ऊर्जा: आत्मनियंत्रण- मनुष्य में आत्मबल का निर्माण आत्मनियंत्रण से होता है, आत्मनियंत्रण सफलता की ओर करता है अग्रसर
आत्मनियंत्रण के बल पर ही हम आत्मसौंदर्य को प्राप्त कर सकते हैं। हमारा मन नियंत्रित होगा तो हमारा व्यक्तित्व निश्चित रूप से प्रखर होगा। हम आत्मिक रूप से सशक्त होंगे। हमारे चरित्र में भटकाव नहीं रहेगा। हमारी विश्वसनीयता बढ़ जाएगी।
मनुष्य अपनी उन्नति का कारक और निर्धारक स्वयं है। उसके कर्म ही उसे महान बनाते हैं। लक्ष्य के प्रति समर्पण ही उसे इतिहास रचने की ओर उन्मुख करता है। हमारे भीतर आत्मबल का निर्माण आत्मनियंत्रण से होता है। आत्मनियंत्रण ही हमें सफलता की ओर अग्रसर करता है। आत्मनियंत्रण का अधिष्ठान धैर्य, संयम एवं समर्पण है। इन्हीं गुणों से आत्मनियंत्रण को परिभाषित किया जा सकता है। आत्मनियंत्रण जिस व्यक्ति के भीतर होता है, वह आत्मशक्ति को उत्पन्न करने की सामथ्र्य रखता है। यही आत्मशक्ति हमें हमारे ध्येय को प्राप्त करने में सहायक बनती है। जब हम स्वयं के नियंत्रण में होते हैं तो वही करते हैं जो श्रेष्ठ होता है। जो स्वयं के अथवा सामने वाले के हित में होता है। नियंत्रण सृजन का कारक है। नियंत्रणहीन वस्तु अथवा व्यक्ति सदैव विपदा को आमंत्रित करते हैं। जब तक पतंग नियंत्रण में होती है तो वह नई ऊंचाइयों को प्राप्त करती है। जैसे ही पतंग उड़ाने वाले का उससे नियंत्रण हट जाता है अथवा डोर टूट जाती है तो पतंग अवनति को प्राप्त होकर फट जाती है। ठीक इसी तरह यदि हम स्वयं पर नियंत्रण खो देते हैं तो हमारी अवनति निश्चित है।
आत्मनियंत्रण के बल पर ही हम आत्मसौंदर्य को प्राप्त कर सकते हैं। हमारा मन नियंत्रित होगा तो हमारा व्यक्तित्व निश्चित रूप से प्रखर होगा। हम आत्मिक रूप से सशक्त होंगे। हमारे चरित्र में भटकाव नहीं रहेगा। हमारी विश्वसनीयता बढ़ जाएगी। आत्मनियंत्रण का मार्ग हमारे मन से होकर गुजरता है। यदि हमारे भीतर मन को नियंत्रित करने की सामथ्र्य है तो निश्चित ही हम स्वयं पर नियंत्रण कर लेंगे। हम जब भी कोई कार्य प्रारंभ करते हैं तो उस समय आत्मनियंत्रण अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि नए कार्य को प्रारंभ करने में कठिनाई आ सकती है। यदि हमारा मन स्थिर होगा तो हमारे संकल्प भी मजबूत होंगे और हम कार्य को सिद्धि तक पहुंचा सकते हैं। हम योग-साधना के माध्यम से भी आत्मनियंत्रण का अभ्यास कर सकते हैं।
- ललित शौर्य