Motivational Story: समस्याओं से आप भी हैं परेशान, तो पढ़ें भगवान ​बुद्ध से जुड़ी यह प्रेरक कथा

Motivational Story हर​ व्यक्ति के जीवन में कुछ न कुछ समस्याएं हैं। जागरण अध्यात्म में आज हम आपको भगवान बुद्ध से जुड़ी हुई एक सच्ची घटना बताने जा रहे हैं जिसमें छिपे संदेश से आप अपने जीवन की समस्याओं से पार पाने में सफल हो सकते हैं।

By Kartikey TiwariEdited By: Publish:Mon, 01 Mar 2021 11:52 AM (IST) Updated:Mon, 01 Mar 2021 11:52 AM (IST)
Motivational Story: समस्याओं से आप भी हैं परेशान, तो पढ़ें भगवान ​बुद्ध से जुड़ी यह प्रेरक कथा
Motivational Story: समस्याओं से आप भी हैं परेशान, तो पढ़ें भगवान ​बुद्ध से जुड़ी यह प्रेरक कथा

Motivational Story: हर​ व्यक्ति के जीवन में कुछ न कुछ समस्याएं हैं। कुछ लोग उन समस्याओं से सफलापूर्वक बाहर निकल जाते हैं, तो कुछ लोग उससे विचलित हो जाते हैं। वे समस्याएं उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती बन जाती हैं। उनको इससे निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखता है। जागरण अध्यात्म में आज हम आपको भगवान बुद्ध से जुड़ी हुई एक सच्ची घटना बताने जा रहे हैं, जिसमें छिपे संदेश से आप अपने जीवन की समस्याओं से पार पाने में सफल हो सकते हैं।

एक समय की बात है, जब महात्मा बुद्ध अपने एक शिष्य के साथ घने जंगल से गुजर रहे थे। काफी समय तक पैदल यात्रा करने के बाद वे दोनों दोपहर को एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने रुके। प्यास के मारे दोनों का गला सूख गया था। उन्होंने शिष्य से कहा कि प्यास लग रही है, कहीं पानी मिले, तो लेकर आओ। भगवान बुद्ध की बात सुनकर शिष्य ने कहा कि हां, उसे भी प्यास लगी है। पानी लेकर आता हूं।

वह शिष्य कुछ दूरी पर गया तो उसे एक पहाड़ी से झरने के गिरने की आवाजें सुनाई दे रही थीं। वह उस ओर ही बढ़ गया। पानी लेने के लिए वह झील के पास पहुंच गया। लेकिन तभी कुछ पशु झील में दौड़ने लगे और देखते ही देखते झील का पानी गंदा हो गया। उनके खुरों से कीचड़ निकलने लगे, इससे झील का पानी गंदा हो गया। वह पानी लिए बेगैर ही भगवान बुद्ध के पास वापस आ गया।

उसने भगवान बुद्ध से कहा कि झील का पानी निर्मल नहीं है, मैं दूर पड़ने वाली नदी से पानी ले आता हूं। बुद्ध ने उसे उसी झील का पानी ही लाने को कहा। शिष्य फिर खाली हाथ लौट आया। पानी अब भी गंदा था, बुद्ध ने शिष्य को फिर वापस भेजा। तीसरी बार शिष्य जब झील पहुंचा, तो झील अब बिल्कुल निर्मल और शांत थी। कीचड़ बैठ गया था और जल निर्मल हो गया था। तब वह पानी लेकर लौटा।

तब भगवान बुद्ध ने अपने शिष्य को समझाया। उन्होंने कहा कि यही स्थिति हमारे मन की भी है। जीवन की दौड़-भाग मन को भी विक्षुब्ध कर देती है, मथ देती है। पर कोई यदि शांति और धीरज से उसे बैठा देखता है, तो कीचड़ अपने आप नीचे बैठ जाता है और सहज निर्मलता का आगमन हो जाता है।

कथा का सार: जीवन की कठिनाइयों से परेशान होने की आवश्यकता नहीं है, धैर्य रखने से वे दूर हो जाती हैं।

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