Pauranik Kathayen: जब माता पार्वती ने शंकर जी, श्री हरि, कार्तिकेय, नारद जी और रावण को दिया था श्राप

Pauranik Kathayen एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती ने जुआ खेलने की अभिलाषा जताई। दोनों ने जुआ खेला। लेकिन शंकर जी माता पार्वती के सामने सब कुछ हार गए। फिर शंकर जी ने अपनी लीला रची और पत्तो के वस्त्र पहनकर गंगा के तट पर चले गए।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Sun, 17 Jan 2021 11:20 AM (IST) Updated:Sun, 17 Jan 2021 02:35 PM (IST)
Pauranik Kathayen: जब माता पार्वती ने शंकर जी, श्री हरि, कार्तिकेय, नारद जी और रावण को दिया था श्राप
Pauranik Kathayen: जब माता पार्वती ने शंकर जी, श्री हरि, कार्तिकेय, नारद जी और रावण को दिया था श्राप

Pauranik Kathayen: एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती ने जुआ खेलने की अभिलाषा जताई। दोनों ने जुआ खेला। लेकिन शंकर जी माता पार्वती के सामने सब कुछ हार गए। फिर शंकर जी ने अपनी लीला रची और पत्तो के वस्त्र पहनकर गंगा के तट पर चले गए। जब यह बात कार्तिकेय जी को पता चली तो वो माता पार्वती से सारी वस्तुएं लेने गए। इस बार जो खेल हुआ उसमें माता पार्वती पराजित हुईं। कार्तिकेय जी ने सारा सामान लिया और शंकर जी के पास चले गए। माता पार्वती बेहद परेशान हो गईं कि सारी वस्तुएं भी गईं और पति भी। यह सारी बात पार्वती जी ने पुत्र गणेश से कही। तब गणेश जी भगवान शंकर के पास खेल खेलने पहुंच गए।

शंकर जी और गणेश जी ने जुआ खेला और गणेश जी विजय हुए। उन्होंने अपने जीत का समाचार माता को सुनाया। इस पर माता पार्वती ने कहा कि तुम्हें अपने पिता को साथ लेकर आना था। यह सुन गणेश जी शंकर जी की खोज में निकल गए। उनकी भेंट गणेश जी से हरिद्वार में हुई। भोलेनाथ हरिद्वार में विष्णु जी और कार्तिकेय के साथ भ्रमण कर रहे थे।

गणेश जी ने उनसे वापस चलने के लिए कहा तो पार्वती से नाराज भोलेनाथ ने लौटने से मना कर दिया। फिर गणेश जी के वाहन मूषक को भोलेनाथ के भक्त रावण ने बिल्ली बनकर डराया और गणेश जी भाग गए। फिर विष्णु जी ने पासा का रूप धारण किया। गणेश जी ने माता पार्वती के उदास होने की बात अपने पिता को कही। भोलेनाथ ने कहा कि उन्होंने एक नया पासा बनाया है। अगर माता पार्वती खेल खेलने को तैयार होती हैं तो वो वापस चलेंगे।

गणेश जी ने भोलेनाथ को आश्वासन दिया कि वो जरूर खेलेंगी। यह सुन भोलेनाथ वापस चल पड़े। जब वो वहां पहुंचे तो गणेश जी ने पार्वती जी को खेल खेलने के लिए कहा। इस पर माता पार्वती हंसी और कहने लगीं कि अभी उनके पास ऐसा क्या है जो उनके साथ खेल खेला जाए।

यह सुन भोलेनाथ चुप हो गए। यह सुन नारद जी ने अपनी वीणा आदि सामग्री उन्हें दे दी। खेल शुरू हुआ और भोलेनाथ हर बार जीतने लगे। जब दो बार पांसा फेका गया तो गणेश जो समझ आ गया कि यह पासा भगवान विष्णु है। यह बात उन्होंने माता पार्वती को बताई। सारी बात सुनकर पार्वती जी को क्रोध आ गया।

रावण ने माता को समझाने का प्रयास किया। लेकिन उनका क्रोध शांत नहीं हुआ। क्रोध में उन्होंने श्राप दे दिया कि गंगा की धारा का बोझ उनके सिर पर रहेगा। नारद जी को श्राप मिला का वो एक स्थान पर ही रहेंगे। श्री हरि को श्राप दिया कि रावण आपका शत्रु होगा। रावण को श्राप दिया कि विष्णु ही तुम्हारा विनाश करेंगे। कार्तिकेय को श्राप मिला कि वो हमेशा बाल रूप में ही रहेंगे।  

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