वास्तविक सौंदर्य: सुंदर वही हो सकता है, जो कल्याणकारी हो

सुंदरता में सभी मनुष्यों की दृष्टि को आकर्षित करने की इतनी प्रबल शक्ति होती है कि उसके मोहपाश में व्यक्ति सहज ही बंध जाता है। स्थूल सुंदरता सर्वप्रथम व्यक्ति के नेत्रों को अपने वश में करती है। फिर उसके मन और मस्तिष्क पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लेती है।

By Kartikey TiwariEdited By: Publish:Fri, 12 Nov 2021 09:05 AM (IST) Updated:Fri, 12 Nov 2021 09:05 AM (IST)
वास्तविक सौंदर्य: सुंदर वही हो सकता है, जो कल्याणकारी हो
वास्तविक सौंदर्य: सुंदर वही हो सकता है, जो कल्याणकारी हो

सौंदर्य सदैव आनंद देता है। सुंदरता में सभी मनुष्यों की दृष्टि को आकर्षित करने की इतनी प्रबल शक्ति होती है कि उसके मोहपाश में व्यक्ति सहज ही बंध जाता है। स्थूल सुंदरता सर्वप्रथम व्यक्ति के नेत्रों को अपने वश में करती है। फिर उसके मन और मस्तिष्क पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लेती है। मन और मस्तिष्क जब सौंदर्य के अधीन हो जाते हैं तब सोच-विचार की सामथ्र्य क्षीण हो जाती है। तब हित-अहित का ध्यान नहीं रहता। यह भी भान नहीं रहता कि जो अहित करने वाली वस्तु है, वह कुछ क्षणों के लिए सुंदर होने पर भी वास्तव में सुंदर नहीं है, क्योंकि उससे कल्याण नहीं होगा। सुंदर वही हो सकता है जो कल्याणकारी हो।

मान लीजिए हमें किसी गहरी नदी को पार करना है। हमारे पास सुंदर रंग-बिरंगे चित्रों से सुसज्जित, मखमल के गद्दों से बिछी नाव है। उसमें सुख-सुविधा के सभी साधन उपलब्ध हैं, परंतु उसकी तली में एक छेद है। दूसरी ओर एक नाव साधारण पटलों की बनी है। इस स्थिति में क्या हम इस साधारण नाव को छोड़कर सुंदर चित्रों और सुविधाजनक नौका में बैठेंगे?

कभी नहीं, क्योंकि हम जानते हैं कि छेद वाली नौका भले ही कितनी सुंदर क्यों न हो, वह बीच राह में ही पानी से भर जाएगी और हम डूब जाएंगे। इसके उलट दूसरी साधारण नाव हमें सुरक्षित नदी के पार ले जाएगी। ऐसे में हमारे लिए दूसरी नाव ही सच्चे सौंदर्य से समृद्ध मानी जाएगी, क्योंकि वह अपनी मूल कसौटी पर खरी उतरती है। वह उपयोगिता से परिपूर्ण है।

स्पष्ट है कि सद्गुणों के बिना सौंदर्य का कोई मोल नहीं। यदि सुंदरता के साथ सद्गुण हैं तो वह हृदय का स्वर्ग है। दुगरुण के साथ वह आत्मा का नरक है। बाहरी स्थूल सुंदरता की आयु अल्पकालिक होती है, जबकि हृदय का सौंदर्य शाश्वत होता है। इस सच्चे सौंदर्य की खोज दर्पण में नहीं, प्रेम और दया से भरे हृदय में ही हो सकती है। अत: हमें सदैव सद्गुणों से युक्त सुंदरता का ही वरण करना चाहिए।

डा. प्रशांत अग्निहोत्री

chat bot
आपका साथी