ऊर्जा: विज्ञान और धर्म- धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है और विज्ञान के बिना धर्म अंधा
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से मिलने पर अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा- विज्ञान वही समझ सकते हैं जो सत्य के लिए समर्पित हैं। इस पर गुरुदेव ने कहा- मानवता के बिना सत्य की खोज अधूरी है। ऐसा विज्ञान दुनिया का भला नहीं कर सकता।
विज्ञान को हमेशा धर्म से अलग करके देखा गया है। इसका कारण लोगों की धर्म के प्रति गलत अवधारणा है। धर्म को मात्र कर्मकांड का विषय मानना अनुचित है। धर्म का कट्टरता से भी कोई संबंध नहीं। धर्म और अध्यात्म स्वयं में विज्ञान हैं। विज्ञान का तर्क है कि वह सत्य की खोज करता है, जबकि धर्म और अध्यात्म की बुनियाद मिथक पर टिकी है। वास्तव में ऐसा नहीं है। जगत के दो रूप हैं-स्थूल एवं सूक्ष्म। विज्ञान केवल स्थूल जगत का अध्ययन करता है, पर धर्म-अध्यात्म सूक्ष्म जगत का। दोनों ही सत्य के अन्वेषक हैं, उद्देश्य भी एक हैं। केवल कार्य क्षेत्र अलग हैं। विवेकानंद कहते हैं-जहां विज्ञान की खोज समाप्त होती है, वहां अध्यात्म की शुरू होती है।
विज्ञान लोक कल्याण के लिए सत्य की खोज करता है। जबकि धर्म-अध्यात्म लोककल्याण और आत्मकल्याण दोनों के लिए। विज्ञान लोककल्याण करेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं, क्योंकि उसका परिणाम मनुष्य की प्रवृत्ति पर निर्भर करेगा। यदि चिंतन और दिशा सही नहीं होगी तो परिणाम का विपरीत होना निश्चित है। आज तो विज्ञान सिर चढ़कर बोल रहा है, पर समाज और दुनिया में क्या हो रहा है, किसी से छिपा नहीं। यह विज्ञान और धर्म की बढ़ती दूरी का परिणाम है।
एक बार गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से मिलने पर अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा- विज्ञान वही समझ सकते हैं, जो सत्य के लिए समर्पित हैं। इस पर गुरुदेव ने कहा- मानवता के बिना सत्य की खोज अधूरी है। ऐसा विज्ञान दुनिया का भला नहीं कर सकता। धर्म दुष्प्रवृत्तियों से निवृत्ति का मार्ग है, जो मानव को मानवता के पथ पर अग्रसर करता है। अत: विज्ञान और धर्म का मेल जरूरी है। आइंस्टीन को भी कहना पड़ा था-धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है और विज्ञान के बिना धर्म अंधा। यूरोप की सर्न लैब में खोज करते हुए वैज्ञानिकों द्वारा मूलकण का नाम गाड पार्टिकल देना विज्ञान के साथ धर्म एवं अध्यात्म के संबंध को सशक्त रूप से रेखांकित करता है।
- डा. सत्य प्रकाश मिश्र