Pitru Paksha 2021: आज से पितृ पक्ष का प्रारंभ, जानें पितरों के श्राद्ध की सही तिथि

Pitru Paksha 2021 पितृ पक्ष 21 सितंबर से शुरू हो कर 06 अक्टूबर तक रहेगा। पितर पक्ष की अलग-अलग तिथि पर पितरों के अनुरूप श्राद्ध और तर्पण करने का विधान है। आइए जानते हैं कि पितर पक्ष की किस तिथि पर किन पितरों का श्राद्ध करना चाहिए....

By Jeetesh KumarEdited By: Publish:Sun, 19 Sep 2021 03:38 PM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 07:47 AM (IST)
Pitru Paksha 2021: आज से पितृ पक्ष का प्रारंभ, जानें पितरों के श्राद्ध की सही तिथि
कल से प्रारंभ हो रहा है पितर पक्ष,जानें पितरों के श्राद्ध की सही तिथि

Pitru Paksha 2021: सनातन धर्म में पितरों आर्थात मृत परिजनों और पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए विशेष विधान है। सनातन हिंदू धर्म में मान्यता है कि मृत्यु के बाद भी हमारे पूर्वज और परिजन पितरों के रूप में पितर लोक में वास करते हैं। उनकी तृप्ति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण या श्राद्घ का विधान है। आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अश्विन मास की अमावस्या तिथि तक पितृ पक्ष माना जाता है। इस साल पितर पक्ष 21 सितंबर से शुरू हो कर 06 अक्टूबर तक रहेगा। पितर पक्ष की अलग-अलग तिथि पर पितरों के अनुरूप श्राद्ध और तर्पण करने का विधान है। आइए जानते हैं कि पितर पक्ष की किस तिथि पर किन पितरों का श्राद्ध करना चाहिए....

1-पितर पक्ष में प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तिथि तक 15 तिथियां आती हैं। मान्यता है कि शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु हुई हो, उसका उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए। इसके अलावा पितर पक्ष की कुछ महत्वपूर्ण तिथियों पर अलग से श्राद्घ करने का भी विधान है।

2- पितर पक्ष की शुरूआत आश्विन कृष्ण प्रतिपदा तिथि के दिन से होती है। जिन व्यक्तियों की मृत्यु पूर्णिमा तिथि को हुई हो उनका श्राद्ध पूर्णिमा या अमावस्या तिथि के दिन ही करना चाहिए।

3- सुहागिन स्त्रियों या माताओं व जिन स्त्रियों की मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो उनका श्राद्ध पितर पक्ष की नवमी तिथि को करना चाहिए। इस तिथि को मातृ नवमी या श्राद्ध नवमी के नाम से जाना जाता है।

4- सन्यासियों का श्राद्ध पितर पक्ष की एकादशी व द्वादशी तिथि पर करने का विधान है।

5- त्रयोदशी तिथि पर बच्चों का श्राद्ध किया जाता है।

6- ज्ञात-अज्ञात या जिन पितरों का श्राद्ध उनकी तिथि पर न कर पायें हो तो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि पर करने का विधान है। इस कारण ही इसे सर्व पितृ अमावस्या या महालय अमावस्या भी कहा जाता है।

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