ऊर्जा: पिंड और ब्रह्मांड- जो इस शरीर में है वही इस ब्रह्मांड में है, दोनों के सृष्टि उपादान एक हैं और सृष्टिकर्ता भी एक हैं

इतिहास गवाह है आपसी टकराव ने मानवता को बहुत गहरे घाव दिए हैं। अहंकार में टकराव की ओर बढ़ी चली जा रही दुनिया को इस खूबसूरत ब्रह्मांड की ओर निहारना होगा उसका यह मौन संदेश पढ़ना होगा और शांति पथ पर लौटना होगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 25 Jul 2021 03:16 AM (IST) Updated:Sun, 25 Jul 2021 03:16 AM (IST)
ऊर्जा: पिंड और ब्रह्मांड- जो इस शरीर में है वही इस ब्रह्मांड में है, दोनों के सृष्टि उपादान एक हैं और सृष्टिकर्ता भी एक हैं
गति के जो नियम ब्रह्मांड के लिए निर्धारित हैं वही इस पिंड के लिए भी।

भारतीय दर्शन के अनुसार, जो इस शरीर में है वही इस ब्रह्मांड में है। दोनों के सृष्टि उपादान एक हैं और सृष्टिकर्ता भी। जिस विधाता ने पंचमहाभूतों से इस ब्रह्मांड की रचना की। उसी ने उन्हीं से इस शरीर की भी। ऐसे में किसी भिन्नता का कोई औचित्य नहीं। जिस प्रकार एक पिता से उत्पन्न सभी संतानों का डीएनए एक होता है उसी प्रकार एक विधाता की रचना में अंतर कैसे हो सकता है। जैसे सूर्य-चंद्र, ग्रह-नक्षत्र, असंख्य तारागण और आकाशगंगाएं ब्रह्मांड में स्वत: संचालित हैं। उसी तरह नेत्र रूप में सूर्य, मन रूप में चंद्र आदि सभी प्राकृतिक शक्तियां इस पिंड (शरीर) में भी विद्यमान हैं। ऋग्वेद का पुरुष सूक्त इसका प्रमाण है जिसमें परमात्म स्वरूप एक विराट पुरुष के विभिन्न अंगों से लोकों की सृष्टि का वर्णन है। उदाहरणार्थ-नेत्रों से सूर्य, मन से चंद्रमा, मुख से अग्नि, प्राण से वायु, कर्ण कुहरों से आकाश, सिर से द्युलोक, चरणों से पृथ्वी आदि उत्पन्न हुए।

इस कारण दोनों की क्रियाविधियों में भी समानता स्वाभाविक है। गति के जो नियम ब्रह्मांड के लिए निर्धारित हैं वही इस पिंड के लिए भी। तमाम ग्रह-नक्षत्रादि जब तक अनुशासन बद्ध हो अपने-अपने मार्ग पर गति करते हैं तभी तक उनका अस्तित्व है और ब्रह्मांड का भी। अन्यथा एक पल के लिए भी पथ भ्रष्ट होने पर न किसी ग्रह का अस्तित्व बचेगा, न ब्रह्मांड का। यही बात इस पिंड के लिए भी सत्य है, क्योंकि दोनों का पथ एक है और पाथेय भी।किसी प्रकार का टकराव दोनों के स्वास्थ्य के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं। अपना वजूद बनाए रखने के लिए अनुशासन, एकता और सामंजस्य दोनों के लिए जरूरी हैं। अन्यथा इतिहास गवाह है आपसी टकराव ने मानवता को बहुत गहरे घाव दिए हैं। अहंकार में टकराव की ओर बढ़ी चली जा रही दुनिया को इस खूबसूरत ब्रह्मांड की ओर निहारना होगा, उसका यह मौन संदेश पढ़ना होगा और शांति पथ पर लौटना होगा।

- डाॅ. सत्य प्रकाश मिश्र

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