलाष्टक कहे जाते हैं। 8वें दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाती हैं लेकिन प्रहलाद बच जाते हैं और होलिका जल जाती हैं। प्रहलाद के जीवित बचने की खुशी में दूसरे दिन रंगों की होली मनाई जाती है।

दूसरी कथा के अनुसार, माता पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भोलेनाथ से हो। लेकिन शिवजी तपस्या में लीन थे। ऐसे में पार्वती जी की सहायता करने के लिए कामदेव शिवजी की तपस्या भंग कर देते हैं। इसके चलते शिवजी अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर देते हैं। तब कामदेव की पत्नि शिवजी से उन्हें पुनर्जीवित करने की प्रार्थना करती हैं। कामदेव की पत्नी रति की भक्ति देख शिवजी कामदेव को एक वचन देते हैं कि वो दूसरे जन्म में रति के अवश्य मिलेंगे। कामदेव बाद में श्रीकृष्ण के यहां प्रद्युम्न रूप में जन्म लेते हैं। तपस्या भंग होने से शिवजी जब अपनी आंखें खोलते हैं तो उन्हें पार्वती जी दिखाई देती हैं और पार्वती जी की अराधना सफल हो जाती है। शिवजी उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेते हैं। ऐसे में होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जलाकर इस दिन सच्चे प्रेम की जीत का उत्सव मनाया जाता है। जिस दिन भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था उस दिन फाल्गुन शुक्ल की अष्टमी तिछि थी। मान्यता है कि तभी से होलाष्टक की प्रथा आरंभ हुई।

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