Vamana Dwadashi 2021: आज वामन द्वादशी के दिन अवश्य पढ़ें वामन अवतार की कथा, होगी भगवत् कृपा

Vamana Dwadashi 2021 भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु के पांचवे अवतार वामन देव ने जन्म लिया था। इस दिन को वामन द्बादशी के रूप में मनाया जाता है। आइए जानते हैं वामन देव की अवतरण और असुर राज बलि के उद्धार की कथा...

By Jeetesh KumarEdited By: Publish:Fri, 17 Sep 2021 03:42 PM (IST) Updated:Fri, 17 Sep 2021 03:42 PM (IST)
Vamana Dwadashi 2021: आज वामन द्वादशी के दिन अवश्य पढ़ें वामन अवतार की कथा, होगी भगवत् कृपा
आज वामन द्वादशी के दिन अवश्य पढ़ें वामन अवतार की कथा, होगी भगवत् कृपा

Vamana Dwadashi 2021: पौराणिक मान्यता के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु के पांचवे अवतार वामन देव ने जन्म लिया था। इस दिन को वामन द्बादशी के रूप में मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार वामन द्वादशी का पर्व आज, 17 सितंबर को मनाया जा रहा है। द्वादशी तिथि आज सुबह 8.07 से शुरू हो कर, कल सुबह 6.54 बजे तक रहेगी। इसलिए वामन द्वादशी का त्योहार आज 17 सितंबर को ही मनाया जा रहा है। इस दिन शास्त्रोक्त विधि से वामन अवतार के पूजन का विधान है। वामन द्वादशी पर वामन देव के अवतरण की कथा व भागवत पुराण का पाठ करना विशेष फलदायी है। आइए जानते हैं वामन देव की अवतरण और असुर राज बलि के उद्धार की कथा...

वामन अवतार की कथा

भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने देवराज इंद्र को स्वर्ग पर पुनः अधिकार प्रदान करने के लिए वामन अवतार लिया। ऋषि कश्यप और देव माता अदिति के पुत्र के रूप में भगवान विष्णु ने एक बौने ब्रह्मण के रूप में जन्म लिया। इन्हें ही वामन अवतार के नाम से जाना जाता है, ये विष्णु जी का पांचवा अवतार थे। कथा के अनुसार जब असुरराज बलि ने अपने तपोबल और पराक्रम से तीनों लोक पर अधिकार कर लिया। तो हारे हुए देवराज इंद्र ने स्वर्ग पर पुनः अधिकार प्राप्त करने के लिए विष्णु जी से प्रार्थना की। विष्णु जी ने इंद्र की प्रार्थना स्वीकार करके वामन अवतार लिया और बटुक वामन के रूप में राजा बलि के पास दान मांगने के लिए प्रस्तुत हुए।

राजा बलि का उद्धार

असुर राज बलि, विष्णु भक्त प्रहलाद के पौत्र थे और अपनी वचनबद्धता तथा दान प्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। इसलिए भगवान विष्णु ने असुर राज से बटुक वामन के रूप में तीन पग भूमि का दान मांगा। असुरों के गुरू शुक्राचार्य को इसमें छल का आभास था, उन्होंने राजा बलि को दान देने से मना किया। लेकिन अपने दान के प्रति कर्तव्य को देखते हुए असुर राज ने तीन पग भूमि दान देना स्वीकार कर लिया। तब वामन देव ने अपना विराट रूप दिखाते हुए दो पग में ही तीनों लोक की भूमि नाप ली और असुर राज से तीसरा पग रखने के लिए भूमि की मांग की। राजा बलि ने वचन निभाते हुए वामन देव को तीसरा पग रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। वामन देव का पग सिर पर पड़ते ही राजा बलि पाताल लोक में चले गए। वामन देव ने असुर राज की दान प्रियता से प्रसन्न होकर उन्हें पाताल लोक पर अनंत काल तक राज करने आशीर्वाद प्रदान किया।

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