Shanivar Vrat Katha: आज पढ़ें शनिवार व्रत कथा, जानें कैसे विक्रमादित्य पर आ गए संकट के बादल

Shanivar Vrat Katha शनि देव को ग्रहों का राजा कहा जाता है। भगवान भोलेनाथ ने इन्हें न्याय के देवता की उपाधि दी है। जो लोग शनिवार का व्रत करते हैं उनको पूजा के समय शनिवार व्रत कथा का श्रवण करना चाहिए।

By Kartikey TiwariEdited By: Publish:Sat, 12 Jun 2021 08:15 AM (IST) Updated:Sat, 12 Jun 2021 08:15 AM (IST)
Shanivar Vrat Katha: आज पढ़ें शनिवार व्रत कथा, जानें कैसे विक्रमादित्य पर आ गए संकट के बादल
Shanivar Vrat Katha: आज पढ़ें शनिवार व्रत कथा, जानें कैसे विक्रमादित्य पर आ गए संकट के बादल

Shanivar Vrat Katha: शनि देव को ग्रहों का राजा कहा जाता है। भगवान भोलेनाथ ने इन्हें न्याय के देवता की उपाधि दी है। शनि देव को बहुत जल्दी क्रोध आता है। इसी क्रोध की वजह से पिता सूर्य से इनकी नाराजगी बनी रहती है। इनके क्रोध से सभी बचने की कोशिश करते हैं, वरना व्यक्ति पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है, इसलिए इन्हें प्रसन्न करने के लिए शनिवार व्रत रखा जाता है। व्यक्ति शनि दोष से बचने और उन्हें शांत रखने के लिए अनेक उपाय करता है। शनि कृपा से व्यक्ति को सुख और वैभव की प्राप्ति होती है। जो लोग शनिवार का व्रत करते हैं, उनको पूजा के समय शनिवार व्रत कथा का श्रवण करना चाहिए।

शनिदेव व्रत कथा

एक बार सभी नौ ग्रहों सूर्य, चंद्र, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु में बहस हो गई। कौन सबसे बड़ा है? आपस में लड़ने के बाद सभी देवराज इंद्र के पास पहुंच गए। इंद्र असमंजस की स्थिति में निर्णय नहीं दे पाएं। परन्तु उन्होंने सभी ग्रहों को सुझाव दिया कि पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य ही इसका फैसला कर सकते हैं क्योंकि वो बहुत ही न्यायप्रिय राजा हैं।

सभी पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य के पास गए और अपने आने का कारण बताया। राजा उनकी समस्या को सुनकर बहुत परेशान हो गए। उनका चिंतित होना लाजिमी था क्योंकि जिसको भी किसी से छोटा बताया तो वही गुस्सा कर जाएगा। राजा के काफी सोच-विचार के बाद उन्हें एक उपाय सूझा। उन्होंने सुवर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से नौ सिंहासन का निर्माण करवाया। उन्हें उपर्युक्त क्रम में रख दिया गया।

सबसे निवेदन किया गया कि क्रमानुसार सिंहासन पर आसन ग्रहण करें। शर्त रखा गया कि जो सबसे अंतिम में सिंहासन पर आसन ग्रहण करेगा, वही सबसे छोटा माना जाएगा। जिसकी वजह से शनि देव सबसे बाद में आसन प्राप्त कर सके और सबसे छोटे कहलाए। क्रोध के आवेश में आकर शनिदेव ने सोचा कि राजा ने यह सब जानबूझ कर किया है। कुपित होकर राजा से कहा कि राजा तू मुझे नहीं जानता। सूर्य एक राशि में एक महीना, चंद्रमा सवा दो महीने दो दिन, मंगल डेढ़ महीना, बृहस्पति तेरह महीने, बुद्ध और शुक्र एक-एक महीने विचरण करते हैं, लेकिन मैं ढाई से साढ़े-सात साल तक रहता हूं। मैंने बड़े-बड़े का विनाश किया है। श्री राम की साढ़ेसाती आने पर उन्हें जंगल-जंगल भटकना पड़ा और रावण की आने पर लंका को बंदरों की सेना से परास्त होना पड़ा।

क्रोधित शनिदेव ने राजा से कहा कि अब आपको सावधान रहने की जरूरत है। इतना कहकर शनि देव कुपित अवस्था में वहां से चले गये।

समय गुजरता गया और कालचक्र का पहिया घूमते हुए राजा की साढ़ेसाती आ ही गई। तब शनि देव घोड़ों का सौदागर बनकर राजा के राज्य में गए। उनके साथ अच्छे नस्ल के बहुत सारे घोड़े थे। जब राजा को सौदागर के घोड़ों का पता चला तो अश्वपाल को अच्छे घोड़े खरीदने के लिए भेजा। अश्वपाल ने कई अच्छे घोड़े खरीदे, इसके अलावा सौदागर ने उपहार स्वरुप एक सर्वोत्तम नस्ल के घोड़े को राजा की सवारी हेतु दिया।

