दृढ़ता: प्रतिदिन लगातार कोशिश कर दिव्य आत्मिक अनुभूतियों का अनुभव कर सकते हैं

हमें अपने ध्यान-अभ्यास में दृढ़ रहना चाहिए। एक दिन प्रभु की कृपा से निश्चित ही आध्यात्मिकता का पानी ऊपर आएगा और हम प्रभु की ज्योति और श्रुति का अनुभव कर अपनी आत्मा की प्यास बुझा लेंगे। प्रभु से एकाकार होना ही जीवन की सार्थकता को सिद्ध करता है।

By Kartikey TiwariEdited By: Publish:Thu, 14 Oct 2021 09:44 AM (IST) Updated:Thu, 14 Oct 2021 09:44 AM (IST)
दृढ़ता: प्रतिदिन लगातार कोशिश कर दिव्य आत्मिक अनुभूतियों का अनुभव कर सकते हैं
दृढ़ता: प्रतिदिन लगातार कोशिश कर दिव्य आत्मिक अनुभूतियों का अनुभव कर सकते हैं

दंत कथाओं में कौए के बारे में एक वाकया है। गर्मी के दिन थे। एक कौआ जंगल में पानी पीने के लिए भटक रहा था। तेज धूप के कारण उसके पास पीने के लिए पानी नहीं था। आखिरकार उसे एक घड़ा दिखाई दिया, जिसके तल में बहुत थोड़ा सा पानी था। कौए ने पानी पीने के लिए अपनी चोंच घड़े में डाली, लेकिन चोंच नीचे तक नहीं पहुंच पाई। पहले तो उसे समझ नहीं आया कि उसे क्या करना चाहिए?

उसे ऐसा लग रहा था कि वह पानी नहीं पी पाएगा। तभी उसे एक उपाय सूझा। पास में ही कुछ कंकड़ पड़े हुए थे। उसने एक-एक करके छोटे-छोटे कंकड़ घड़े में डालने शुरू किए। हर कंकड़ के पानी में जाने से घड़े के तल से पानी थोड़ा-थोड़ा ऊपर की ओर आ रहा था। एक-एक करके उसने कई कंकड़ पानी में डाले। कुछ समय तक उसे यह सब व्यर्थ लग रहा था, क्योंकि वह अभी भी पानी तक नहीं पहुंच सका था, लेकिन बहुत से कंकड़ डालने के बाद पानी घड़े की ऊपरी सतह तक आ गया। यह देखकर कौआ बहुत खुश हुआ कि आखिर उसकी मेहनत रंग लाई। उसने पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई।

यह अवस्था उस समय के समान है, जो समय हम ध्यान-अभ्यास में व्यतीत करते हैं। उस वक्त हमें लगता है कि समय यूं ही बीत रहा है और हम अंतर में कोई प्रगति नहीं कर रहे हैं। शुरुआती दिनों में हम कोई परिणाम नहीं देखते, लेकिन प्रतिदिन लगातार कोशिश करने पर हम अपने ध्यान को एकाग्र करके जल्द ही अपने अंतर में दिव्य आत्मिक अनुभूतियों का अनुभव कर सकते हैं।

अगर हमें कोई अनुभव नहीं होता है तो हमें निराश नहीं होना चाहिए और निश्चित रूप से हार भी नहीं माननी चाहिए। हमें अपने ध्यान-अभ्यास में दृढ़ रहना चाहिए। एक दिन प्रभु की कृपा से निश्चित ही आध्यात्मिकता का पानी ऊपर आएगा और हम प्रभु की ज्योति और श्रुति का अनुभव कर अपनी आत्मा की प्यास बुझा लेंगे। प्रभु से एकाकार होना ही जीवन की सार्थकता को सिद्ध करता है।

संत राजिंदर सिंह जी महाराज

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