Kabir Jayanti 2021: कुछ ऐसे थे कबीरदास, 'मैं काशी का एक जुलाहा, बूझहु मोर गियाना'

Kabir Jayanti 2021 ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय का संदेश देने वाले कबीर समाज को नई दिशा देने वाले संत थे। इस वर्ष कबीर जयंती आज 24 जून दिन गुरुवार को है। इस अवसर पर जानते हैं कबीर दास के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें।

By Kartikey TiwariEdited By: Publish:Wed, 23 Jun 2021 09:24 AM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 07:14 AM (IST)
Kabir Jayanti 2021: कुछ ऐसे थे कबीरदास, 'मैं काशी का एक जुलाहा, बूझहु मोर गियाना'
Kabir Jayanti 2021: कुछ ऐसे थे कबीरदास, 'मैं काशी का एक जुलाहा, बूझहु मोर गियाना'

Kabir Jayanti 2021: 'ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय' का संदेश देने वाले कबीर समाज को नई दिशा देने वाले संत थे। निम्न जाति से होने की उनमें कोई कुंठा नहीं थी, बल्कि वह स्वाभिमान से कहते हैं, 'मैं काशी का एक जुलाहा, बूझहु मोर गियाना' अर्थात् वह जाति-धर्म को नहीं, ज्ञान को ही सर्वोपरि मानते हैं। उन्होंने धर्मों में व्याप्त कुरीतियों के प्रति लोगों को सचेत किया। संत कबीर रामानंद के शिष्य थे। रामाननंद वैष्णव थे, लेकिन कबीर ने निर्गुण राम की उपासना की। यही कारण है कि कबीर की वाणी में वैष्णवों की अहिंसा और सूफियाना प्रेम है।

अहंकार और माया से मुक्ति भक्ति-मार्ग से ही संभव है। नाभादास रचित 'भक्तमाल' के अनुसार, कबीरदास भक्तिविमुख धर्म को अधर्म मानते हैं। संत कबीर का मानना था कि एक ही तत्व सभी जीवात्मा में है, इसलिए जाति-पांति, छुआ-छूत, ऊंच-नीच का सोच व्यर्थ है। कबीर की यह विविधता है कि वह आमजन को जनसामान्य की लोकभाषा से संबोधित करते हैं, तो शास्त्रज्ञ आचार्यों से उलटबांसी में संवाद करते हैं।

कबीर के उपदेशों का प्रथम संकलन धर्मदास ने 'बीजक' नाम से किया था। यह ग्रंथ साखी, सबद, रमैनी तीन खंडों में विभाजित है। कबीर के वचन अनुभवजन्य और आंखों देखे सच पर आधारित हैं। कथनी और करनी की एकता कबीर की मूलभूत विशेषता है। कबीर जीविका (कपड़ा बुनने का कार्य) से बचे समय को सत्संग में लगाते थे। उनमें ज्ञान और कर्म का मणिकांचन संयोग था, जो आज भी अनुकरणीय है।

कबीर के समाज की अवधारणा व्यापक है, जिसमें सिर्फ मनुष्य ही नहीं, जीव-जंतु और वनस्पति भी सम्मिलित हैं- 'एक अचंभा देखा रे भाई, ठाड़ा सिंह चरावै गायी' या 'माली आवत देख कर कलियां करी पुकार।' कोविड महामारी के इस समय ने सिद्ध कर दिया है कि मानव जीवन के लिए प्राकृतिक परिवेश का कोई विकल्प नहीं है। कबीर प्रकृति की महत्ता मध्यकाल में ही समझ चुके थे।

डॉ. चंद्रभान सिंह यादव, भक्तिकाव्य के अध्येता

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