गीता के उपदेश: हमें सिर्फ काम करने का अधिकार मिला है, फल पाने का नहीं

Gita Updesh हम अक्सर शिकायती बने रहते हैं। मैंने उसके लिए ये किया वो कुछ नहीं करता। मैंने उसके लिए वो किया वो मेरे लिए कुछ नहीं करता।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Wed, 12 Aug 2020 10:20 AM (IST) Updated:Wed, 12 Aug 2020 10:20 AM (IST)
गीता के उपदेश: हमें सिर्फ काम करने का अधिकार मिला है, फल पाने का नहीं
गीता के उपदेश: हमें सिर्फ काम करने का अधिकार मिला है, फल पाने का नहीं

Gita Updesh: हम अक्सर शिकायती बने रहते हैं। मैंने उसके लिए ये किया, वो कुछ नहीं करता। मैंने उसके लिए वो किया, वो मेरे लिए कुछ नहीं करता। आधे से ज्यादा जीवन हम सोने में और बचा हुआ जीवन शिकायतें करने में ही बर्बाद कर देते हैं। अगर गीता के अध्याय 2 पर नजर डालेंगे तो इसका जवाब मिल जाएगा। गीता के अध्याय 2 के श्लोक 47 का भावार्थ है कि हे मनुष्य तू सिर्फ कर्म कर। तुझे कर्म यानी की काम करने का अधिकार दिया गया है। कर्मों का नतीजा, यानी कि उनका प्रतिफल तू स्वयं तय नहीं करेगा। मनुष्य स्वयं इसका अधिकारी नहीं है। श्रीकृष्ण इस श्लोक के जरिए अर्जुन और पूरी सृष्टि को कह रहे हैं कि तुम कभी भी अपने आपको कर्मों के फलों का कारण मानो। मतलब ये कि तुम जो नतीजे आ रहे हैं उन्हें स्वयं के कर्मों का प्रतिसाद भी मत मानो और न ही तुम किसी कर्म में लिप्त हो जाओ. श्रीकृष्ण ने इसके लिए जो श्लोक कहा है वो है-

इन्द्रियों को बस में करने के एक सवाल पर श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं-

तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ ।

पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्‌ ॥

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः ।

मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥

इसका अर्थ है- तू पहले इन्द्रियों को वश में करके इस ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले महान पापी काम को अवश्य ही बलपूर्वक मार डाल। इन्द्रियों को स्थूल शरीर से पर यानी श्रेष्ठ, बलवान और सूक्ष्म कहते हैं। इन इन्द्रियों से पर मन है, मन से भी पर बुद्धि है और जो बुद्धि से भी अत्यन्त पर है वह आत्मा है।

अक्सर लोग पूछते हैं मुक्ति का मार्ग क्या है। इंसान को आखिर करना क्या चाहिए? इसका जवाब भी गीता में दिया गया है। श्रीकृष्ण कहते हैं-

ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः ।

श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽति कर्मभिः ॥

अर्थात जो कोई मनुष्य दोषदृष्टि से रहित और श्रद्धायुक्त होकर मेरे इस मत का सदा अनुसरण करते हैं, वे भी सम्पूर्ण कर्मों से छूट जाते हैं।

जन्माष्टमी के मौके पर जागरण आध्यात्म आप तक लाया है गीता के उपदेश से कुछ खास श्लोक और उनके भावार्थ।

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