Sharad Purnima 2020 Puja: आज शरद पूर्णिमा पर कैसें करें चंद्रमा और लक्ष्मी पूजा? जानें मुहूर्त, मंत्र, व्रत कथा एवं खीर महत्व
Sharad Purnima 2020 Puja आज शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी तथा चंद्रमा की पूजा की जाती है। शरद पूर्णिमा की पूजा कैसे करें इसकी विधि मंत्र कथा मुहूर्त और महत्व क्या है? आइए जानते हैं कि इस दिन खीर का महत्व क्या है?
Sharad Purnima 2020: शरद पूर्णिमा का दिन बेहद अहम होता है। शरद पूर्णिमा पर अमृतमयी चांद अपनी किरणों से स्वास्थ्य का वरदान देता है। यह सभी पूर्णिमा की रातों में से सबसे अहम रातों में से एक है। इसी से ही शरद ऋतु का आगमन होता है। हिंदू धर्म के आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा होती है। इसे कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, रास पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा एवं कमला पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। आइए शरद पूर्णिमा का मुहूर्त, खीर के लाभ, पूजन विधि, मंत्र और व्रत कथा।
शरद पूर्णिमा 2020 का मुहूर्त:
पूर्णिमा तिथि आरंभ- 30 अक्टूबर 2020 शाम 17:45 से
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 31 अक्टूबर 2020 रात 20:18 बजे तक
शरद पूर्णिमा खीर के लाभ:
इस दिन खीर का विशेष महत्व होता है। खीर को चांद की रोशनी में रखा जाता है। माना जाता है कि चंद्रमा की रोशनी में रखी हुई खीर खाने से उसका प्रभाव सकारात्मक होता है। यह खीर रोगियों को दी जाती है। कहा जाता है कि इस खीर से शरीर में पित्त का प्रकोप और मलेरिया का खतरा कम हो जाता है। अगर यह खीर किसी ऐसे व्यक्ति को खिलाई जाए जिसकी आंखों की रोशनी कम हो गई है तो उसकी आंखों की रोशनी में काफी सुधार आता है। हृदय संबंधी बीमारी और अस्थमा रोगियों के लिए भी यह खीर काफी लाभदायक है। इससे चर्म रोग जैसी समस्याओं में भी सुधार आता है।
शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूजा की विधि:
शरद पूर्णिमा मंत्र:
मां लक्ष्मी को मनाने का मंत्र: ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः
कुबेर को मनाने का मंत्र: ऊं यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्याधिपतये धन धान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।।
सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करने का मंत्र: पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु में।
शरद पूर्णिमा व्रत कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक साहूकार था जिसकी दो बेटियां थीं। साहूकार की दोनों बेटियां पूर्णिमा का व्रत करती थीं। जहां एक तरफ बड़ी बेटी ने विधिवत् व्रत को पूरा किया। वहीं, छोटी बेटी ने व्रत को अधूरा छोड़ दिया। इसका प्रभाव यह हुआ कि छोटी लड़की के बच्चों का जन्म होते ही उनकी मृत्यु हो गई। फिर एक बार बड़ी बेटी ने अपनी बहन के बच्चे को स्पर्श किया वो स्पर्श इतना पुण्य था कि उससे बालक जीवित हो गया। बस उसी दिन से यह व्रत विधिपूर्वक किया जाने लगा।
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