Mahashivratri 2021: भगवान शिव को क्यों न चढ़ाई जाती तुलसी और केतकी का फूल, पढ़ें यह कथा

Mahashivratri 2021 महाशिवरात्रि आने में कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। इस दिन भगवान शिव की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए एक लोटा जल और बेलपत्र ही पर्याप्त है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Thu, 04 Mar 2021 11:00 AM (IST) Updated:Thu, 04 Mar 2021 11:21 AM (IST)
Mahashivratri 2021: भगवान शिव को क्यों न चढ़ाई जाती तुलसी और केतकी का फूल, पढ़ें यह कथा
Mahashivratri 2021: भगवान शिव को क्यों न चढ़ाई जाती तुलसी और केतकी का फूल, पढ़ें यह कथा

Mahashivratri 2021: महाशिवरात्रि आने में कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। इस दिन भगवान शिव की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए एक लोटा जल और बेलपत्र ही पर्याप्त है। शिवपुराण के अनुसार, शिवजी की पूजा करते समय कुछ चीजों का उन्हें अर्पित करना वर्जित माना गया है। इसमें केतकी का फूल और तुलसी का पत्ता शामिल है। लेकिन केतकी का फूल और तुलसी का पत्ता शिवजी को क्यों नहीं चढ़ाया जाता है इसके पीछे की कथा शायद ही हर कोई जानता हो। ऐसे में हम आपको यहां इसके पीछे छिपी पौराणिक कथा सुना रहे हैं।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार विष्णु जी और ब्रह्मा जी इस बात का फैसला कराने को लेकर शिवजी के पास पहुंचे कि कौन छोटा है। यह सुन शिवज ने एक शिवलिंग प्रकट किया और दोनों से उसके आदि और अंत पता लगाने को कहा। शिवजी ने कहा जो इसका उत्तर देगा वही बड़ा होगा। विष्णु जी शिवलिंग का आदि और अंत ढूंढने के लिए ऊपर का रुख किया। लेकिन वह पता नहीं लगा पाए। वहीं, ब्रह्मा जी ने नीचे की तरफ से शुरू किया लेकिन उन्हें भी कुछ पता नहीं चला। तब उनकी नजर केतकी के पुष्प पर पड़ी। वह ब्रह्मा जी के साथ चला आ रहा था। ब्रह्मा जी ने केतकी के फूल को मनाया और शिवजी से झूठ बोलने को कहा। ब्रह्मा जी ने शिवजी से कहा कि उन्होंने पता लगा लिया है। उन्होंने केतकी के फूल से इसकी गवाही भी दिलावा दी। लेकिन शिवजी ने उनका झूठ पकड़ लिया। उन्होंने क्रोधित हो ब्रह्मा जी के उस सिर को काट डाला जिसने झूठ बोला था। इसके अलावा केतकी के फूल को अपनी पूजा में इस्तेमाल किए जाने से वर्जित कर दिया।

अब आते हैं तुलसी के पत्ते के वर्जित होने पर। पिछले जन्म में तुलसी का नाम वृंदा था। यह एक राक्षस की पत्नी थीं जिसका नाम जालंधर था। वह अपनी पत्नी पर बहुत जुल्म करता था। तब भगवान शिव ने उसे सबक सिखाने के बारे में सोचा। उन्होंने विष्णु जी ने आग्रह किया कि वो उस राक्षस को सबक सिखाए। तब विष्णुजी ने छल से वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग कर दिया। जब वृंदा को इस बात का पता चला तो तो उन्होंने विष्णुजी को श्राप दे दिया। उन्होंने कहा कि आप पत्थर के बन जाएंगे। तब विष्णु जी ने तुलसी से कहा कि वो उसे जालंधर से बचा रहा था। अब मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम लकड़ी की बन जाओ। इस श्राप का असर ऐसा हुआ कि कालांतर में तुलसी बन गईं। तुलसी शापित थीं इसलिए उन्हें शिवजी की पूजा में नहीं चढ़ाया जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि वे भगवान श्रीहरि की पटरानी हैं और तुलसी जी ने अपनी तपस्या से भगवान श्रीहरि को पति रूप में प्राप्त किया था। 

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