Maa Katyayani Ki Aarti: Navratri 2021आज करें मां कात्यायनी की इस आरती का पाठ, मिलेगा शत्रु विजय का वरदान

Maa Katyayani Ki Aarti मां कात्यायनी के पूजन से शत्रुओं का नाश करने और संतान प्राप्ति का वरदान प्राप्त होता है। नवरात्रि के छठें दिन पूजन के अंत में मां कात्यायनी की आरती का पाठ जरूर करना चाहिए।

By Jeetesh KumarEdited By: Publish:Sun, 10 Oct 2021 07:35 PM (IST) Updated:Mon, 11 Oct 2021 01:42 PM (IST)
Maa Katyayani Ki Aarti: Navratri 2021आज करें मां कात्यायनी की इस आरती का पाठ, मिलेगा शत्रु विजय का वरदान
Navratri 2021 आज करें मां कात्यायनी की इस आरती का पाठ, मिलेगा शत्रु विजय का वरदान

Maa Katyayani Ki Aarti: नवदुर्गा के छठें रूप को मां कात्यायनी कहा जाता है। कात्यायनी मां का पूजन नवरात्रि के छठें दिन करने का विधान है। मां कात्यायनी शेर को अपना वाहन बनाती हैं और हाथों में तलवार तथा कमल के पुष्प को धारण करती हैं। मां कात्यायनी के हाथों की तलवार जहां असुरों के वध करने के लिए है।तो वहीं कमल का पुष्प उनका अपने भक्तों के प्रति कोमलता और वात्सल्यता का प्रतीक है। इसलिए मां कात्यायनी के पूजन से शत्रुओं का नाश करने और संतान प्राप्ति का वरदान प्राप्त होता है। नवरात्रि के छठें दिन पूजन के अंत में मां कात्यायनी की आरती का पाठ जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से मां की कृपा आप पर बनी रहेगी और आपकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है....

मां कात्यायनी की आरती –

जय कात्यायनि माँ, मैया जय कात्यायनि माँ।

उपमा रहित भवानी, दूँ किसकी उपमा॥ मैया जय कात्यायनि....

गिरजापति शिव का तप, असुर रम्भ कीन्हाँ।

वर-फल जन्म रम्भ गृह, महिषासुर लीन्हाँ॥ मैया जय कात्यायनि....

कर शशांक-शेखर तप, महिषासुर भारी। शासन कियो सुरन पर, बन अत्याचारी॥

मैया जय कात्यायनि.... त्रिनयन ब्रह्म शचीपति, पहुँचे, अच्युत गृह।

महिषासुर बध हेतू, सुर कीन्हौं आग्रह॥ मैया जय कात्यायनि....

सुन पुकार देवन मुख, तेज हुआ मुखरित।

जन्म लियो कात्यायनि, सुर-नर-मुनि के हित॥ मैया जय कात्यायनि....

अश्विन कृष्ण-चौथ पर, प्रकटी भवभामिनि। पूजे ऋषि कात्यायन, नाम काऽऽत्यायिनि॥

मैया जय कात्यायनि.... अश्विन शुक्ल-दशी को, महिषासुर मारा।

नाम पड़ा रणचण्डी, मरणलोक न्यारा॥ मैया जय कात्यायनि....

दूजे कल्प संहारा, रूप भद्रकाली। तीजे कल्प में दुर्गा, मारा बलशाली॥

मैया जय कात्यायनि.... दीन्हौं पद पार्षद निज, जगतजननि माया।

देवी सँग महिषासुर, रूप बहुत भाया॥ मैया जय कात्यायनि....

उमा रमा ब्रह्माणी, सीता श्रीराधा। तुम सुर-मुनि मन-मोहनि, हरिये भव-बाधा॥

मैया जय कात्यायनि.... जयति मङ्गला काली, आद्या भवमोचनि।

सत्यानन्दस्वरूपणि, महिषासुर-मर्दनि॥ मैया जय कात्यायनि....

जय-जय अग्निज्वाला, साध्वी भवप्रीता।

करो हरण दुःख मेरे, भव्या सुपुनीता॥ मैया जय कात्यायनि....

अघहारिणि भवतारिणि, चरण-शरण दीजै।

हृदय-निवासिनि दुर्गा, कृपा-दृष्टि कीजै॥ मैया जय कात्यायनि....

ब्रह्मा अक्षर शिवजी, तुमको नित ध्यावै।

करत 'अशोक' नीराजन, वाञ्छितफल पावै॥ मैया जय कात्यायनि....

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

 

chat bot
आपका साथी