Muharram 2020 Ashura: मोहर्रम में क्या है आशुरा? जानें क्या है इसका महत्व
Muharram 2020 Ashura मोहर्रम के 10वें दिन को आशुरा या रोज-ए-आशुरा कहा जाता है। इसे यौमे आशुरा भी कहते हैं। इस दिन कर्बला में हजरत हुसैन की धोखे से हत्या कर दी गई।
Muharram 2020 Ashura: मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला माह है। इसका मुस्लिम समुदाय के लिए बेहद महत्व है। खासकर शिया समुदाय के लिए यह विशेष महत्व का माह होता है। इस माह को वे गम का महीना मानते हैं। मोहर्रम के 10वें दिन को आशुरा या रोज-ए-आशुरा कहा जाता है। इसे यौमे आशुरा भी कहते हैं। इस दिन इराक के कर्बला में 10 अक्टूबर सन् 680 को पैगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे हजरत हुसैन की धोखे से हत्या कर दी गई थी। हजरत हुसैन की शहादत की याद में ही रोज-ए-आशुरा मनाया जाता है। इस दिन शिया समुदाय के लोग उनकी शहादत को याद करते हैं और मातम मनाते हैं।
कब है आशुरा?
मोहर्रम माह का 10वां दिन आशुरा होता है। इस वर्ष यह 29 अगस्त दिन शनिवार को है। मोहर्रम में शिया समुदाय महीने की पहली से नौ तारीख तक रोजा रखते हैं, वहीं सुन्नी समुदाय के लोग 9वें और 10वें दिन रोजा रखते हैं। दोनों समुदाय अलग अलग तरीके से मोहर्रम मनाते हैं। शिया समुदाय के लोग मोहर्रम में न ही कोई खुशी मनाते हैं और न ही किसी की खुशी में शामिल होते हैं। इस माह में निकाह आदि की मनाही होती है।
क्यों हुई थी कर्बला की लड़ाई
पैगम्बर मोहम्मद के दामाद तथा चौथे खलीफा अली की वर्ष 661 ईस्वी में हत्या कर दी गई थी। उसके बाद अमीर मुवैया खलीफा बन गए। उन्होंने अपने बाद अपने बेटे यजीद को खलीफा बना दिया, जिसका काफी विरोध हुआ क्योंकि उसमें खलीफा के परंपरागत चयन की प्रक्रिया का उल्लंघन किया गया था। यजीद को खलीफा घोषित करने के बाद अली के बेटे हजरत हुसैन समेत कई लोगों को अपनी स्वीकृति देने को कहा गया। लेकिन हजरत हुसैन ने यजीद को खलीफा मानने से इंकार कर दिया।
इसके बाद ही यजीद और हजरत हुसैन के बीच कर्बला की जंग की पृष्ठभूति तैयार हो गई। यजीद के हजारों सैनिक से लड़ते हुए हजरत हुसैन और उनके साथी शहीद हो गए। उनकी शहादत आज भी लोगों को यह सीख देती है कि व्यक्ति को सच्चाई और मानवता के मार्ग पर चलना चाहिए।