ज्ञान-अज्ञान: सच्चा ज्ञान व्यक्ति को विनम्र और विराट व्यक्तित्व वाला बनाता है

ज्ञान की शक्ति से ही मनुष्य अनंत सामथ्र्यवान है। जिसके पास जितना अधिक ज्ञान है वह उतना ही अधिक शक्ति संपन्न है। सच्चा ज्ञान व्यक्ति को विनम्र और विराट व्यक्तित्व वाला बनाता है। इसके विपरीत अज्ञानता हठधर्मिता की जननी है।

By Kartikey TiwariEdited By: Publish:Tue, 26 Oct 2021 08:39 AM (IST) Updated:Tue, 26 Oct 2021 08:39 AM (IST)
ज्ञान-अज्ञान: सच्चा ज्ञान व्यक्ति को विनम्र और विराट व्यक्तित्व वाला बनाता है
ज्ञान-अज्ञान: सच्चा ज्ञान व्यक्ति को विनम्र और विराट व्यक्तित्व वाला बनाता है

ज्ञान की शक्ति से ही मनुष्य अनंत सामथ्र्यवान है। जिसके पास जितना अधिक ज्ञान है, वह उतना ही अधिक शक्ति संपन्न है। सच्चा ज्ञान व्यक्ति को विनम्र और विराट व्यक्तित्व वाला बनाता है। इसके विपरीत अज्ञानता हठधर्मिता की जननी है। अज्ञानी व्यक्ति आत्मकेंद्रित और क्षुद्र सोच वाला होता है। अज्ञान मन की रात्रि है, लेकिन वह रात्रि जिसमें न तो चांद है और न तारे। वस्तुत: अज्ञानता जीवन की वह अंधकार पूर्ण स्थिति है जिसमें जीवन की राह दिखाई नहीं पड़ती। वहां गहन रात्रि में होने वाला चांद-तारों का धुंधला प्रकाश भी उपस्थित नहीं रहता।

इस गहन अंधकार के बीच सही राह को देखना और उस पर जाना बहुत ही कठिन है। अंधकार को अज्ञान का प्रतीक माना गया है। इसके विपरीत प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है। जैसे प्रकाश में सत्य उद्घाटित होता है, वैसे ही ज्ञान के उदय से वास्तविक-अवास्तविक, सत्य-असत्य, श्रेयस और प्रेयस के बीच अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है।

वास्तव में ज्ञान की प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम संकीर्णता का परित्याग करना पड़ता है। ज्ञान के ग्रहण के लिए मस्तिष्क को खोलना पड़ता है। एक संकुचित मस्तिष्क के साथ हम कभी सच्चे ज्ञान की प्राप्ति नहीं कर सकते। भिन्न-भिन्न विचारों के बीच व्यक्ति को खुले, ग्रहणशील मस्तिष्क से समन्वयात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए उन सब में से सार तत्व को लेना पड़ता है।

दिमाग पैराशूट के समान है। यह तभी काम करता है, जब खुला हो। एक खुला, विचारशील, चिंतनपूर्ण मस्तिष्क ही वास्तविक ज्ञान प्राप्ति का साधन है। अन्यथा की स्थिति में बंद दिमाग के साथ यह अज्ञानता आनंद की वजह बन जाती है, पर यह मात्र छलावा होता है।

ज्ञान की साधना के लिए हमें कुछ अलग तरह से सोचना और करना पड़ता है। वास्तव में ज्ञान की प्राप्ति के लिए हमें अपनी अज्ञानता का अहसास होना आवश्यक है। यह ज्ञान प्राप्ति की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है।

डा. प्रशांत अग्निहोत्री

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