Rohini Vrat 2020: जैन समुदाय के लिए बेहद अहम है रोहिणी व्रत, पढ़ें पौराणिक कथा

Rohini Vrat 2020 यह व्रत जैन समुदाय के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। रोहिणी व्रत का बहुत महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। यह व्रत तब किया जाता है जब 27 नक्षत्रों में से रोहिणी नक्षत्र का दिन

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Fri, 17 Jul 2020 11:18 AM (IST) Updated:Fri, 17 Jul 2020 11:18 AM (IST)
Rohini Vrat 2020: जैन समुदाय के लिए बेहद अहम है रोहिणी व्रत, पढ़ें पौराणिक कथा
Rohini Vrat 2020: जैन समुदाय के लिए बेहद अहम है रोहिणी व्रत, पढ़ें पौराणिक कथा

Rohini Vrat 2020: आज रोहिणी व्रत है। यह व्रत जैन समुदाय के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। रोहिणी व्रत का बहुत महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। यह व्रत तब किया जाता है जब 27 नक्षत्रों में से रोहिणी नक्षत्र का दिन होता है। इसी नक्षत्र के कारण इसे रोहिणी व्रत कहते हैं। कहा जाता है कि जो भी यह व्रत करता है वो आत्‍मा के विकारों से मुक्त हो जाता है। अगर आप भी यह व्रत कर रहे हैं तो यहां पढ़ें रोहिणी व्रत कथा।

प्राचीन समय की बात है। चंपापुरी नाम का एक शहर था जहां राजा माधवा अपनी रानी लक्ष्मीपति के साथ राज करते थे। उनके साथ उनके 7 पुत्र और 1 पुत्री भी रहते थे जिसका नाम रोहिणी था। अपने पुत्री के विवाह के लिए चिंतिंत राजा ने निमित्‍तज्ञानी से पूछा कि उसकी बेटी का वर कौन बनेगा? इस पर निमित्‍तज्ञानी ने कहा कि हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक उसकी बेटी का वर होगा। उसके साथ ही रोहिणी का विवाह होगा। यह सुनकर राजा बहुत खुश हुआ और उसने स्वयंवर का आयोजन किया। यहां पर रोहिणी ने राजकुमार अशोक को वरमाला पहनाई और दोनों का विवाह हो गया।

एक बार हस्तिनापुर नगर के वन में श्री चारण मुनिराज पधारे। अपने लोगों के साथ राजा उनके दर्शन करने के लिए गए। राजना ने मुनिराज को प्रणाम किया और धर्मोपदेश को ग्रहण किया। इसके बाद राजा ने मुनिराज से रानी को लेकर सवाल किया। उन्होंने पूछा की मेरी रानी इतनी शांतचित्त क्‍यों है? इस पर मुनिराज ने कहा कि इस नगर में एक राजा रहता था जिसके नाम वस्तुपाल था। उसका एक मित्र था जिसका नाम धनमित्र था। उसकी एक कन्या थी दुर्गंधा नाम की। वस्तुपाल को हमेशा चिंता बनी रहती थी कि उसकी कन्या से विवाह कौन करेगा। राजा ने अपने मित्र के बेटे श्रीषेण से उसका विवाह संपन्न करा दिया। हालांकि, यह विवाह ज्यादा नहीं चला। दुर्गांधा की दुर्गध से परेशान हकोर श्रीषेण उसे एक माह में ही छोड़कर चला गया।

इस दौरान अमृतसेन मुनिराज नगर में पधारे। उनके दर्शन करने धनमित्र अपनी पुत्री के साथ वहां पहुंचे। वहां पर धनमित्र ने अपनी पुत्री के भविष्य के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि गिरनार पर्वत के पास एक राजा रहते हैं जिनका नाम भूपाल है। इनकी रानी का नाम सिंधुमती है। एक दिन यहां के राजा, अपनी रानी के साथ वनक्रीड़ा के लिए गए। राजा ने रास्ते में एक मुनिराज को देखा। राजा ने रानी से घर पहुंचकर कहा कि वो उनके लिए आहार की व्यवस्था करे। राजा की आज्ञा सुनकर रानी चली गई। लेकिन क्रोध में रानी से मुनिराज को कड़वी तुम्बी का खाना दिया। इससे मुनिराज बेहद दु:ख हुआ और उन्हें तुरंत ही अपने प्राण त्याग दिए।

राजा को इस बात का पता चला। यह जानकर रानी को राजा ने घर से बाहर निकाल दिया। इस पाप से रानी को कोढ़ हो गया। उसने बहुत वेदना सही और रौद्र भावों से मरकर नर्क में गई। इसके बाद उसने अगले जन्म में पशु योनी में जन्म लिया और फिर दुर्गंधा के रूप में।

यह सुनकर धनमित्र ने पूछा कि क्या कोई ऐसा धर्मकार्य है जिससे यह दोष दूर हो सके। तब स्वामी ने कहा कि सम्‍यग्दर्शन सहित रोहिणी व्रत करो। हर मास जिस दिन भी रोहिणी नक्षत्र आए उस दिन चारों तरह के आहार का त्याग कर दो। साथ ही श्री जिन चैत्‍यालय में जाकर धर्मध्‍यान हो जाओ और 16 प्रहर व्‍यतीत करो। इसका सीधा मतलब यह है यह कि सामायिक, स्‍वाध्याय, धर्मचर्चा, पूजा, अभिषेक आदि में समय व्यतीती करो। 5 वर्ष तक और 5 मास तक इस व्रत का पालन करो।  

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