Masik Shivratri Dec 2021: कल मासिक शिवरात्रि पर पार्वती वल्लभाष्टकम् का पाठ, दूर होंगी सभी वैवाहिक समस्या

Masik Shivratri Dec 2021 मार्गशीर्ष माह में मासिक शिवरात्रि और प्रदोष व्रत दोनों का पूजन एक ही दिन होने का विशिष्ट संयोग बन रहा है। इस दिन शिव-पार्वती के पूजन में पार्वती वलल्भाष्टकम् का पाठ करें। ऐसा करने से आपके वैवाहिक और पारिवारिक जीवन के सभी कष्ट दूर होंगे।

By Jeetesh KumarEdited By: Publish:Tue, 30 Nov 2021 05:36 PM (IST) Updated:Wed, 01 Dec 2021 06:00 AM (IST)
Masik Shivratri Dec 2021: कल मासिक शिवरात्रि पर पार्वती वल्लभाष्टकम् का पाठ, दूर होंगी सभी वैवाहिक समस्या
Masik Shivratri Dec 2021: कल मासिक शिवरात्रि पर पार्वती वल्लभाष्टकम् का पाठ, दूर होंगी सभी वैवाहिक समस्या

Masik Shivratri Dec 2021: भगवान शिव का पूजन करने के लिए मासिक शिवरात्रि के व्रत और पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन शिव पार्वती के साथ पूरे शिव परिवार का पूजन करने का विधान है। मान्याता है कि इस दिन शिव पार्वती का विधि पूर्वक व्रत रखने और पूजन करने से सभी पारिवारिक दुख दूर होते हैं। वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी समस्याओं का अंत होता है। मार्गशीर्ष माह में मासिक शिवरात्रि का पर्व 02 दिसंबर, दिन गुरूवार को पड़ रहा है। मासिक शिवरात्रि का व्रत माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को रखा जाता है। इस साल पंचांग के अनुसार त्रयोदशी तिथि भी 02 दिसंबर को ही पड़ रही है। इस दिन प्रदोष का व्रत रखा जाएगा।

इस आधार पर मार्गशीर्ष माह में मासिक शिवरात्रि और प्रदोष व्रत दोनों का पूजन एक ही दिन होने का विशिष्ट संयोग बन रहा है। इस दिन शिव-पार्वती के पूजन में पार्वती वलल्भाष्टकम् का पाठ करें। ऐसा करने से आपके वैवाहिक और पारिवारिक जीवन के सभी कष्ट दूर होंगे।

पार्वती वल्लभ अष्टकम्

नमो भूथ नाधम नमो देव देवं,

नाम कला कालं नमो दिव्य थेजं,

नाम काम असमं, नाम संथ शीलं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

सदा थीर्थ सिधं, साध भक्था पक्षं,

सदा शिव पूज्यं, सदा शूर बस्मं,

सदा ध्यान युक्थं, सदा ज्ञान दल्पं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

स्मसानं भयनं महा स्थान वासं,

सरीरं गजानां सदा चर्म वेष्टं,

पिसचं निसेस समा पशूनां प्रथिष्टं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

फनि नाग कन्दे, भ्जुअन्गःद अनेकं,

गले रुण्ड मलं, महा वीर सूरं,

कादि व्यग्र सर्मं., चिथ बसम लेपं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

सिराद शुद्ध गङ्गा, श्हिवा वाम भागं,

वियद दीर्ग केसम सदा मां त्रिनेथ्रं,

फणी नाग कर्णं सदा बल चन्द्रं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

करे सूल धरं महा कष्ट नासं,

सुरेशं वरेसं महेसं जनेसं,

थाने चारु ईशं, द्वजेसम्, गिरीसं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

उधसं सुधासम, सुकैलस वासं,

दर निर्ध्रं सस्म्सिधि थं ह्यथि देवं,

अज हेम कल्पध्रुम कल्प सेव्यं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

मुनेनं वरेण्यं, गुणं रूप वर्णं,

ड्विज संपदस्थं शिवं वेद सस्थ्रं,

अहो धीन वत्सं कृपालुं शिवं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

सदा भव नाधम, सदा सेव्य मानं,

सदा भक्थि देवं, सदा पूज्यमानं,

मया थीर्थ वासं, सदा सेव्यमेखं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

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