Mahalakshmi Vrat 2021: लक्ष्मी कृपा के लिए आज करें ये 3 काम, पूरी होंगी मनोकामनाएं

Mahalakshmi Vrat 2021 आज से 16 दिनों का महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ हो रहा है। 28 सितंबर तक चलने वाले इस व्रत में प्रत्येक दिन माता लक्ष्मी की पूजा होती है। आपको वे तीन काम करने के बारे में बता रहे हैं जिसको करके आप लक्ष्मी कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

By Kartikey TiwariEdited By: Publish:Mon, 13 Sep 2021 12:30 PM (IST) Updated:Mon, 13 Sep 2021 12:30 PM (IST)
Mahalakshmi Vrat 2021: लक्ष्मी कृपा के लिए आज करें ये 3 काम, पूरी होंगी मनोकामनाएं
Mahalakshmi Vrat 2021: लक्ष्मी कृपा के लिए आज करें ये 3 काम, पूरी होंगी मनोकामनाएं

Mahalakshmi Vrat 2021: आज से 16 दिनों का महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ हो रहा है। 13 सितंबर से 28 सितंबर तक चलने वाले इस महालक्ष्मी व्रत में प्रत्येक दिन माता लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा होती है। महालक्ष्मी सुख, समृद्धि, धन, ऐश्वर्य और संतान देने वाली हैं। इन 16 दिनों में हर कोई मां लक्ष्मी को प्रसन्न करके अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण कर लेना चाहता है, ताकि उसके जीवन से दुख, दरिद्रता और आर्थिक तंगी हमेशा के लिए दूर हो जाए। सवाल यह है कि माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए क्या करें? इस बात को लेकर आप परेशान न हों। आज जागरण अध्यात्म में हम आपको वे तीन काम करने के बारे में बता रहे हैं, जिसको करके आप लक्ष्मी कृपा प्राप्त कर सकते हैं। आइए जानते हैं इसके बारे में।

महालक्ष्मी व्रत के समय आज आपको जो तीन काम करने हैं, उसमें पहला है पूजा के समय लक्ष्मी चालीसा का पाठ करना। दूसरा काम है इंद्र द्वारा रचित महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना और तीसरा काम पूजा के अंत में कपूर या घी के दीपक से महालक्ष्मी की आरती करना। ये 3 काम प्रत्येक दिन पूजा के समय करें, माता लक्ष्मी प्रसन्न होंगी। जब स्वर्ग लोक से राज्यलक्ष्मी समुद्र में चली गई थीं और इंद्र श्रीहीन हो गए थे, तब उन्होंने माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए महालक्ष्मी स्तोत्र की रचना की थी। जिससे प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी वापस आ गईं और तीनों लोक धन एवं धान्य से परिपूर्ण हो गए। आप भी लक्ष्मी कृपा के लिए यह कर सकते हैं।

श्री लक्ष्मी चालीसा

दोहा

मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास।

मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥

सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार।

ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार॥

सोरठा

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करूं।

सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

चौपाई

सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही। ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरबहु आस हमारी॥

जै जै जगत जननि जगदम्बा। सबके तुमही हो स्वलम्बा॥

तुम ही हो घट घट के वासी। विनती यही हमारी खासी॥

जग जननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी।

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥

कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी। जगत जननि विनती सुन मोरी॥

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥

क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिंधु में पायो॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रूप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥

तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥

अपनायो तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥

तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी। कहं तक महिमा कहौं बखानी॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन- इच्छित वांछित फल पाई॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मन लाई॥

और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करे मन लाई॥

ताको कोई कष्ट न होई। मन इच्छित फल पावै फल सोई॥

त्राहि- त्राहि जय दुःख निवारिणी। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि॥

जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे। इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै॥

ताको कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै।

पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना। अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं। उन सम कोई जग में नाहिं॥

बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥

करि विश्वास करैं व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥

जय जय जय लक्ष्मी महारानी। सब में व्यापित जो गुण खानी॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयाल कहूं नाहीं॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजे॥

भूल चूक करी क्षमा हमारी। दर्शन दीजै दशा निहारी॥

बिन दरशन व्याकुल अधिकारी। तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥

रूप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥

कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई॥

रामदास अब कहाई पुकारी। करो दूर तुम विपति हमारी॥

दोहा

त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास।

जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश॥

रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर।

मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर॥

महालक्ष्मी स्तोत्र

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।

शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।

सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि।

सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।

मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।

योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।

महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी।

परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।

जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।

महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:।

सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।

एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।

द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:।।

त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।

महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।

महालक्ष्मी की आरती

ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।

तुमको निस दिन सेवत हर-विष्णु-धाता॥

ओम जय...

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।

सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥

ओम जय...

तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता।

जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता॥

ओम जय...

तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।

कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता॥

ओम जय...

जिस घर तुम रहती, तहं सब सद्गुण आता।

सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता॥

ओम जय...

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।

खान-पान का वैभव सब तुमसे आता॥

ओम जय ...

शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।

रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता॥

ओम जय...

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता।

उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता॥

ओम जय...

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