त्याग का महत्व: दूसरों के हित में अपने सुखों का त्याग कर ही साधारण मनुष्य बनता है महामानव

सुखों के त्याग से महात्मा गांधी राष्ट्रपिता बन गए। वास्तव में जो व्यक्ति दूसरों के हित में अपने सुखों का त्याग कर सकता है वही साधारण मनुष्य से ऊपर उठकर एक महामानव बनता है। ऐसे महामानव ही समाज देश और सृष्टि के कल्याण का निमित्त बनते हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 21 Jul 2021 04:19 AM (IST) Updated:Wed, 21 Jul 2021 04:19 AM (IST)
त्याग का महत्व: दूसरों के हित में अपने सुखों का त्याग कर ही साधारण मनुष्य बनता है महामानव
मानव जीवन में त्याग की महती भूमिका मानी गई है।

मानव जीवन में त्याग की महती भूमिका मानी गई है। यहां तक कि हमें दूसरी सांस लेने के लिए पहली सांस का त्याग करना पड़ता है। त्याग मात्र एक कर्म ही नहीं, अपितु यह एक भाव है। यह हमें सांसारिक मोह से अलग करने के साथ ही हमारे व्यक्तित्व निर्माण में भी निर्णायक बनता है। महाभारत के शांति पर्व में कहा गया है कि ‘त्याग के समान कोई सुख नहीं है।’ स्वामी रामतीर्थ भी कहते हैं कि ‘त्याग के सिवा इस संसार में दूसरी कोई शक्ति नहीं है।’ मनुष्य ही नहीं साक्षात ईश्वर को भी बिना त्याग के यश एवं वैभव की प्राप्ति नहीं हुई। त्याग की ऐसी प्रतिमूर्ति के रूप में भगवान श्रीराम का नाम सर्वोपरि माना जाता है। पिता की आज्ञा का मान रखकर राजपाट त्यागकर भगवान राम ने वन गमन को वरीयता दी। वनवास की ओर कदम बढ़ाने से पहले वह सिर्फ राम थे, लेकिन वनवास पूरा होने के बाद वह मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित हुए।

इसी प्रकार अर्जुन और दुर्योधन महाभारत युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण से मदद मांगने पहुंचे। तब अर्जुन ने श्रीकृष्ण की नारायणी सेना का त्यागकर श्रीकृष्ण को चुना, क्योंकि अर्जुन जानते थे कि भगवान का साथ होना ही बहुत है। यदि अर्जुन सेना का मोह करते तो कदाचित महाभारत का परिणाम ही कुछ और होता। राजकुमार सिद्धार्थ ने सांसारिक मोह का त्याग मानवता को दुख से मुक्ति दिलाने के लिए किया। इसी प्रक्रिया के परिणामस्वरूप वह सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध बन गए। आधुनिक इतिहास में महात्मा गांधी ने त्याग का एक अनुपम उदाहरण हम सबके समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने देश के हित और स्वाधीनता के लिए अपने व्यक्तिगत सुखों का त्याग किया। सुखों के त्याग से उनका व्यक्तित्व कुछ ऐसा बना कि वह राष्ट्रपिता बन गए। वास्तव में जो व्यक्ति दूसरों के हित में अपने सुखों का त्याग कर सकता है, वही साधारण मनुष्य से ऊपर उठकर एक महामानव बनता है। ऐसे महामानव ही समाज, देश और सृष्टि के कल्याण का निमित्त बनते हैं।

- पुष्पेंद्र दीक्षित

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