Sawan Somwar Vrat Katha: क्या है सावन सोमवार व्रत की कथा, व्रत करने वाले जरूर करें इसका पाठ

Sawan Somwar Vrat Katha सावन में भगवान शिव और माता पार्वती धरती पर भ्रमण करते हैं। अपने भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं। सावन के सभी सोमवार को इसी तरह से शिव की विशेष रूप से अराधना की जाती है।

By Ritesh SirajEdited By: Publish:Mon, 02 Aug 2021 11:13 AM (IST) Updated:Mon, 02 Aug 2021 11:56 AM (IST)
Sawan Somwar Vrat Katha: क्या है सावन सोमवार व्रत की कथा, व्रत करने वाले जरूर करें इसका पाठ
Sawan Somwar Vrat Katha: क्या है सावन सोमवार व्रत की कथा, व्रत करने वाले जरूर करें इसका पाठ

Sawan Somwar Vrat Katha : सावन चल रहा है और सभी जगह शिव भक्ति की गूंज है। सावन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सबसे श्रेष्ठ और उत्तम माना जाता है। इस मास में भगवान शिव की पूजा पूरे धूम-धाम और विधि से की जाती है। सावन में भगवान शिव और माता पार्वती धरती पर भ्रमण करते हैं। अपने भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं। सावन के सभी सोमवार को शिव की विशेष रूप से अराधना की जाती है। आइये जानते है कि सावन के सोमवार की व्रत कथा क्या है। इसके पाठ और श्रवण से क्या लाभ है।

सावन के सोमवार के व्रत की कथा

एक नगर में एक बहुत धनवान साहूकार रहता था। परन्तु उसे निसंतान होने का बहुत बड़ा दुःख था। वह हमेशा इसी चिन्ता में रहता था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार को शिवजी का व्रत और पूजन किया करता था। जिसकी भक्तिभाव को  देखकर माता पार्वती ने शिवजी से कहा कि यह साहूकार आप का बहुत बड़ा भक्त है। यह बहुत लगन से आपका पूजन और व्रत करता है । आपको इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए । शिवजी ने माता से कहा कि हे पार्वती, यह संसार कर्मक्षेत्र है। जो इस संसार में जैसा कर्म करते हैं, वैसा ही फल भोगते हैं। परंतु माता पार्वती की जिद्द के सामने शिव जी को झुकना पड़ा। 

भगवान शिव ने कहा कि इसके भाग्य में पुत्र न होने पर भी मैं इसको पुत्र की प्राप्ति का वर देता हूँ । परन्तु यह पुत्र केवल 12 वर्ष तक जीवित रहेगा। माता पार्वती और शिव की सभी बातें साहूकार सुन रहा था। जिसक वजह से न उसे खुशी मिली और न दुख हुआ। हालांकि वह पहले की तरह ही भगवान शिवजी का व्रत और पूजन करता रहा था । कुछ समय बाद उसे सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई । साहूकार के घर में खुशी जा रही थी पर उसे कोई प्रसन्नता नहीं थी। जब लड़का 11 साल का हो गया तो उसने पढ़ने के लिए पुत्र को काशी  भेज दिया। साहूकार ने साथ में बालक के मामा को भी भेजा। साहूकार ने अपने साले से कह दिया था कि रास्ते में जिस स्थान पर भी जाओ, यज्ञ तथा ब्राह्मणों को भोजन कराते जाओ।

मामा और भानजे यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन कराते जा रहे थे। जाते-जाते एक राजधानी पहुंच गए जहां राजा की कन्या का विवाह था। लेकिन बारात लेकर आने वाले राजा का लड़का काना था। राजकुमार के पिता को चिंता थी कि वर को देख कन्या शादी के लिए मना न कर दे। तभी राजकुमार के पिता अति सुन्दर साहूकार के लड़के को देखकर सोचा क्यों न शादी तक इस लड़के को वर बना दिया जाए। साहूकार के लड़के के साथ विवाह कार्य सम्पन्न हो गया। लड़के ने ईमानदारी दिखाते हुए शादी के दौरान राजकुमारी के चुनरी पल्ले के पल्ले यानि शादी में जो गांठ बांधा जाता है उस पर लिख दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है। राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे वह एक ऑंख से काना है और मैं काशी पढ़ने जा रहा हूँ। सच्चाई जानकर लड़की बारात के साथ जाने से मना कर दिया। 

काशी पहुंचकर साहूकार के लड़के ने पढ़ाई शुरु कर दिया था। जब लड़के की आयु बारह साल की हो गई। 12 वें साल के दिन लड़के ने मामा से कहा कि तबियत सही नहीं लग रही है फिर अन्दर जाकर सो गया। सोने के बाद लड़के के प्राण निकल गए। जब मामा को पता चला तो वे जोर-जोर से रोने लगे। संयोगवश उसी समय शिव और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती का ह्रदय व्याकुल हो गया। उन्होंने कहा कि बालक जीवित करिये वरना इसके माता-पिता तड़प-तड़प कर मर जायेंगे। माता पार्वती के आग्रह करने पर शिवजी ने उसको जीवन वरदान दिया, जिससे लड़का जीवित हो गया।

लड़का और मामा यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन कराते अपने घर की ओर चल पड़े। वे उसी रास्ते से लौटे जिस राज्य में साहूकार के लड़के और राजकुमारी की शादी हुई थी। राजा ने लड़के को पहचान लिया और राजकुमारी के साथ उसकी विदाई कर दी। जब लड़का घर पहुंचा तो माता-पिता घर की छत बैठे थे और यह प्रण कर रखा था कि अगर पुत्र नहीं लौटती तो वे अपने प्राण त्याग देता।  सेठ ने आनन्द के साथ उसका स्वागत किया और बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगे ।जो भी सोमवार के व्रत को करता है और इस कथा को पढ़ता या सुनता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं ।

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