Pongal 2021: आज है पोंगल, जानें इस पर्व की खासियत और इसका इतिहास

Pongal 2021 पोंगल तमिल सौर कैलेंडर के ताई महीने की शुरुआत में तमिल समुदाय द्वारा मनाया जाता है। इसे फसल उत्सव भी कहा जाता है। पोंगल इस वर्ष 14 जनवरी गुरुवार से शुरू होकर 17 जनवरी रविवार तक चलेगा।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Wed, 13 Jan 2021 10:34 AM (IST) Updated:Thu, 14 Jan 2021 02:03 PM (IST)
Pongal 2021: आज है पोंगल, जानें इस पर्व की खासियत और इसका इतिहास
Pongal 2021: आज है पोंगल, जानें इस पर्व की खासियत और इसका इतिहास

Pongal 2021: पोंगल तमिल सौर कैलेंडर के ताई महीने की शुरुआत में तमिल समुदाय द्वारा मनाया जाता है। इसे फसल उत्सव भी कहा जाता है। पोंगल इस वर्ष आज 14 जनवरी, गुरुवार से शुरू होकर 17 जनवरी, रविवार तक चलेगा। यह त्यौहार सूर्य देवता को समर्पित है। कई जगहों पर इसे ही मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। पोंगल 4 दिनों तक चलता है और ये चार दिन भोगी पोंगल, सूर्य पोंगल, माटू पोंगल और कन्नुम पोंगल के नाम से जाने जाते हैं।

पोंगल की खासियत:

इस त्यौहार पर पोंगल नाम का एक पकवान बनाया जाता है। इसी के नाम पर इस त्यौहार का नाम पड़ा है। पोंगल, चावल को दूध में उबालकर और उसमें गुड़ डालकर बनाया जाता है। इसे सबसे पहले देवी-देवताओं को चढ़ाया जाता है और फिर परिवार द्वारा ग्रहण किया जाता है।

पोंगल का इतिहास:

मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन काल में इस उत्सव को द्रविण शस्य उत्सव के रूप में मनाया जाता था। तिरुवल्लुर में एक मंदिर स्थित है जहां एक शिलालेख में लिखा है कि किलूटूंगा राजा पोंगल के अवसर पर गरीबों में जमीन और मंदिर दान किया करते थे। इस दिन नृत्य समारोह होता था। साथ ही सांड के साथ जंग भी लड़ी जाती थी। जो भी यह जंग जीतता था उसे कन्याएं वरमाला डालकर अपना पति चुनती थी।

एक अन्य कथा के मुताबिक, मदुरै में एक पति-पत्नी रहते थे जिनका नाम कण्णगी और कोवलन था। एक बार कण्णगी के कोवलन से पायल बेचने कहा और वो सुनार के पास चला गया। सुनार ने राजा से कहा कि जो पायल वो बेचने आया है वह रानी की पायल से मिलता-जुलता है जो चोरी हो चुका है।

बिना जाने समझे राजा ने कोवलन को इस अपराध के लिए फांसी दे दी। इस बात से कण्णगी बेहद क्रोधित हो गई और उसने शिवजी की तपस्या की। उसने वरदान मांगा कि राजा और उसका राज्य नष्ट हो जाए। जब यह बात राज्य की जनता को पता चली तो महिलाओं ने काली माता की अराधना किलिल्यार नदी के किनारे की। वे काली माता से अपने राजा के जीवन एवं राज्य की रक्षा करने का वरदान मांगने लगी।

मां काली महिलाओं के व्रत से बेहद प्रसन्न हो गईं। उन्होंने कण्णगी में दया का भाव जाग्रत किया। साथ ही राजा व उसके राज्य की रक्षा की। तब से काली मंदिर में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा और ऐसे ही चार दिनों के पोंगल का समापन होता है।

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