राजा विक्रमादित्य जैसे ही उस घोड़े पर बैठे वह सरपट वन की ओर भागने लगा। जंगल के अंदर पहुंच कर वह गायब हो गया। भूखा-प्यास की स्थिति में राजा जंगल में भटकते रहे। अचानक उन्हें एक ग्वाला दिखाई दिया, जिसने राजा की प्यास बुझाई। राजा ने प्रसन्नता में उसे अपनी अंगूठी देकर नगर की तरफ चले गए। वहां एक सेठ की दूकान पर पहुंच कर उन्होंने जल पिया और अपना नाम वीका बताया। भाग्यवश उस दिन सेठ की खूब आमदनी हुई। सेठ खुश होकर उन्हें अपने साथ घर लेकर गया।

सेठ के घर में खूंटी पर एक हार टंगा था, जिसको खूंटी निगल रही थी। कुछ ही देर में हार पूरी तरह से गायब हो गई। सेठ वापस आया तो हार गायब था। उसे लगा की वीका ने ही उसे चुराया है। सेठ ने वीका को कोतवाल से पकड़वा दिया और दंड स्वरूप राजा उसे चोर समझ कर हाथ-पैर कटवा दिया। अंपग अवस्था में उसे नगर के बाहर फेंक दिया गया। तभी वहां से एक तेली निकल रहा था, जिसको वीका पर दया आ गई। उसने वीका को अपनी गाड़ी में बैठा लिया। वीका अपनी जीभ से बैलों को हांकने लगा।

कुछ समय पश्चात राजा की शनि दशा समाप्त हो गयी। वर्षा काल आने पर वीका मल्हार गाने लगा। एक नगर की राकुमारी मनभावनी ने मल्हार सुनकर मन ही मन प्रण कर लिया कि जो भी इस राग को गा रहा है, वो उसी से ही विवाह करेगी। उन्होंने दासियों को खोजने के लिए भेजा पंरतु वापस आकर उन सभी ने बताया कि वह एक अपंग आदमी है। राजकुमारी यह जानकर भी नहीं मानी और अगले दिन ही वह अनशन पर बैठ गयीं। जब लाख समझाने पर राजकुमारी नहीं मानी, तब राजा ने उस तेली को बुलावा भेजा और वीका से विवाह की तैयारी करने के लिए कहा गया।

वीका से राजकुमारी का विवाह हो गया। एक दिन वीका के स्वप्न में शनि देव ने आकर कहा कि देखा राजन तुमने मुझे छोटा बता कर कितना दुःख झेला है। राजा ने क्षमा मांगते हुए हाथ जोड़कर कहा कि हे शनि देव! जैसा दुःख मुझे दिया है, किसी और को ऐसा दुख मत देना। शनि देव इस विनती को मान गये और कहा कि मेरे व्रत और कथा से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। जो भी नित्य मेरा ध्यान करेगा और चींटियों को आटा डालेगा, उसकी सारी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी।

शनि देव ने राजा को हाथ पैर भी वापस दिए। दूसरे दिन जब सुबह राजकुमारी की आंख खुली तो वह आश्चर्यचकित हो गई। वीका ने मनभावनी को बताया कि वह उज्जैन का राजा विक्रमादित्य है। मनभावनी खुशी से फूले नहीं समा रही थी। राजा और नगरवासी सभी अत्यंत प्रसन्न हुए। सेठ ने जब यह सुना तो वह पैरों पर गिरकर क्षमा मांगने लगा। राजा ने कहा कि यह सब शनि देव के कोप का प्रभाव था और इसमें किसी का कोई दोष नहीं है। सेठ ने निवेदन करते हुए कहा कि मुझे शांति तभी मिलेगी, जब आप मेरे घर चलकर भोजन करेंगे। सेठ ने कई प्रकार के व्यंजनों से राजा का सत्कार किया। जब राजा भोजन कर रहे थे, तभी जो खूंटी हार निगल गयी थी, वही अब उसे उगल रही थी।

सेठ ने अनेक मोहरें देकर राजा का धन्यवाद किया और अपनी कन्या श्रीकंवरी से पाणिग्रहण का निवेदन किया। राजा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। राजा अपनी दोनों रानियों मनभावनी और श्रीकंवरी को लेकर उज्जैन नगरी लौट आएं। सारे नगर में दीपमाला और खुशी मनायी। राजा ने घोषणा करते हुए कहा कि मैंने शनि देव को सबसे छोटा बताया था, लेकिन असल में वही सर्वोपरि हैं। तब से सारे राज्य में शनि देव की पूजा और कथा नियमित होने लगी। सारी प्रजा के बीच खुशी और आनंद का वातावरण बन गया। शनि देव के व्रत की कथा को जो भी सुनता या पढ़ता है, उसके सारे दुःख दूर हो जाते हैं।

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