Kanha Namakaran: जब गर्गाचार्य बाल गोपाल को देख हो गए थे मंत्रमुग्ध, इस तरह पड़ा था कान्हा नाम
Kanha Namakaran आज हम आपको कान्हा जी का नामकरण कैसे हुआ इससे संबंधित एक पौराणिक कथा सुनाने जा रहे हैं।
Kanha Namakaran: आज हम आपको कान्हा जी का नामकरण कैसे हुआ इससे संबंधित एक पौराणिक कथा सुनाने जा रहे हैं। एक दिन कुल पुरोहित गर्गाचार्य गोकुल पधारे। उनके आने पर नन्द यशोदा ने उनका खूब आदर सत्कार किया। साथ ही वासुदेव देवकी का हाल लिया। गर्गाचार्य से उनके आने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया, "पास ही के एक गांव में एक बालक ने जन्म लिया है। उसी के नामकरण के लिए जा रहा हूं। रास्ते में तुम्हारा घर पड़ा तो रुक गया। सोचा मिलता चलूं।" जैसे ही यशोदा ने यह सुना तो उन्होंने गर्गाचार्य से अनुरोध कि उसके यहां भी दो बच्चों का जन्म हुआ है। कृप्या कर वो उनका भी नामकरण कर दें।
गर्गाचार्य ने इस बात से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, "तुम्हें हर काम जोर-शोर से करने की आदत है। अगर कंस को पता चला तो वो मेरा जीना मुश्किल कर देगा।" इस पर नन्द बाबा ने कहा कि वो किसी को नहीं बताएंगे। चुपचाप दोनों बच्चों का नामकरण गौशाला में कर दें। जैसे ही इस बात का पता रोहिणी को चला तो वो उनका बखान करने लगी। इस पर यशोदा ने कहा, "गर्गाचार्य इतने बड़े पुरोहित हैं। हम दोनों अपना बच्चा बदल लेते हैं। देखते है कि क्या कुल पुरोहित सच्चाई जान पाते हैं।"
दोनों ही एक-दूसरे के बच्चे लेकर गौशाला पहुंची। यशोदा के हाथ में जो बच्चा था उसे देख गर्गाचार्य ने कहा कि यह रोहिणी का पुत्र है। इसलिए इसका नाम रौहणेय होगा। ये बालक अपने गुणों से सभी को प्रसन्न करेगा तो इसका एक नाम राम होगा। बल में इसे कोई हरा नहीं पाएगा। ऐसे में इसका एक नाम बल होगा। लेकिन सबसे ज्यादा इसका जो नाम सबसे ज्यादा लिया जाएगा वह नाम बलराम होगा। यह किसी भी व्यक्ति में कोई भेद नहीं करेगा।
अब बारी आई रोहिणी के गोद में जो बच्चा था उसकी। उसे देख गर्गाचार्य मोहिनी मुरतिया में खो गए। वह अपनी सभी सुध भूल गए। कितने ही पल वो ऐसे ही रहे। बाबा को ऐसे देख यशोदा घबरा गईं। उन्होंने कुल पुरोहित को हिलाया और पूछा, "बाबा क्या हुआ। आप नामकरण करने आए थे भूल गए क्या।"
यह सुन गर्गाचार्य को होश आया है। उन्होंने कहा कि यह कोई साधारण बालक नहीं है। यह कहते हुए जैसे ही गर्गाचार्य ने अपनी अंगुली उठाई तभी कान्हा ने आंख दिखा दी। गर्गाचार्य कहने ही वाले थे कि ये भगवान हैं। लेकिन कान्हा ने उन्हें आंखों से ही इशारा दिया कि उनका भेद नहीं खोलना है। उन्होंने आंखों के जरिए ही उन्हें समझाया, "मैं जानता हूं बाबा दुनिया भगवान के साथ क्या करती है। लेकिन मैं यहां अलमारी में बंद होने नहीं आया हूं। मुझे तो माखन मिश्री खानी है और ममता में खुद को भिगोना है। अगर मेरा भेद खुल गया तो मेरा क्या होगा यह मैंने तुम्हें समझा दिया है।"
लेकिन गर्गाचार्य ने उनकी बात नहीं मानी। वो जैसे ही दोबारा बोलने जा रहे थे कि ये साक्षात् भगवान हैं तो बालक ने उन्हें फिर से धमकाया। उन्होंने इशारा दिया कि अगर उनकी जुबान यहां नहीं रुकी तो उनकी उंगली ऐसे ही रह जाएगी। आंखों से आंखों में चल रहा यह खेल नन्द यशोदा को पता नहीं चला।
इस बार गर्गाचार्य ने कहा कि तुम्हारे बेटे के कई नाम होंगे। ये बालक जैसे-जैसे कर्म करता जाएगा उसी के अनुसार इसके नाम बनते जाएंगे। इसने इस बार काला रंग पाया है तो इसका एक नाम कृष्ण होगा। इस पर मैया ने कहा कि यह नाम लेते हुए तो मेरी जीभ चक्कर खा जाएगी। उन्होंने कोई आसान नाम बताने को कहा। तब गर्गाचार्य ने कन्हैया, कान्हा, किशन या किसना नाम बताए। तब से मैया सारी उम्र उन्हें कान्हा कहकर बुलाती रही।