Pauranik Kathayen: जानें आखिर क्यों चढ़ाई जाती है गणेश जी को 21 दूर्वा की 21 गांठें
Pauranik Kathayen आज बुधवार है यानी गणेश जी का दिन। गणेश जी की पूजा के दौरान दूब या दूर्वा चढ़ाए जाने का विधान है। मान्यता है कि गणेश जी को 21 दूर्वा चढ़ाई जाती है। 21 दूर्वा को इक्ट्ठा कर एक गांठ बांधकर रखा जाता है।
Pauranik Kathayen: आज बुधवार है यानी गणेश जी का दिन। गणेश जी की पूजा के दौरान दूब या दूर्वा चढ़ाए जाने का विधान है। मान्यता है कि गणेश जी को 21 दूर्वा चढ़ाई जाती है। 21 दूर्वा को इक्ट्ठा कर एक गांठ बांधकर रखा जाता है। यह गणपति बप्पा को अति प्रिय है। इस तरह की 21 गांठों को गणेश जी के मस्तक पर अर्पित किया जाता है। गणपति बप्पा को दूब की 21 गांठें चढ़ाए जाने के पीछे एक एक पौराणिक कथा छिपी हुई है। यहां हम आपको इसी कथा की जानकारी दे रहे हैं।
जानें गणेश जी को क्यों चढ़ाई जाती हैं 21 दूर्वा:
पौराणिक कथा के मुताबिक, प्राचीन समय में अनलासुर नाम का एक विशाल दैत्य था। इसके अत्याचार इतने बढ़ चुके थए की तीनों लोकों में हाहाकार मचा गया था। अनलासुर ऐसा दैत्य था जो ऋषि, मुनियों और आम लोगों को जिंदा ही निगल जाता था। इस विशालकाय दैत्य से सभी तंग आ चुके थे। इस परेशानी से मुक्ति पाने के लिए ऋषि, मुनियों, देवी-देवता समेत देवराज इंद्र महादेव के पास गए। सभी ने मिलकर भोलेशंकर से प्रार्थना की कि वो उन्हें अनलासुर दैत्य से मुक्ति दिलाएं। शिव जी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की। साथ ही कहा कि अनलासुर दैत्य का अंत केवल गणेश के द्वारा ही संभव है।
गणेश जी ने ऋषि, मुनियों, देवी-देवताओं को बचाने के लिए अनलासुर दैत्य को निगल लिया। लेकिन इससे उनके पेट में काफी जलन होने लगी। उन्होंने कई तरह के जतन किए लेकिन उनके पेट की जलन शांत ही नहीं हुई। इसके बाद कश्यप ऋषि ने दूब की 21 गांठ बनाईं और गणेश जी को दी। गणेश जी ने दूब का सेवन किया। इससे उनके पेट की जलन बिल्कुल शांत हो गई। इसके बाद से ही गणेश जी को दूर्वा चढ़ाई जाती है।
दूर्वा चढ़ाते समय जरूर करें इस मंत्र का उच्चारण:
गणेश जी को 21 दूर्वा की 21 गांठें चढ़ाई जाती हैं। इन्हें चढ़ाने के लिए 10 मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। हर मंत्र के साथ दो दूर्वा चढ़ाई जाती हैं। जब आखिरी दूर्वा चढ़ाते समय सभी 10 मंत्रओं का जाप धारा-प्रवाह में करना चाहिए। पढ़ें ये 10 मंत्र। ऊं गणाधिपाय नमः ऊं उमापुत्राय नमः ऊं विघ्ननाशनाय नमः ऊं विनायकाय नमः ऊं ईशपुत्राय नमः ऊं सर्वसिद्धिप्रदाय नमः ऊं एकदन्ताय नमः ऊं इभवक्त्राय नमः ऊं मूषकवाहनाय नमः ऊं कुमारगुरवे नमः