Eid-e-Milad un Nabi 2020: आज है ईद-ए-मिलाद उन नबी, जानें इतिहास और महत्व

Eid-e-Milad un Nabi 2020 ईद-ए-मिलाद का पर्व 29 अक्टूबर और 30 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक यह पर्व तीसरे महीने में मनाया जाता है। इस पर्व को सूफी या बरेलवी मुस्लिम अनुयायी मनाते हैं।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Thu, 29 Oct 2020 07:00 AM (IST) Updated:Thu, 29 Oct 2020 11:26 AM (IST)
Eid-e-Milad un Nabi 2020: आज है ईद-ए-मिलाद उन नबी, जानें इतिहास और महत्व
Eid-e-Milad un Nabi 2020: आज है ईद-ए-मिलाद उन नबी, जानें इतिहास और महत्व

Eid-e-Milad un Nabi 2020: ईद-ए-मिलाद का पर्व 29 अक्टूबर और 30 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, यह पर्व तीसरे महीने में मनाया जाता है। इस पर्व को सूफी या बरेलवी मुस्लिम अनुयायी मनाते हैं। इनके लिए यह दिन बेहद खास होता है। इस दिन को इस्लाम धर्म के अंतिम पैगंबर यानी पैगंबर मोहम्मद की जयंती के तौर पर मनाया जाता है। यह त्योहरा 29 अक्टूबर को शुरू होकर 30 अक्टूबर की शाम को खत्म होगा। जो लोग इस्लाम धर्म को मानते हैं वो मोहम्मद साहब के प्रति बेहद ही आदर-सम्मान का भाव रखते हैं। आइए जानते हैं ईद-ए-मिलाद का इतिहास और महत्व।

ईद-ए-मिलाद का इतिहास:

इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, 571 ई में इस्लाम के तीसरे महीने यानी रबी-अल-अव्वल की 12वीं तारीख को मुस्लिम समुदाय के लोग इस्लाम के अंतिम पैगंबर यानी पैगंबर हजरत मोहम्मद की जयंती मनाते हैं। वहीं, इसी रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन ही पैगम्बर मोहम्मद साहब का इंतकाल भी हो गया था। पैगंबर हजरत मोहम्मद का जन्म मक्का में हुआ था। इसी जगह पर स्थित हीरा नाम की एक गुफा है जहां इन्हें 610 ई. में ज्ञान प्राप्त हुई था। इसके बाद ही मोहम्मद साहब ने कुरान की शिक्षाओं का उपदेश दिया था।

मोहम्मद साहब ने उपदेश में कहा था कि अगर कोई ज्ञानी, अज्ञानियों के बीच रहता है तो वह व्यक्ति भटक जाता है। वह वैसा ही होगा जैसा मुर्दों के बीच जिंदा इंसान भटक रहा होता है। उनका मानना था कि उन्हें मुक्त कराओं जो गलत तरीके से कैद हैं। किसी भी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। साथ ही उनका मानना यह भी था कि जो इंसान भूख, गरीब और संकट से जूझ रहा हो उसकी मदद करो।

ईद-ए-मिलाद का महत्व:

ईद-ए-मिलाद को मुस्लिम समुदाय के लोग पैगंबर मोहम्मद की पुण्यतिथि के रुप में मनाते हैं। इस त्योहार को मिस्र में आधिकारिक उत्सव के तौर पर मनाया जाता था। हालांकि, बाद में 11वीं शताब्दी में यह लोकप्रिय हो गया। इस त्योहार को बाद से सुन्नी समुदाय के लोग भी ईद-ए-मिलाद का उत्सव मनाने लगे।

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