हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में प्रथम है गर्भाधान,जानें क्या है इसका महत्व

मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार किए जाते हैं जिसका महत्व हिंदू धर्म में सर्वोपरि है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Wed, 08 Jul 2020 04:17 PM (IST) Updated:Wed, 08 Jul 2020 04:17 PM (IST)
हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में प्रथम है गर्भाधान,जानें क्या है इसका महत्व
हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में प्रथम है गर्भाधान,जानें क्या है इसका महत्व

हिंदू धर्म भारत का प्रथम और प्राचीनतम धर्म माना जाता है। इस धर्म में कई अलग-अलग उपासना पद्धतियां, मत, सम्प्रदाय और दर्शन का समावेश है। इस धर्म में 16 संस्कारों को प्रमुखता दी गई है। महर्षि वेदव्यास के अनुसार, मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार किए जाते हैं जिसका महत्व हिंदू धर्म में सर्वोपरि है। ऐसा माना जाता है कि मनुष्य के लिए यह सोलह संस्कार बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। इनमें पहला संस्कार गर्भाधान है। जब मनुष्य गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता है तो उसके प्रथम क‌र्त्तव्य के रूप में इस संस्कार को मान्यता दी गई है। अगर आप इस संस्कार से अवगत नहीं हैं तो हम आपको यहां इस संस्कार के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

जानें क्या है गर्भाधान: जैसा कि हमने आपको बताया कि गर्भाधान 16 संस्कारों में से प्रथम है। महर्षि चरक के अनुसार, इस संस्कार के लिए मनुष्य के मन का प्रसन्न होना और पुष्ट रहना बेहद आवश्यक है। अगर माता-पिता उत्तम संतान की इच्छा रखते हैं तो उन्हें गर्भाधान से पहले मन और तन की पवित्रता के साथ यह संस्कार करना अहम होता है। वैदिक काल में इस संस्कार को काफी अहम माना जाता था। गर्भाधान-संस्कार स्त्री और पुरुष के शारीरिक मिलन को ही कहा जाता है। प्राकृतिक दोषों से बचने के लिए यह संस्कार किया जाता है जिससे गर्भ सुरक्षित रहता है। इससे माता-पिता को अच्छी और सुयोग्य संतान प्राप्त होती है।

जानें गर्भाधान संस्कार का महत्व: ज्योतिषाचार्य मनीष शर्मा ने बताया कि पुराने समय में कन्याएं उन्हीं पुरुषों को अपना साथी चुनती थीं जो शक्तिशाली होते थे। ये शक्तिशाली पुरुष तप करते थे जिससे ऐसी संतान उत्पन्न हो जो सर्वशक्तिमान हो। गर्भाधान का कार्य प्रतिपदा, अमावस, पूनम, अष्टमी और चतुदर्शी को नहीं किया जाता है। श्रीमद् भागवत में पुरुष और स्त्री के लिए यह नियम बनाया गया है कि वो एक शक्तिशाली संतान को उत्पन्न करें जिससे वो शक्तिशाली देश का निर्माता बन पाए। एक ही संतान उत्पन्न की जाती थी जो देश की रक्षा और कुल की रक्षा कर सके। इसके साथ ही रजस्वला स्त्री जिस दिन होती है उससे युग्म दिनों में स्नान के पश्चात गर्भाधान कराया जाता है। लेकिन यह दिन में या शाम के समय नहीं कराया जाता है। ये रात्री में ही किया जाना चाहिए। शाम के समय गर्भाधान करने से संतान राक्षस स्वभाव की होती है। वहीं, दिन में गर्भाधान करने से कम आयु की संतान होती है।

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