Guru Nanak Jayanti: रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में थे गुरु नानक देव, जानें इनके बारे में

Guru Nanak Jayanti सिखों के प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी थे। इनका जन्म 30 नवंबर 1469 को हुआ था। इनके जन्मदिन को ही गुरुनानक जयंती के रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि नानक जी का जन्म 1469 में कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Thu, 26 Nov 2020 10:00 AM (IST) Updated:Mon, 30 Nov 2020 07:10 AM (IST)
Guru Nanak Jayanti: रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में थे गुरु नानक देव, जानें इनके बारे में
Gurunank Jayanti: रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में गुरुनानक देव, जानें इनके बारे में

Guru Nanak Jayanti: सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक देव जी थे। इनका जन्म 30 नवंबर 1469 को हुआ था। इनके जन्मदिन को ही गुरुनानक जयंती के रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि नानक जी का जन्म 1469 में कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था। इनका जन्म पंजाब (पाकिस्तान) क्षेत्र में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नाम गांव में हुआ था। इनका जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था। गुरुनानक देव के पिता का नाम कल्याण या मेहता कालू जी था। वहीं, इनकी माता का नाम तृप्ती देवी था। आइए जानते हैं गुरुनानक देव के जीवन के बारे में।

गुरनानक देव का विवाह 16 वर्ष की उम्र में गुरदासपुर जिले के लाखौकी स्थान पर रहने वाली एक कन्या के साथ हुआ था। इनका नाम सुलक्खनी था। गुरुनानक देव के दो पुत्र थे जिनका नाम श्रीचंद और लख्मी चंद था। जब इनके दोनों पुत्रों का जन्म हुआ उसके बाद ही वे अपने चार साथी मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ तीर्थयात्रा पर निकल गए थे। ये सभी घूम-घूम कर उपदेश देते थे। गुरुनानक देव ने तीन यात्राचक्र 1521 तक पूरे किए। इनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य स्थान शामिल थे। बता दें कि इन यात्राओं को पंजाबी भाषा उदासियां कहा जाता है।

गुरुनानक देव जी मूर्तिपूजा के खिलाफ थे। ये इसे निरर्थक मानते थे। वे हमेशा से ही रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में रहे। गुरुनानक देव जी कहते थे कि ईश्वर हमारे अंदर है। वह कहीं बाहर नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि इन्हें तत्कालीन इब्राहीम लोदी ने कैद कर लिया था। फिर जब पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम हार गए तब बाबर की जीत हुई। फिर बाबर ने इनको कैद से मुक्ति दिलाई। इनके विचारों ने समाज में परिवर्तन लाया। इन्होंने करतारपुर (पाकिस्तान) नामक स्‍थान बसाया था। साथ ही एक धर्मशाला भी बनवाई थी। इनकी मृत्यु 22 सितंबर 1539 को हुआ था। इनकी मृत्यु से पहले नानक देव ने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी बनाया। इसके बाद वो गुरु अंगद देव नाम से जाने गए।

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