Mahabharat: पांच पांडवों से सीख सकते हैं जीवन के 5 महत्वपूर्ण मंत्र

Mahabharat महाभारत में पांडवों के जीवन के घटनाक्रम से हम कई गुण सीख सकते हैं। यदि उस समय के घटनाक्रम को वर्तमान के संदर्भ में देखें तो हमें कई सारी समस्याओं का समाधान मिल सकता है। महाभारत की हर कहानी हमें कुछ न कुछ जरूर सीखाती है।

By Kartikey TiwariEdited By: Publish:Fri, 11 Jun 2021 02:30 PM (IST) Updated:Fri, 11 Jun 2021 02:30 PM (IST)
Mahabharat: पांच पांडवों से सीख सकते हैं जीवन के 5 महत्वपूर्ण मंत्र
Mahabharat: पांच पांडवों से सीख सकते हैं जीवन के 5 महत्वपूर्ण मंत्र

Mahabharat: श्रीमद्भागवत गीता जीवन जीने का एक दर्शन है। विद्वानों के अनुसार, गीता से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। वैसे भी सभी धर्म ग्रंथ हमें कुछ न कुछ सिखाते जरूर हैं, लेकिन यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने वेद-पुराण तथा धार्मिक ग्रंथों से क्या सीखना चाहते हैं। इसी तरह महाभारत में सीखने के लिए काफी कुछ है। महाभारत में पांडवों के जीवन के घटनाक्रम से हम कई गुण सीख सकते हैं। यदि उस समय के घटनाक्रम को वर्तमान के संदर्भ में देखें, तो हमें कई सारी समस्याओं का समाधान मिल सकता है। महाभारत की हर कहानी हमें कुछ न कुछ जरूर सीखाती है।

1. धैर्य और साहस

पांडवों ने हर परिस्थिति का धैर्य और साहस के साथ मुकाबला किया। चाहे वह लक्ष्यागृह से बचना हो या युद्ध में कौरवों के समक्ष कमजोर होने के बावजूद युद्ध की चुनौती को स्वीकार करना। उन्होंने धैर्य और साहस से युद्ध को जीता।

2. कठिन हालात को अनुकूल बनाएं

वनवास के कठिन हालात में पांचों पांडव ने स्वयं को शक्तिशाली बनाया। जहां भी गए अपने लिए राज समर्थन हासिल किया, इसीलिए विषम परिस्थिति को भी अपने अनुकूल बनाया जा सकता है।

3. पारिवार की एकता

पांचों पांडवों के जीवन से हम एक दूसरे के प्रति प्यार, सम्मान और एकजुटता सीख सकते हैं। पांडव हमेशा साथ और मिलजुल कर रहते थे। इसी वजह से पांचों पांडवों ने 100 कौरवों को पराजित कर दिया।

4. सकारात्मक सोच

सकारात्मक सोच मिट्टी को भी सोना बना देती है। जब कौरवों और पांडवों के बीच राज्य का बंटवारा हुआ, तो पांडवों को विरान पड़ा खांडव वन दे दिया गया। परंतु पांडवों ने इसे भी सकारात्मक रूप से लिया और उन्होंने जंगल में इंद्रप्रस्थ जैसा सुंदर नगर का निर्माण किया।

5. सभी के प्रति विनम्रता का भाव

पांचों पांडव सभी के प्रति विनम्र भाव रखते थे और कभी किसी को अपमानित करने का प्रयास नहीं करते थे। उन्होंने धृतराष्ट्र को पिता का सम्मान दिया। भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के प्रति हमेशा आदर का भाव प्रदर्शित किया।

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