Purushottami Ekadashi 2020: आज है पुरुषोत्तमी एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व से लेकर व्रत कथा तक सब कुछ

Purushottami Ekadashi 2020 आज अश्विन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी है। इसे पुरुषोत्तमी एकादशी भी कहा जाता है। इस नाम को पद्मपुराण में बताया गया है। महाभारत में इस एकादशी का नाम समुद्रा एकादशी है। यह एकादशी तीन वर्ष में एक बार आती है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Sun, 27 Sep 2020 06:30 AM (IST) Updated:Sun, 27 Sep 2020 06:30 AM (IST)
Purushottami Ekadashi 2020: आज है पुरुषोत्तमी एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व से लेकर व्रत कथा तक सब कुछ
आज है पुरुषोत्तमी एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व से लेकर व्रत कथा तक सब कुछ

Purushottami Ekadashi 2020: आज अश्विन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी है। इसे पुरुषोत्तमी एकादशी भी कहा जाता है। इस नाम को पद्मपुराण में बताया गया है। महाभारत में इस एकादशी का नाम समुद्रा एकादशी है। यह एकादशी तीन वर्ष में एक बार आती है। इस दिन श्री हरि की पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन व्रत भी किया जाता है। इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को पूरे वर्ष की एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है। अधिकमास में यह व्रत आने से यह और भी खास हो जाता है। ज्योतिषाचार्य पं. गणेश प्रसाद मिश्र ने बताया कि नारद जी ने ब्रह्मा जी को पहली बार इस एकादशी के बारे में बताया था। फिर इनके बाद श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इसका महत्व बताया था। इस दिन केवल शिव-पार्वती की ही नहीं बल्कि राधा-कृष्ण की भी अर्चना की जाती है।

पुरुषोत्तमी एकादशी का मुहूर्त:

अधिक आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 26 सितंबर दिन शनिवार को सुबह 06 बजकर 29 मिनट पर हो रहा है। यह 27 सितंबर दिन रविवार को सुबह 7 बजकर 16 मिनट तक है। ऐसे में पुरुषोत्तमी एकादशी का व्रत 27 सितंबर को रखना उचित है।

पुरुषोत्तमी एकादशी का महत्व:

पुराणों में बताया गया है कि किसी यज्ञ, किसी तप और किस दान से कम नहीं है या व्रत। यज्ञ, तप या दान से भी बढ़कर होता है पुरुषोत्तमी एकादशी का व्रत करना। यह व्रत करने से सभी तीर्थों और यज्ञों का फल मिल जाता है। जाने-अनजाने में हुए सभी पापों से भी व्यक्ति मुक्त हो जाता है। इस एकादशी पर दान का खास महत्व होता है। इस दिन लोगों को अपने सामर्थ्य के अनुसार ही दान करना चाहिए। लोग इस दिन मसूर की दाल, चना, शहद, पत्तेदार सब्जियां और पराया अन्न ग्रहण नहीं करते हैं। साथ ही इस दिन नमक भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है। खाना कांसे के बर्तन में भी नहीं खाना चाहिए। व्रती अपने उपवास के दौरान कंदमूल या फल खाए जा सकते हैं।

पुरुषोत्तमी एकादशी का इस तरह करें व्रत:

व्रत के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठ जाएं। फिर तीर्थ स्नान करें। अगर आप तीर्थ स्नान न कर पाएं तो आप घर पर ही पानी में गंगाजल डाल कर स्नान कर लें। स्नान करते समय ध्यान रखना चाहिए कि पानी में तिल, कुश और आंवले का थोड़ा सा चूर्ण अवश्य डालें। नहाकर स्वच्छ वस्त्र पहनें। फिर भगवान विष्णु की पूजा करें। पुरुषोत्तमी एकादशी व्रत की कथा पढ़ें। साथ ही भजन, मंत्रों और आरती का पाठ भी करें। भगवान को नैवेद्य लगाएं और फिर सभी घरवालों में बांट दें। ब्राह्मणों को भोजन भी कराएं।

पुरुषोत्तमी एकादशी व्रत की कथा:

प्राचीन काल में एक राजा था जिसका नाम कृतवीर्य था। यह महिष्मती नगर का राजा था। राजा की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए राजा ने कई व्रत-उपवास और यज्ञ किए। लेकिन उसका फल उसे नहीं मिला। राजा अत्यंत दुखी था और इसी वियोग में वो जंगल जाकर तपस्या करने लगा। कई वर्ष बीतने के बाद भी उसे भगवान के दर्शन नहीं हुए। इसके बाद राजा कृतवीर्य की रानी प्रमदा ने अत्रि ऋषि की पत्नी सती अनुसूया से इसका उपाय पूछा। तब उन्होंने रानी को पुरुषोत्तमी एकादशी व्रत के बारे में बताया और कहा कि वो इस व्रत को करें। रानी ने यह व्रत किया और भगवान राजा के समक्ष प्रकट हो गए। उन्होंने राजा को वरदान दिया और कहा कि उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। उनके पुत्र को हर जगह जीत मिलेगी। यह पुत्र ऐसा होगा जिसे देव से दानव तक कोई हरा नहीं पाएगा। उसके हजारों हाथ होंगे। जब उसकी इच्छा होगी तब वो अपना हाथ बढ़ा पाएगा। वरदान प्राप्त होने के बाद राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इस बालक ने तीनों लोक को जीता और रावण को भी हराया और बंदी बना लिया। इस बालक ने रावण केहर सिर पर दीपक जलाया। रावण को उसने खड़ा रखा। इस बालक का नाम सहस्त्रार्जुन कहा जाता है। 

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