Mahesh Navami Vrat Katha: आज महेश नवमी पर पढ़ें यह व्रत कथा, जानें इसका महत्व

महेश नवमी का पर्व विशेषतौर पर माहेश्वरी समाज मनाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के वरदान से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी। आइए जानते है माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति और महेश नवमी व्रत की कथा के बारे में।

By Jeetesh KumarEdited By: Publish:Sat, 19 Jun 2021 01:00 PM (IST) Updated:Sat, 19 Jun 2021 01:00 PM (IST)
Mahesh Navami Vrat Katha: आज महेश नवमी पर पढ़ें यह व्रत कथा, जानें इसका महत्व
आज महेश नवमी पर पढ़ें यह व्रत कथा, जानें इसका महत्व

Mahesh Navami Vrat Katha: महेश नवमी का पर्व विशेषतौर पर माहेश्वरी समाज मनाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के वरदान से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी, अतः इस दिन माहेश्वरी समाज धूम-धाम से भगवान शिव और मां पार्वती का पूजन-अर्चन करता है। प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महेश नवमी के नाम से मनाया जाता है। इस वर्ष यह तिथि आज 19 जून को है। इस दिन विधिपूर्वक पूजन करने के साथ महेश नवमी की कथा का पाठ किया जाता है। आइए जानते है महेश नवमी व्रत की कथा के बारे में।

महेश नवमी की व्रत कथा

बहुत समय पहले खडगलसेन नाम का एक प्रतापी राजा राज करता था, परन्तु उसकी कोई संतान नहीं थी। राजा को पुत्रकामेष्टी यज्ञ से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। राजा ने अपने पुत्र का नाम कुंवर सुजान रखा। परन्तु ऋषियों ने 20 वर्ष तक राजा को अपने पुत्र को उत्तर दिशा में न जाने देने को कहा।

राजा का पुत्र एक दिन शिकार खेलते हुए उत्तर दिशा में सूरज कुण्ड की ओर चल पड़ा। सैनिकों के मना करने पर भी नहीं रूका और वहां कुछ ऋषियों को यज्ञ करता देख क्रोधित हो गया। राजकुमार ने ऋषियों को उस उत्तर दिशा में न आने देने की बात पर बुरा भला कहा और सैनिकों से यज्ञ में विघ्न उत्पन्न करवाया, जिससे क्रोधित हो कर ऋषियों ने श्राप दे दिया और राजकुमार समेत सभी सैनिक पत्थर हो गये।

माहेश्वरी समाज कैसे उत्पन्न हुआ

समाचार सुनकर राजा खडगलसेन का निधन हो गया, सभी रानियां विधवा हो गईं। राजकुमार की पत्नी चन्द्रावती सभी सैनिकों की पत्नियों के साथ ऋषियों के पास गईं और क्षमा-याचना की। ऋषियों ने उन्हें उमापति भगवान महेश की पूजा करने को कहा। रानी चन्द्रावती की तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने ऋषियों के श्राप को निष्फल कर दिया और उसे अखण्ड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया।

राजकुमार सुजान कुवंर ने सभी सैनिकों के साथ उस दिन से क्षत्रिय धर्म त्याग दिया और व्यापर करने लगे। भगवान महेश के नाम से माहेश्वरी कहलाने लगे। तब से माहेश्वरी समाज में महेश नवमी का पर्व मनाया जाने लगा।

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