Kumbh 2019: कैसे होती है कुंभ मेले के आयोजन की गणना
अर्ध मतलब आधा इसी कारण बारह वर्षों के अंतराल में आयोजित होने वाले पूर्ण कुम्भ के बीच अर्ध कुंभ आयोजित होता है। पंडित दीपक पांडे से जानें इसकी गणना की विधि।
विशेष विधि से होती है गणना
कुंभ की गणना एक विशेष विधि से होती है जिसमें गुरू का अत्यंत महत्व है। नियमानुसार गुरू एक राशि में लगभग एक वर्ष रहता है। यानि बारह राशियों में भ्रमण करने में उसे 12 वर्ष की अवधि लगती है। यही कारण है प्रत्येक बारह साल बाद कुंभ उसी स्थान पर वापस आता है अर्थात प्रत्येेक बारह साल में कुंभ आयोजन स्थल दोहराया जाता है। इसी प्रकार गणना के अनुसार कुंभ के लिए निर्धारित चार स्थानों में अलग-अलग स्थान पर हर तीसरे वर्ष कुंभ का अयोजन किया जाता है। कुंभ के लिए निर्धारित चारों स्थानों में प्रयाग के कुंभ का विशेष महत्व होता है। हर 144 वर्ष बाद यहां महाकुंभ का आयोजन होता है क्योंकि देवताओं का बारहवां वर्ष पृथ्वी लोक के 144 वर्ष के बाद आता है। कुंभ एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु इसके नियत स्थलों हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। इससे पूर्व 2013 का कुम्भ प्रयाग में हुआ था। पूर्ण कुम्भ के छ: वर्ष बाद अर्ध कुंभ होता है।
चार ग्रहों का संयोग
इस बार 2019 का कुंभ 15 जनवरी से लेकर 4 मार्च तक प्रयागराज में हो रहा है। कहते हैं जिस समय में चंद्रमा सहित अन्य ग्रहों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहां अमृत की बूंद गिरी थी, उस स्थान पर कुंभ पर्व होता है। जैसे चन्द्रमा ने अमृत को बहने से बचाया था, गुरू ने कलश को छुपा कर रखा था, सूर्य देव ने कलश को नष्ट होने से बचाया था और शनि ने इन्द्र के कोप से उसकी रक्षा की थी। इसलिए जब इन ग्रहों का संयोग सही राशि में होता है तब कुंभ का अयोजन होता है। पौराणिक कथाआें के अनुसार माना जाता है कि पृथ्वी पर चार कुंभ होते हैं आैर आठ देवलोक में होते हैं।