Valmiki Jayanti 2020: जब महर्षि वाल्‍मीकि ने रचा था संस्‍कृत का पहला श्‍लोक

Valmiki Jayanti 2020 ये तो हमने आपको इससे पहले बताया है कि महर्षि वाल्‍मीकि महाकाव्य के रचयिता से पहले एक डाकू थे। इनका नाम पहले रत्नाकर था। ये जंगल से गुजरते हुए व्यक्ति को लूटते थे। ऐसे ही एक दिन नारद मुनि जंगल से गुजर रहे थे...

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Sat, 31 Oct 2020 07:30 AM (IST) Updated:Sat, 31 Oct 2020 09:30 AM (IST)
Valmiki Jayanti 2020: जब महर्षि वाल्‍मीकि ने रचा था संस्‍कृत का पहला श्‍लोक
Valmiki Jayanti 2020: जब महर्षि वाल्‍मीकि ने रचा था संस्‍कृत का पहला श्‍लोक

Valmiki Jayanti 2020: ये तो हमने आपको इससे पहले बताया है कि महर्षि वाल्‍मीकि महाकाव्य के रचयिता से पहले एक डाकू थे। इनका नाम पहले रत्नाकर था। ये जंगल से गुजरते हुए व्यक्ति को लूटते थे। ऐसे ही एक दिन नारद मुनि जंगल से गुजर रहे थे तब रत्नाकर डाकू ने उन्हें बंदी बना लिया था। लेकिन फिर नारद मुनि की सलाह के बाद उन्होंने पाप का रास्त छोड़ दिया और तपस्या कर ब्रह्मा जी से ज्ञान का वरदान प्राप्त किया। महर्षि वाल्मीकि ने संस्‍कृत साहित्‍य का यह पहला श्‍लोक लिखा था जो कि रामायाण का भी पहला श्‍लोक बना। आइए जानते हैं इसके पीछे क्या कथा है और क्या था वो पहला श्लोक।

ये तो हम सभी जानते हैं कि रामायण संस्‍कृत का पहला महाकाव्‍य है। रामायण के पहले श्लोक में ही श्राप दिया गया था। इस श्राप के पीछे भी एक कथा है। एक दिन वाल्मीकि गंगा नदी में स्नान करने जा रहे थे। लेकिन रास्ते में उन्हें तमसा नदी दिखी जिसका जल काफी स्वच्छ था। उन्होंने सोचा कि क्यों न यहां ही स्नान किया जाए। इसी दौरान उन्होंने एक क्रौंच पक्षी के जोड़े को देखा जो प्रणय-क्रिया में लीन था। उन्हें देखकर महर्षि वाल्मीकि को भी काफी प्रसन्नता हुई। लेकिन तभी अचनाक एक बाण आकर नर पक्षी को लग गया। वह तड़पते-तड़पते वृक्ष से गिर गया और मादा पक्षी विलाप करने लगी।

यह दृश्य देख महर्षि वाल्मीकि बहुत ज्यादा हैरान हो गए। इसी दौरान एक बहेलिया वहां दौड़कर आया। इस बहेलिये ने ही उस नर पक्षी पर बाण चलाया था। यह देख वाल्मीकि जी बेहद दुखी थे और घटना से क्षुब्ध होकर वाल्मीकि जी के मुंह से अचानक ही बहेलिए के लिए एक श्राप निकल जाता है जो इस प्रकार है-

मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।

यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम् ॥

अर्थात्: हे निषाद ! तुमको अनंत काल तक शांति न मिले, क्योंकि तुमने प्रेम, प्रणय-क्रिया में लीन असावधान क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक की हत्या कर दी।

वाल्मीकि के क्रोध और दुःख से निकला हुआ यह संस्कृत का पहला श्लोक माना गया। इसके बाद वाल्मीकि ने भगवान ब्रह्मा के आशीर्वाद से संपूर्ण रामायण की रचना उसी छंद से की, जो श्लोक के रूप में उनके द्वारा जारी किया गया था। इस प्रकार यह श्लोक हिंदू साहित्य में पहले श्लोक के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। वाल्मीकि पहले कवि या आदिकवि और रामायण के पहले कवि के रूप में पूजनीय हैं।

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