ऊर्जा: विवेक की शक्ति- सांसारिक जीवन में सामान्यजन जब विवेक विरुद्ध कार्य करता है तो उसकी आत्मा का होता है पतन

अपमान दुत्कार स्वाभिमान गिरवी रखकर मिली उपलब्धि व्यक्ति को भीतर ही भीतर खोखला और कमजोर करती है। मति की गति सकारात्मक है तो जीवन आनंदमय रहता है। विवेक नष्ट पर जो कदम उठते हैं वे अपमान और श्मशान की ओर ही ले जाते हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 03:58 AM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 03:58 AM (IST)
ऊर्जा: विवेक की शक्ति- सांसारिक जीवन में सामान्यजन जब विवेक विरुद्ध कार्य करता है तो उसकी आत्मा का होता है पतन
व्यक्ति के जीवन पर उसके रहन-सहन, चिंतन-मनन और परिवेश आदि का प्रभाव पड़ता है।

मानव जीवन में कर्म की महत्वपूर्ण भूमिका मानी गई है। ये कर्म मानव की विवेक शक्ति से ही संचालित होते हैं। सांसारिक जीवन में सामान्यजन जब अपने विवेक रूपी धर्म के विरुद्ध कार्य करता है तो उसके आत्मा का पतन होता है। गलती के बाद जब मन धिक्कारता है तो आत्मग्लानि भी होती है। व्यक्ति का मन मति रूपी जननी के गर्भ में जाता है तो कुछ दिनों तक वह व्यक्ति आंतरिक पश्चाताप करता है, परंतु यह पश्चाताप ज्यादा दिन नहीं टिक पाता तो फिर गलतियों को दोहरा बैठता है। अपमान, दुत्कार, स्वाभिमान गिरवी रखकर मिली उपलब्धि व्यक्ति को भीतर ही भीतर खोखला और कमजोर करती है। मति की गति सकारात्मक है तो जीवन आनंदमय रहता है। वहीं विवेक नष्ट पर जो कदम उठते हैं वे अपमान और श्मशान की ओर ही ले जाते हैं।

महाभारत युद्ध के दौरान विवेक रूपी कृष्ण पंच ज्ञानेंद्रियों के स्वरूप पांडवों की रक्षा करते हैं। इसीलिए निंदनीय कर्म रूपी कौरव पांडवों के आगे घुटने टेकते हैं। व्यक्ति की मति ही व्यक्ति के जीवन गति को निर्धारित करती है। अब तो वैज्ञानिकों ने भी मान लिया है कि जैसा अन्न होगा वैसा ही मन होगा और फिर उसी अनुरूप जीवन होगा। यहां अन्न का आशय खाद्य पदार्थ से न होकर सद्विचार और सात्विक चिंतन से लिया जाना चाहिए, क्योंकि व्यक्ति के जीवन पर उसके रहन-सहन, चिंतन-मनन और परिवेश आदि का पूरा प्रभाव पड़ता है।

आत्मा की कोई अद्भुत शक्ति और वजन तो है ही कि जब शरीर में आत्मा रहती है तो व्यक्ति पानी मे डूब जाता है और आत्मा निकल जाने के बाद पार्थिव शरीर डूबने के बजाय तैरता है। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि हर व्यक्ति के जीवन में वैचारिक और मानसिक धरातल पर जन्म-मरण का चक्र चलता रहता है। व्यक्ति को इस चक्र से छुटकारा पाने के लिए अपने विवेक और आत्मबल को खूब मजबूत बनाना चाहिए। उसी से आत्मा और शरीर के साथ समग्र व्यक्तित्व को शक्ति मिलेगी।

-सलिल पांडेय  

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