कर्म की महत्ता: कर्म के अभाव में फल प्राप्ति का स्वप्न भी नष्ट हो जाता है

हमारे प्राचीन ग्रंथों में अद्भुत विचारों का समृद्ध भंडार भरा है। यदि हम गीता और रामायण जैसे ग्रंथों की जीवन भर पूजा करते रहें और उनके वचनों के अनुरूप कर्म न करें तो हमें कभी भी सद्जीवन की प्राप्ति नहीं हो सकती।

By Kartikey TiwariEdited By: Publish:Tue, 14 Sep 2021 09:15 AM (IST) Updated:Tue, 14 Sep 2021 09:15 AM (IST)
कर्म की महत्ता: कर्म के अभाव में फल प्राप्ति का स्वप्न भी नष्ट हो जाता है
कर्म की महत्ता: कर्म के अभाव में फल प्राप्ति का स्वप्न भी नष्ट हो जाता है

अथर्ववेद में उल्लेख है कि कि आत्मा का उद्देश्य ही कर्म करना है। कर्म या क्रिया के अभाव में कोई जीव अपना अस्तित्व नहीं रख सकता। क्रियात्मकता ही जीवन का प्रमुख लक्षण है। वस्तुत: जहां देह है, वहां कर्म अवश्य ही होता है। सिर्फ विचार से संसार नहीं बन सकता। विचार को मूर्त रूप देने के लिए कर्म करना ही होता है। कोई व्यक्ति सिर्फ सत्संग या उपदेश देकर या सुनकर ही सब कुछ प्राप्त नहीं कर सकता। अभीष्ट की प्राप्ति तो कर्म से ही संभव है।

मान लें कि किसी व्यक्ति को घर की पुरानी पुस्तकों में एक डायरी मिल जाए। उसमें लिखा हो कि ‘घर के बाहर बगीचे में गुलमोहर के पेड़ के नीचे खजाना गड़ा है।’ ऐसी स्थिति में क्या उम्र भर उस डायरी पर धूप-दीप करने या बार-बार इस वाक्य का पाठ करने कि ‘गुलमोहर के नीचे धन गड़ा है’, उस धन की प्राप्ति हो जाएगी? उस धन को प्राप्त करने के लिए गुलमोहर के पेड़ के नीचे खोदाई करनी होगी। तभी घड़ा निकलेगा। तभी सुख भोग प्राप्त होगा। यही बात जीवन के अन्य संदर्भो में सार्थक प्रतीत होती है।

हमारे प्राचीन ग्रंथों में अद्भुत विचारों का समृद्ध भंडार भरा है। यदि हम गीता और रामायण जैसे ग्रंथों की जीवन भर पूजा करते रहें और उनके वचनों के अनुरूप कर्म न करें तो हमें कभी भी सद्जीवन की प्राप्ति नहीं हो सकती। सद्जीवन की प्राप्ति के लिए, उच्च विचारों के अनुरूप सद्कर्म करने की आवश्यकता होती है। कर्म के अभाव में फल प्राप्ति का स्वप्न भी नष्ट हो जाता है।

तभी महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि, ‘जैसे तेल समाप्त हो जाने पर दीपक बुझ जाता है, उसी प्रकार कर्म के क्षीण होने पर दैव भी नष्ट हो जाता है।’ अत: हमें हमेशा शुभ कर्म करना चाहिए, क्योंकि शुभ कर्म सुखदाता और पाप कर्म दुख प्रदाता होता है। साथ यह भी अवश्य स्मरण रहे कि कोई विचार चाहे वह कितना ही आदर्श और उत्तम क्यों न हो, वह कर्म के अभाव में मूर्त रूप नहीं ले पाएगा।

डा. प्रशांत अग्निहोत्री

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