Sant Ravidas Jayanti 2021: कौन थे संत रविदास? पढ़ें उनके बारे में महत्वपूर्ण बातें और उपदेश

Sant Ravidas Jayanti 2021 भक्तिकालीन संत व कवि रविदास का जीवन व उनकी शिक्षाएं अत्यंत प्रेरक हैं। वे महान आध्यात्मिक समाज सुधारक थे। उन्होंने कहा मनोवांक्षित जन्म किसी के वश की बात नहीं है। जन्म ईश्वर के हाथ में है।

By Kartikey TiwariEdited By: Publish:Wed, 24 Feb 2021 01:00 PM (IST) Updated:Thu, 25 Feb 2021 07:05 AM (IST)
Sant Ravidas Jayanti 2021: कौन थे संत रविदास? पढ़ें उनके बारे में महत्वपूर्ण बातें और उपदेश
Sant Ravidas Jayanti 2021: कौन थे संत रविदास? पढ़ें उनके बारे में महत्वपूर्ण बातें और उपदेश

Sant Ravidas Jayanti 2021: भक्तिकालीन संत व कवि रविदास का जीवन व उनकी शिक्षाएं अत्यंत प्रेरक हैं। वे महान आध्यात्मिक समाज सुधारक थे। उन्होंने कहा, मनोवांक्षित जन्म किसी के वश की बात नहीं है। जन्म ईश्वर के हाथ में है। सभी ईश्वर की संतान हैं अत: जन्म के आधार पर भेदभाव करना ईश्वर की व्यवस्था को नकारने जैसा है। वे कहते हैं- रैदास जन्म के कारणै, होत न कोई नीच। नर को नीच करि डारि हैं, औछे करम की कीच।। मान्यता है कि संत रविदास ने तपोबल से सिद्धियां हासिल कीं, चमत्कार किए, लेकिन कभी अहंकार नहीं किया।

उन्होंने घृणा का प्रतिकार घृणा से नहीं, बल्कि प्रेम से किया। हिंसा का हिंसा से नहीं, बल्कि अहिंसा और सद्भावना से किया। इसलिए वे प्रत्येक व्यक्ति के प्रेरणास्त्रोत बने। उन्होंने निर्भीकता से अपनी बात कही। समाज को नई राह दिखाई और कुरीतियों को दूर करने के लिए सच और साहस को आधार बनाया। संत रविदास को वेदों पर अटूट विश्वास था। वे सभी को वेद पढ़ने का उपदेश देते थे।

वे कहते हैं-'जन्म जात मत पूछिए, का जात और पाँत। रैदास पूत सम प्रभु के कोई नहिं जात-कुजात।।' वे कहते हैं-'एकै माटी के सभै भांडे, सभ का एकै सिरजनहार। रैदास व्यापै एकौ घट भीतर, सभ को एकै घड़ै कुम्हार।। वैदिक वर्ण व्यवस्था में व्यक्ति के गुण, कर्म और स्वभाव को महत्त्‍‌व दिया गया है। संत रैदास ने मांसाहार, अनैतिकता, धनलिप्सा, दुराचार को भी असामाजिक घोषित किया। उन्होंने सभी तरह की धार्मिक संकीर्णताओं, रूढि़यों, भेदभाव का विरोध करते हुए कहा, इस तरह की प्रवृत्तियों से समाज कमजोर और अपवित्र बनता है।

उन्होंने धार्मिक स्थलों के बजाय व्यक्ति के बेहतर कमरें को महत्वपूर्ण माना और हृदय की पवित्रता को जरूरी बताया। वे कहते हैं-'का मथुरा का द्वारका, का काशी हरिद्वार। रैदास खोजा दिल आपना, तउ मिलिया दिलदार।। आडंबरों का विरोध करने के कारण उनकी निंदा-आलोचना भी की गई, लेकिन उन्होंने इसकी कभी परवाह नहीं की।

उन्होंने धार्मिक एकता स्थापित करने के प्रयास किए। संत रविदास ने जिसे समाज, राष्ट्र और संस्कृति के उन्नयन में नुकसानदायक पाया, उसका खुलकर विरोध किया। इस तरह एक साधक, साधु, योगी, समाज सुधारक, कवि और सिद्ध के रूप में संत रविदास आज भी मानव समाज के लिए प्रेरक, शिक्षक, उपदेशक, मानव मूल्यों के रक्षक के रूप में दिखाई पड़ते हैं।

अखिलेश आर्येन्दु, आध्यात्मिक विषयों के लेखक

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