Guru Gobind Singh Jayanti 2021: शुभ संकल्पों और वीरता के नायक हैं गुरु गोबिंद सिंह जी, जिनसे डरते थे मुगल
Guru Gobind Singh Jayanti 2021 गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन धर्म की प्रतिष्ठा और धर्म के मार्ग पर चलने वालों का मार्ग प्रशस्त करने को समर्पित था। गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों को संगठित करने और उन्हें परमात्मा से जोड़ने का कार्य तेजी से आरंभ किया।
Guru Gobind Singh Jayanti 2021: गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन धर्म की प्रतिष्ठा और धर्म के मार्ग पर चलने वालों का मार्ग प्रशस्त करने को समर्पित था। इस शुभ संकल्प को प्राप्त करने के लिए वह आरंभ से ही पूर्णत: प्रतिबद्ध थे। नौ वर्ष की अल्पायु में अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी को काश्मीर के ब्राह्मणों के धर्म की रक्षा हेतु बलिदान के लिए प्रेरित करने वाले गुरु गोविद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु थे। उनका जन्म 22 दिसंबर सन 1666 को पटना साहिब में हुआ था। बचपन के पांच वर्ष वहां व्यतीत करने के बाद वह आनंदपुर साहिब, पंजाब आ गये थे। गुरु साहिब संत भी थे और सिपाही भी।
उन्होंने अति विनम्र भाव से स्वयं को परमात्मा का दास बताया। गुरु गोविंद सिंह ने कहा कि परमात्मा की न कोई जाति, वर्ण अथवा प्रतीक है और न कोई रूप, रंग और आकार। एक परमात्मा ही सृजनकर्ता, पालक और दाता है। गुरु जी ने कहा कि परमात्मा और धर्म की मर्यादा के लिए यदि कोई विकल्प न बचे तो वह तलवार उठाने को भी तैयार हैं।
गुरुगद्दी पर आसीन गोबिंद सिंह
नौ वर्ष की आयु में गुरुगद्दी पर आसीन होने के बाद गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों को संगठित करने और उन्हें परमात्मा से जोड़ने का कार्य तेजी से आरंभ किया। गुरु गोविंद सिंह जी का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वह अनेक भाषाओं के ज्ञाता, विद्वान व कवि थे। सन् 1685 में उन्होंने एक नया नगर पाऊंटा साहिब बसाया, जहां वह तीन वर्ष तक रहे। यहां गुरु साहिब ने हिंदुस्तान के कोने-कोने से श्रेष्ठ कवियों, विद्वानों को बुलाकर अपने दरबार में स्थान दिया व उन्हें उत्तम साहित्य रचने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने प्रमुख सिखों के एक दल को संस्कृत भाषा सीखने व ज्ञान प्राप्त करने के लिए बनारस भेजा। बाद में उनसे अनेक पुरातन ग्रंथों के अनुवाद कराये। जब वे आनंदपुर साहिब लौटे तो नगर की सुरक्षा के लिए किलों का निर्माण कराया। वे सिखों में वीरता भाव भरने के लिए निरंतर यत्नशील रहते थे। उस समय औरंगजेब के अत्याचार अपने चरम पर पहुंच रहे थे। गुरु साहिब चाहते थे कि एक ऐसा समाज तैयार हो, जो धर्म और समाज के मूल्यों की रक्षा में पूर्ण समर्थ हो।
खालसा पंथ से डरे मुगल
सन 1699 की वैशाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ सजाया। सिखों को लोहे के बाटे में खंडे की मदद से जल में बताशे डाल तैयार किया अमृत पान कराया और जीवन मर्यादा के प्रतीक पंच ककार धारण करने का आदेश दिया। गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा कि अमृतपान करने के बाद सभी एक वर्ण के हो गये। उनमें कोई भेदभाव नही रहा। मुगलों ने इसे चुनौती के रूप में देखा और वर्ष भर के अंदर ही युद्ध छेड़ दिया। चार वर्ष से अधिक समय तक आनंदपुर साहिब पर आक्रमण होते रहे।
गुरु साहिब के चारो साहिबजादे शहीद हो गये। इसके बाद भी गुरु गोबिंद सिंह साहिब का परमात्मा पर विश्वास अडोल रहा। जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने नांदेड़ साहिब (महाराष्ट्र) में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब को गुरुगद्दी पर आसीन किया और परमात्मा में लीन हो गये। गुरु गोबिंद सिंह जी जीवन में मर्यादाओं और धर्म का पालन करने के पक्षधर थे।
गोबिंद सिंह जी की रचनाएं
उन्होंने खालसा को परिभाषित करते हुए उसे एक परमात्मा की दिन रात भक्ति करने वाला, उसके बिना किसी अन्य में आस्था न रखने वाला, पूर्ण प्रेम की भावना से परिपूर्ण, जीवन में गुण धारण करने वाला निर्मल मन का मनुष्य कहा। गुरु गोबिंद सिंह जी की महान कृतियों में जापु साहिब, बचित्र नाटक, अकाल उसतत, जफरनामा और सवैये प्रमुख हैं, जिनमें उनकी दार्शनिक दृष्टि की गहराई का अनुभव होता है।
- डॉ. सत्येन्द्र पाल सिंह