कर्मसूत्रः कर्म का सिद्धांत अपनाकर जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करना हो जाता है आसान
कर्मसूत्र- पुस्तक दो भागों में बंटी है पहला भाग तो कर्म और उसकी गूढ़ता को समझाता है। तो दूसरा भाग महाभारत के महत्वपूर्ण किरदारों और उनकी कहानी पर कर्म के सिद्धांत कैसे लागू हुए इनकी बात करता है।
हाल ही में अंग्रेजी में एक किताब आई कर्मसूत्र। नाम सुन कर कौतुहल जगा। शीर्षक महर्षि वात्स्यायन के ग्रन्थ से काफी मिलता जुलता सा लगा। सो उसे प्राप्त किया और पढ़ने लगा। असल में ये पुस्तक सनातन आस्था में कर्म के सिद्धांत पर चर्चा करती है। पुस्तक दो भागों में बंटी है पहला भाग तो कर्म और उसकी गूढ़ता को समझाता है। दूसरा भाग महाभारत के महत्वपूर्ण किरदारों और कहानी पर कर्म के सिद्धांत कैसे लागू हुए इनकी बात करता है।
ध्यान रहे कि ये किताब उन भारतीयों और पश्चिमी देशों के नागरिकों के लिए लिखी गई है जो भारतीय मनीषा से कटे हुए हैं। लेकिन आसान भाषा और छोटे छोटे अध्यायों की मदद से समझाए गए ये गूढ़ विचार किताब को आकर्षक बनाते हैं। इसकी सादगी में कुछ ऐसे विचार और नए परिप्रेक्ष्य हैं जिन्हें एक आम भारतीय को पढ़ कर भी अच्छा लगेगा।
पहला भाग कर्म के सिद्धांत को समझते हुए भारतीय चिंतन के एक और पहलू का भी सहारा लेती है। ये है पुनर्जन्म का। लेखिका ऋतु शर्मा का कहना है कि जो व्यक्ति पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांतों में विश्वास नहीं करते उनके लिए भी जीवन की तमाम जटिलताओं और अबूझ पहेलियों को समझने और जीवन में व्याप्त कलेश और उहापोह, जिसका कोई कारण समझ नहीं आता है, उससे सामंजस्य स्थापित करने का ये एक भरोसेमंद फ्रेमवर्क या तानाबाना हो सकता है।
ये हवाला देते हुए कि कर्म की गति न्यारी है वे अपने पाठकों को प्रेरित करती हैं कि वे कुछ समय के लिए अपने अविश्वास और उदासीनता को छोड़ कर इस विचार को अपनाएं और देखें जीवन को जीने और उसकी चुनौतियों का सामना करने का सम्बल मिलता है कि नहीं। अगर ऐसा नहीं होता है तो वे स्वतंत्र हैं इस विचार को त्यागने के लिए।
अपनी पुस्तक के अगले भाग में ऋतु शर्मा महाभारत के नायकों और परिस्थितियों पर बात करते हुए कर्म के सिद्धांत को समझाती हैं। वो पाठक को बताती हैं की कृष्ण कैसे पांडवों को कर्म और उसके प्रभाव की अटलता के बारे में बताते हैं।
उनके अनुसार असल में महाभारत की कहानी हमें समझती है कि ईर्ष्या ही सभी प्रकार की हिंसा की जड़ है। और वे ये भी बताती हैं कि बदले की भावना बहुत ही सहज प्रतिक्रिया है लेकिन उसमें आप जितना डूबते जाते हैं उतना ही कष्ट भोगते जाते हैं। और जितनी चोट गहरी होती जाती है उतनी ही क्षमा करने की संभावना क्षीण होती जाती है।
इसलिए अपने मन की शांति और आध्यात्मिक सुरक्षा और विकास के लिए ज़रूरी है आप जीवन का हर कदम कर्म के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए उठाएं। जीवन जितना ध्यान से जियेंगे उतना ही कर्म का बोझ कम होता जाएगा।
दुर्भाग्य से आज लेखिका ऋतु शर्मा हमारे बीच नहीं हैं। इस वर्ष के शुरू में उनका निधन हो गया। वे कुछ समय से एक असाध्य बीमारी से जूझ रही थीं।
उनकी पुस्तक लंदन स्थित हे-हाउस प्रकाशन से छपी है। इसके पहले इसी प्रकाशन ने उनकी पुस्तक हाउसहोल्डर भी छापी थी। पुस्तक सभी विक्रेताओं सहित अमेज़न और हे-हाउस की वेबसाइट पर उपलब्ध है।