Ganga Saptami 2021: क्यों खास है गंगा सप्तमी व्रत? जानें महत्व और पढ़ें कथा
Ganga Saptami 2021 हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मां गंगा स्वर्ग लोक से भगवान भोलेशंकर की जटाओं में समाई थीं इसलिए इस तिथी को गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है।
Ganga Saptami 2021: हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मां गंगा स्वर्ग लोक से भगवान भोलेशंकर की जटाओं में समाई थीं, इसलिए इस तिथी को गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। गंगा सप्तमी के दिन मां गंगा की पूजा और कथा का पाठ करना मंगलमय माना जाता है। साथ ही जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई उस दिन को 'गंगा दशहरा' या ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के नाम से जाना जाता है।
गंगा सप्तमी का महत्व
हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि गंगा सप्तमी के दिन गंगा जी में डुबकी लगाने से मनुष्य के सभी पाप मिट जाते हैं और उसे मोक्ष मिलता है। गंगा सप्तमी के दिन गंगा जी में स्नान करने का अलग ही महत्व है। गंगा सप्तमी के दिन दान-पुण्य का भी अपना महत्व है। गंगा सप्तमी को कई स्थानों पर गंगा जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
गंगा सप्तमी व्रत कथा
धरती पर गंगा जी की अवतरण कथाओं में उल्लेख है कि प्राचीन काल में एक प्रतापी राजा थे, जिनका नाम भागीरथ। उन्होंने अपने पूर्वजों को श्राप से मुक्त करने के लिए मां गंगा को धरती पर लाने का प्रण किया। इसके बाद उन्होंने कठोर तपस्या कर मां गंगा को प्रसन्न किया और उनसे धरती पर आने का आग्रह किया।
राजा की तपस्या से खुश होकर मां गंगा धरती पर आने के लिए राजी हो गई। लेकिन उन्होंने राजा भागीरथ को बताया कि अगर वो सीधे स्वर्ग से पृथ्वी पर आएंगी, तो पृथ्वी उनका वेग सहन नहीं कर पाएगी और रसातल में चली जाएगी। मां गंगा कि ये बात सुनकर राजा भागीरथ संकट में पड़ गए। ऐसी भी मान्यता है कि गंगा जी को अभिमान थी कि उनका वेग कोई सहन नहीं कर सकता।
समस्या के समाधान के लिए राजा भागीरथ ने भक्तों के दुख हरने वाले भगवान भोलेशंकर की आराधना शुरू कर दी। भक्त की तपस्या से खुश होकर भगवान शिवशंकर प्रकट हुए, तब भागीरथ ने उन्हें अपनी समस्या बताई, जिसके बाद शिव जी राजा को समाधान दिया।
कथा के अनुसार, जैसे ही गंगा जी स्वर्ग से धरती पर उतरने लगीं, तो गंगा का अभिमान दूर करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें जटाओं में बांध लिया। जिसके बाद उन्होंने शिव जी से मांफी मांगी, तब भोलेशंकर ने मां गंगा को माफ कर उन्हें अपनी जटाओं से मुक्त कर दिया। जिसके बाद गंगा जी सात धाराओं में प्रवाहित हुईं, इस तरह राजा भागीरथ गंगा जी को धरती पर लाने में सफल हुए।
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