कल्पवृक्ष की भांति होता है ज्ञान
ज्ञान भी कल्पवृक्ष की भांति होता है। ज्ञान प्राप्त कर मनुष्य अपनी हर मनोकामना की पूर्ति कर सकता है। आज लोगों में ज्ञान की कमी है। वास्तव में डिग्री पा लेना ही ज्ञान प्राप्ति नहीं है। हमारे पूर्वजों के पास ज्ञान का भंडार था।
सागर मंथन में चौदह रत्न निकले थे। कल्पवृक्ष उनमें से एक था। आध्यात्मिक मान्यता है कि इसके नीचे बैठकर जो भी मांगा जाए वह मिल जाता है। ज्ञान भी कल्पवृक्ष की भांति होता है। ज्ञान प्राप्त कर मनुष्य अपनी हर मनोकामना की पूर्ति कर सकता है। आज लोगों में ज्ञान की कमी है। वास्तव में डिग्री पा लेना ही ज्ञान प्राप्ति नहीं है। हमारे पूर्वजों के पास ज्ञान का भंडार था। इसके जरिये उन्होंने खुद को और समाज को समृद्ध किया। यह ज्ञान उन्होंने प्रकृति के बीच रहकर स्वाध्याय और चिंतन-मनन से प्राप्त किया था। इसी के बल पर उन्होंने महानतम ग्रंथों की रचना की। वे अपनी परिस्थिति और प्रकृति से बहुत कुछ सीख वर्तमान के लिए छोड़ गए हैं। यह ज्ञान वेदों, पुराणों और उपनिषदों में भरा पड़ा है।
इस विवरण का यह अर्थ नहीं कि पुस्तकीय विद्या निर्थक है, लेकिन विद्या ग्रहण करना और सच्चे ज्ञान की प्राप्ति, दो पृथक बातें हैं। विद्या किसी ध्येय के लिए प्राप्त की जाती है, जिसके पूरा न होने पर व्यक्ति संताप से ग्रस्त हो जाता है। दूसरी ओर ज्ञानी स्वयं के लिए कुछ नहीं मांगता। वह दूसरों के लिए जीता है। ज्ञान प्राप्ति एक अनोखी शक्ति है, परंतु इसको पाने के लिए यथासंभव प्रयास अनिवार्य है। स्वयं को सागर मंथन के जैसे मथ कर ही ज्ञान की प्राप्त की जा सकती है।
डिग्री के लिए तो बहुतेरे आतंकवादी, भ्रष्टाचारी, स्वार्थी लोग भी इसी संसार में हैं। वे पढ़-लिखकर यदि ज्ञानी बने होते तो मानवता को इस प्रकार न कुचलते। स्वयं भूखा रह अपने मुंह का निवाला दूसरे को खिला देना ज्ञानी होने का सतत प्रमाण है। ज्ञानी उस सागर के समान होता है जिसमें नदियां अपना अस्तित्व खोकर स्वयं सागर बन जाने में खुद को धन्य मानती हैं। इसमें द्वेष, स्वार्थ और अपना-पराया के भाव का कोई स्थान नहीं होता है। कम पाकर अधिक देना ही एक ज्ञानी की पहचान है। एक ज्ञानी ही अपने परिवार, समाज और संसार को जीवंत रखने की क्षमता रखता है।
छाया श्रीवास्तव
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